जस्टिस काटजू ने हल्द्वानी प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ क्यों की

Guest writer
06 Jan 2023
जस्टिस काटजू ने हल्द्वानी प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ क्यों की

justice katju praised the supreme court's decision on the haldwani episode

केवलं शास्त्रं आश्रित्य न कर्तव्यो विनिर्णयः / युक्तिहीने विचारे तु धर्महानि: प्रजायते।

उत्तराखंड में हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में महिलाओं, बूढ़ों और बच्चों सहित 50,000 लोगों, जिन के बारे में कहा जाता है कि उनमें से कई वहां लंबे समय, कई दशकों से रह रहे थे, को उनके घरों से बेदखल करने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाकर सर्वोच्च न्यायालय ने सही कदम उठाया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह रेलवे की जमीन है जिस पर इन लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है।

मैं इस मामले में नहीं जा रहा हूं, लेकिन मुंबई झुग्गी झोपड़ी (स्लम) के निवासियों से संबंधित एक मामले का उल्लेख करना चाहता हूं जो उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आया था, जिसमें मैं कनिष्ठ न्यायाधीश था।

ये झुग्गी झोपड़ी निवासी गरीब लोग थे जिनके पास उस जमीन पर कोई हक या पट्टा नहीं था, जहां वे रह रहे थे। तो बेंच में मेरे वरिष्ठ सहयोगी ने कहा कि वे अवैध कब्जेदार हैं, और उन्हें बेदखल कर निकाल देना चाहिए।

मैंने कहा, “पर वे कहाँ जाएँ, भाई?

उन्होंने जवाब दिया "वे जहां से आए थे"।

मैंने कहा, “भाई, ये वो गरीब लोग हैं जो बिहार से या और कहीं से मजदूर बनकर इन जगहों पर अपने परिवार के साथ अपना गुजारा करने आए हैं। उनके पास बिहार में कोई नौकरी नहीं है। क्या उन्हें समुद्र में फेंक देना चाहिए? आखिर वे इंसान हैं। यह सिर्फ एक कानूनी समस्या नहीं है, यह एक मानवीय समस्या भी है"।

मेरे आग्रह पर हमने उनके बेदखली पर रोक लगा दी और सरकार को एक वैकल्पिक पुनर्वास योजना तैयार करने का निर्देश दिया।

यह सच हो सकता है कि संबंधित हल्द्वानी के लोग, मुंबई की झुग्गीवासियों की तरह, जिस जमीन पर वे रह रहे हैं, उस पर कानूनी रूप से कब्जादार नहीं होंगे। लेकिन एक संस्कृत श्लोक है :

केवलं शास्त्रं आश्रित्य न कर्तव्यो विनिर्णयः

युक्तिहीने विचारे तु धर्महानि: प्रजायते।

अर्थात।

"केवल कानून का अक्षरशः पालन करके निर्णय नहीं दिया जाना चाहिए।

यदि निर्णय पूरी तरह से अनुचित है, तो घोर अन्याय होगा।“

दूसरे शब्दों में, न्यायसंगत और मानवीय विचारों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जस्टिस मार्कंडेय काटजू

लेखक सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।

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