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Jewar Airport: BJP's electoral interest or national policy of development?
देशबन्धु में संपादकीय आज | Editorial in Deshbandhu today
उत्तरप्रदेश में भाजपा की स्थिति (BJP's position in Uttar Pradesh) मजबूत करने के लिए परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यासों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 नवंबर गुरुवार को जेवर में अंतरराष्ट्रीय विमानतल की नींव रखी। यह विमानतल उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है और भाजपा शुरु से जिस विकास के नारे को बुलंद करती आई है, यह एयरपोर्ट उसकी ही एक मिसाल है। शाइनिंग इंडिया और अच्छे दिन आने वाले हैं का मिला-जुला मिश्रण है जेवर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट (Jewar International Airport), जिसमें जनता को लुभा कर अपनी जमीन पुख्ता करने की तैयारी भाजपा की है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) से चंद महीनों पहले प्रधानमंत्री ने विकास की गाड़ी को चौथे गियर पर डाल दिया है।
पूर्वांचल एक्सप्रेस वे (Purvanchal Expressway), कुशीनगर एयरपोर्ट और अब जेवर का एयरपोर्ट, इन परियोजनाओं से भाजपा जनता को यही संदेश देने की कोशिश कर रही है कि उसका फोकस विकास कार्यों पर है। इन परियोजनाओं को इस चकाचौंध के साथ प्रस्तुत किया जाता है कि अक्सर उसमें कुछ जरूरी सवाल गुम हो जाते हैं। जैसे पांच सालों तक विकास की यह रफ्तार क्यों नहीं दिखी। जिन परियोजनाओं को चुनाव के पहले उद्घाटित किया जा रहा है या जिनमें नींव के पत्थर रख कर लाखों रोजगार और करोड़ों के निवेश के सपने दिखाए जा रहे हैं, वही काम अगर सत्ता संभालने के कुछ अंतराल में कर लिया जाता तो क्या उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी और गरीबी से लोग बेहाल होते।
विकास का उद्घाटन और पिछली सरकारों को कोसना
आज जेवर एयरपोर्ट के उद्घाटन पर प्रधानमंत्री मोदी ने फिर पिछली सरकारों को कोसा कि पहले की सरकारों ने झूठे सपने दिखाए, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विकास (Development of Western Uttar Pradesh) को नजरंदाज किया।
उन्होंने कहा कि हम चाहते तो 2017 में ही भूमिपूजन कर देते, लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर हमारे लिए राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति का हिस्सा है। हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि तय समय पर ही काम पूरा हो जाए। देरी होने पर हमने जुर्माने का प्रावधान किया है। बड़ी चालाकी से प्रधानमंत्री ने चुनाव के पहले किए जाने वाले शिलान्यास को तर्कसंगत ठहराने की कोशिश की। और साथ ही देरी पर जुर्माने की बात कर यह संदेश भी जनता को दे दिया कि 2022 में अगर भाजपा की सरकार फिर से बनी तो ये एयरपोर्ट वक्त से शुरु होगा, अन्यथा इसका काम लटक सकता है।
जितना चार्तुय प्रधानमंत्री लोगों को अपनी बातों और दावों में उलझाने में लगाते हैं, अगर उतनी ही चतुराई देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था और सामाजिक, धार्मिक समीकरणों को बनाने में लगा दें तो वाकई देश की सूरत बदल जाएगी। मगर फिलहाल प्रधानमंत्री का पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित करना है। पूर्वांचल और बुंदेलखंड को साधने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को संभालने में जुट गए हैं।
अब किसानों के हितैषी बनने का दावा कर रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी
तीन कृषि कानूनों की वापसी को मंजूरी के बाद अब यहां अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के जरिए किसानों के हितैषी बनने का दावा प्रधानमंत्री कर रहे हैं। उनका कहना है कि अब यहां के किसान साथी, फल, सब्जी, मछली जैसी जल्दी खराब होने वाली उपज को सीधे एक्सपोर्ट कर पाएंगे। इसके साथ ही अलीगढ़, मथुरा, मेरठ, आगरा, बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली ऐसे अनेक औद्योगिक क्षेत्रों के लिए यह मददगार साबित होगा।
क्या जेवर एयरपोर्ट बनने से वाकई किसान अपनी फसलें एक्सपोर्ट कर पाएंगे? (Will the construction of Jewar airport really enable farmers to export their crops?)
किसान अपनी फसलें एक्सपोर्ट यानी निर्यात कर पाएंगे, यह विचार ही अपने आप में बड़ा लुभावना है। क्योंकि अब तक तो देश ने किसानों को जूझते, संघर्ष करते, अपने हक के लिए लाठी खाते ही देखा है। ऐसे में एयरपोर्ट तक किसान की पहुंच और वहां से कृषि उपज को बाहर भेजने की सुविधा, क्रांतिकारी विचार लगता है। भारत में पूंजीवाद से प्रेरित सरकार (Capitalism Driven Government in India) न होती, तो यह विचार हकीकत में साकार होते देखने की उम्मीद बांधी जा सकती थी। मगर जहां अधिकतर नीतियां पूंजीपतियों के हित साधन के लिए बनी हों, जहां अभी कुछ दिन पहले तक ऐसे कानून बने थे, जो किसान से उसकी ही उपज और जमीन पर मालिकाना हक छीन रहे थे, वहां सरकार की इस बात पर आंख मूंद कर कैसे यकीन किया जा सकता है कि एक अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट तक किसानों की पहुंच होगी।
वैसे भी भारत के सबसे बड़े इस एयरपोर्ट को बनाने के लिए जो 5,845 हेक्टेयर जमीन ली गई है, वो आसपास के छह गांवों की है, और जिन किसानों से ये जमीन ली गई है, उनमें से बहुत से किसान अब भी सही मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं।
चुनाव की चालाकियों और विकास की चकाचौंध से परे एक हकीकत ये है कि बहुत से ग्रामीण अपने पक्के घरों को देकर तंबुओं में रहने को मजबूर हैं। कुछ रिपोर्ट्स में जरूर ऐसा बताया जा रहा है कि इस एयरपोर्ट के लिए जमीन के बदले जो मुआवजा मिला, उससे किसान मालामाल हो गए हैं। बहुत से किसानों ने कार और बाइक खरीद ली है, बहुतों ने व्यवसाय शुरु कर दिया है। लेकिन इस तात्कालिक लाभ में क्या किसानों के दूरगामी हितों के बारे में सोचा गया है। मुआवजे के पैसों से जो अभी गाड़ियां खरीद रहे हैं या व्यवसाय शुरु कर रहे हैं, क्या उससे उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। देश की बाकी सार्वजनिक संपत्तियों की तरह यह एयरपोर्ट भी देर-सबेर किसी उद्योगपति मित्र के हवाले हो जाएगा, फिर आम जनता के हाथ में क्या आएगा, यह भी सोचना होगा।
आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.