मेरे लिये वो ईसा मसीह के ऐसा प्रतिरूप जैसे थे जो अपने बुढ़ापे में सेन्टा क्लॉज बन गये हों

Guest writer
26 Dec 2022
मेरे लिये वो ईसा मसीह के ऐसा प्रतिरूप जैसे थे जो अपने बुढ़ापे में सेन्टा क्लॉज बन गये हों मेरे लिये वो ईसा मसीह के ऐसा प्रतिरूप जैसे थे जो अपने बुढ़ापे में सेन्टा क्लॉज बन गये हों

jug jug jio george joseph sir

''जुग जुग जिओ जार्ज जोसेफ सर''

कल बड़ा दिन था, सो औपचारिकतावश मैं भी चर्च पहुंचा था। चर्च में अगली पंक्ति पर बैठकर प्रभु यीशु के जन्मदिवस पर उनके बलिदानों को याद करते हुये स्मृति पटल के अनगिनत पन्ने एक-एक उलटते चले गये। जो मित्र मेरी पोस्ट पढ़ते हैं उन्हें शायद याद होगा कि अपनी समझ विकसित होने से उत्तरोत्तर बड़े होने तक जीवन के प्रत्येक वर्ष में किसी न किसी व्यक्तित्व से प्रभावित होता रहा जिसे मैं अपना आदर्श मानता रहा, स्वाभाविक प्रेम मानता रहा। इस प्रकार की अनेक प्रेम कहानियां मैंने अपनी इसी वाल पर आप सबके साथ साझा की हैं।

बड़ा दिन होने के नाते एक और प्रेम कहानी की चर्चा करना अपरिहार्य सा लग रहा है। 

बचपन के उस दौर में भक्क सफेद दाढ़ी वाला सेंन्टा क्लाज एक ऐसा किरदार था जो अमूमन मेरे सपनों का प्रमुख किरदार होता था। उस पर वो विक्टर दादा जो हर शाम के घर के नीचे बने रास्ते से गुजरते थे और जिनके ओवरकोट में बच्चों के लिये न जाने कितनी टाफियाँ होती थीं कि कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती थीं। उनकी दाढ़ी देखकर मैं कल्पना किया करता था कि बूढ़े होने से पहले सेन्टाक्लाज कैसे रहे होंगे?

वह सन 1978-79 के दौर का समय था। उस समय पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी श्री टी जार्ज जोसेफ थे और मैं पिता की उंगली पकड़कर चलने वाली उम्र का बालक।

मुझे आज भी याद है कि उस दिन गणतंत्र दिवस का अवसर था और मैंने भी अपने पिता के साथ चलने की जिद की थी, तो पिता मान गये और उस दिन पिता की उंगली पकड़कर मैं भी उनके साथ गया था।

श्री टी जार्ज जोसेफ उत्तर प्रदेश काडर में आई.ए.एस. हुआ करते थे और 1971 बैच के अधिकारी थे।

धारा रोड से आगे स्थित कलेक्ट्रेट कम्पाउन्ड तक पहुंचते पहुंचते मैने पिता की उंगली पकड़े-पकड़े न जाने कितने सवाल किये थे। जब हम लोग कलक्ट्रेट पहुंचे तो झंडारोहण सम्पन्न हुआ और उसके बाद जिलधिकारी महोदय यानी श्री टी जार्ज जोसेफ सर का उद्बोधन।

उन दिनो जोसेफ साहब फ्रैन्चकट दाढ़ी रखा करते थे। उन्हें बोलता देखकर स्वाभाविक रूप से मन ही मन सोचा कि जरूर सैन्टा क्लाज भी अपनी जवानी के दिनों में ऐसे ही रहे होंगे।

हमारे परिवार में एक सदस्य भारतीय प्रशासनिक सेवा में थे और घर से बहुत दूर आसाम में तैनात थे। संभवतः वो उन दिनो डिब्रूगढ के कलक्टर थे सो पिता ने मेरे बालमन को प्रेरित करते हुये अवगत कराया कि-

''तुम्हारे शैलेन्द्र चाचा भी इसी तरह अपने जिले में झंडारोहण कर रहे होंगे। ....उन्हें भी इसी तरह सलामी दी जा रही होगी। .....आदि आदि ....''

अंततः झंडारोहरण करते जोसेफ सर को देखकर अतेचन मन में स्वयं भी प्रशासनिक अधिकारी बनने की अतृप्त कामना घर कर गयी थी।

केरल के मूल निवासी जार्ज साहब अब मुंबई में रहकर रचनात्मक कार्यों में लगे हैं, तो याद आ रहा है कि वो अपने जीवन और करियर के अनुभवों को समेटते हुए एक फिक्शन उपन्यास सरीखी कोई किताब लिख रहे हैं जिस पर कोई सीरियल बनाने की चाह है।

कल बड़े दिन पर चर्च जाने के बाद सब याद आ गया। पौड़ी के जिलाधिकारी के रूप में उनकी वो फ्रैन्चकट दाढ़ी ......और सेवा के अंतिम दौर में राजस्व परिषद के सदस्य रहने के दौरान सेन्टा क्लाज जैसी झक्क सफेद दाढी...!

मेरे लिये वो ईसामसीह के ऐसा प्रतिरूप जैसे थे जो अपने बुढ़ापे में सेन्टा क्लॉज बन गये हों।

बचपन में जाने कितनी प्रार्थनाएं मैने चर्च में की हैं जिन्हें ईसा मसीह ने बड़ी शिद्दत से सुना भी है।

वो मेरे जीवन में बचपन का प्यार जैसे ही थे।

(Ashok Shukla Pcs प्रशासनिक अधिकारी हैं उन की एफबी टिप्पणी साभार)

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