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जोशीमठ डूब रहा है, संकट में है समूचा हिमालय, मगरमच्छों के आंसुओं में भी हिमालय डूब रहा है

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जानिए जोशीमठ त्रासदी के लिए कौन है जिम्मेदार?

joshimath tragedy

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हर तरफ़ होगा रेगिस्तान और कोई मरुद्यान भी नहीं बचेगा

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बनाते रहिए अपना-अपना ताजमहल

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शायद पहल 67 में मेरी एक कहानी प्रकाशित हुई थी, 32 पेज की लंबी कहानी, नई टिहरी-पुरानी टिहरी। 1991 के उत्तरकाशी भूकंप और टिहरी बांध की वजह से पुरानी टिहरी के डूब में समाहित होने और नई टिहरी बनने की पृष्ठभूमि में हिमालय की भूपरिस्थितिकी पर केंद्रित कहानी। संपादक ज्ञानरंजन जी ने लेखक के परिचय में तब सामाजिक कार्यकर्ता लिखा था।

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मेरे पास पत्रिका या कहानी की कोई प्रति नहीं मिल रही है। नए जोशीमठ के निर्माण और जोशीमठ के विसर्जन के संदर्भ में अपनी लिखी पुरानी कहानी याद आ गई। डॉक्यूमेंटेशन की वजह से आलोचकों को शायद यह कहानी पसंद नहीं आई होगी।

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हिमालय वध कथा अनंत के शीर्षक से केदार आपदा पर एक लम्बी कविता भी लिखी थी और इसमें भी डॉक्यूमेंटेशन था। विशुद्ध कहानी, कविता और उपन्यास मैं नहीं लिख सकता। इसलिए लिखना भी छोड़ दिया।

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संकट में है हिमालय का अस्तित्व

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हिमालय का अस्तित्व संकट में है, ऐसा हम अपनी लेखन की शुरुआत 1973 से समझते रहे हैं। नैनीताल समाचार और पहाड़ के तमाम अंक इस पर केंद्रित रहा है।

चिपको आंदोलन के साथियों में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने तो प्रदीप टमटा लंबे अरसे से सांसद हैं। अनेक साथी मंत्री, सांसद और विधायक बने। लेकिन उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी में रहते हुए जिन्हें हिमालय का वजूद सबसे अहम लगता था, उत्तराखंड आंदोलन में हिमालय की विशिष्ट भूपारिस्थितिकी (Special Geoecology of the Himalayas) जिनके लिए अलग उत्तराखंड राज्य की अवधारणा का आधार था, सत्ता की राजनीति में आते ही वे सभी अस्मिता की राजनीति में समाहित हो गए।

विकास के नाम विनाश का सिलसिला जारी रहा।

जोशीमठ डूब रहा है।

समूचा हिमालय संकट में है।

सूचनाओं पर पहरा है सख्त, लेकिन सनसनी और दुष्प्रचार, मिथ्या का बोलबाला है।

मगरमच्छों के आंसुओं में भी हिमालय डूब रहा है।

पवित्र चार धाम भी संकट में हैं सिर्फ जोशीमठ नहीं

https://twitter.com/t_d_h_nair/status/1614254809242275842

जिन पवित्र चार धाम की आस्था में केंद्रित है उत्तराखंड की समूची सियासत और विकास परियोजनाएं, वे चारों के चारों संकट में हैं। सिर्फ जोशीमठ नहीं।

भूकंप के लिए अति संवेदनशील उत्तराखंड में बड़े बांध, सुरंगों का जाल, ऑल वेदर रोड, बिजली परियोजनाओं और पर्यटन व पूंजी निवेश के नाम अंधाधुंध निर्माण से जो होना था, वही हो रहा है।

वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की चेतावनी और रपटों को किनारे रखकर अब भी अंधविश्वास का कोहरा फैलाया जा रहा है कि सदियों पुरानी भविष्यवाणी में विध्वंस का विधान है और इसमें सिर्फ ईश्वर की गलती है।

खान दुर्घटनाओं को रफा-दफा करने के लिए ईश्वर की गलती का हवाला दिया जाता है कि पूरी सावधानी बरती गई, किसी की कोई गलती नहीं है। गलती है तो ईश्वर की।

क्या विकास विध्वंस को महज ईश्वरीय प्रकोप माना जाए?

विडंबना यह है कि इस मानवकृत महाविनाश और विकास विध्वंस को आम जनता महज ईश्वरीय प्रकोप और प्राकृतिक आपदा मन ले, हर स्तर पर यह प्रयास हो रहा है।

मीडिया का बेशर्म अभियान जारी है।

https://twitter.com/DrAMSinghvi/status/1614412073152446466

मेरे एक कहानी संग्रह का नाम ईश्वर की गलती है और एक उपन्यास का नाम है,अमेरिका से सावधान।

फिर भी हम न राजनेता हैं, हिंदी में 50 साल तक निरंतर लिखने के बाद और 40 साल की देश के सबसे बड़े अखबारों की संपादकी के बावजूद न लेखक हैं और न पत्रकार।

सामाजिक कार्यकर्ता तो जमीन का आदमी होता है। जनता के बीच जनता का हिस्सा। उसके कहे का क्या, लिखने का क्या?

फिर भी लिखने बोलने की आदत नहीं जाती। 50 साल से जनता से जुड़े हर मुद्दे पर आ बैल मुझे मार की तर्ज पर जनता का पक्ष चुनने की बुरी आदत जो है।

हम जैसे लोगों को नजरंदाज बाशौक कीजिए, कोई फर्क नहीं पड़ता। हिमालय को नजरंदाज करेंगे तो समूची हिंदी पट्टी का सर्वनाश तय है।

आस्था और आस्था की राजनीति हिमालय के बने रहने तक चलेगी। बनाते रहिए अपने अपने ताजमहल, गंगा यमुना, ब्रह्मपुत्र, तीस्ता, रावी, व्यास, झेलम के सारे उपजाऊ मैदान रेगिस्तान में बदलने वाले हैं और कहीं कोई मरुद्यान भी नहीं बचेगा।

पलाश विश्वास

https://twitter.com/satishacharya/status/1614965851396136960

Joshimath is sinking, entire Himalaya is in trouble

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