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Justice Markandey Katju
Justice Katju's comment: Hindi is not the language of the public
जनता की भाषा हिंदी नहीं है
हिंदी कृत्रिम नकली भाषा हैI जनता की भाषा है खड़ी बोली या हिंदुस्तानी। आज़ादी के पहले उत्तरी भारत में सभी पढ़े लिखे लोगों, चाहे हिन्दू मुस्लिम या सिख, की भाषा उर्दू होती थी और आम आदमी की खड़ी बोली। अंग्रेज़ों ने अपनी बाँटो और राज करो नीति के तहत यह झूठा प्रचार किया कि हिंदी हिन्दुओं की और उर्दू मुसलमानों की जुबां है।
हिन्दुस्तानी और हिंदी में अंतर समझाने के लिए हम एक उदाहरण लेते हैं।
हिंदुस्तानी में हम कहते हैं उधर देखिये। इसे हिंदी में कहेंगे उधर अवलोकन कीजिये। आम आदमी कभी अवलोकन शब्द नहीं कहेगा। इससे स्पष्ट है कि हिंदी एक कृत्रिम भाषा है, आम आदमी की नहीं।
बाँटो और राज करो नीति 1857 के बग़ावत के बाद अंग्रेज़ों द्वारा भारत में लायी गयी। बग़ावत में हिन्दू मुस्लिम साथ मिलकर अंग्रेज़ों से लड़े थे। उसे कुचलने के बाद अंग्रेज़ों ने तय किया कि भारत पर नियंत्रण का एक ही तरीक़ा है हिन्दू मुसलमानों को लड़वाना। उसी नीति के अंतर्गत यह झूठा प्रचार किया गया कि हिंदी हिन्दुओं की और उर्दू मुसलमानों की जुबां है।
इसमें मुख्य भूमिका अंग्रेज़ों के दलाल जैसे भारतेन्दु हरिश्चंद्र की थी। आज़ादी के बाद उर्दू को कुचलने का कुछ तत्वों द्वारा भरसक प्रयास किया गया। जो फ़ारसी या अरबी के शब्द बोलचाल में आ गए थे उन्हें नफरत से हटाया गया और उनकी जगह संस्कृत के शब्द लाये गए, उदाहरणस्वरूप ज़िला को हटा कर जनपद शब्द लाया गया।
जब मैं इलाहबाद उच्च न्यायलय में जज था तो एक वकील ने मेरे समक्ष एक याचिका प्रस्तुत की जिसका शीर्षक था प्रतिभू आवेदन पत्र। मैंने प्रतिभू शब्द का मतलब पूछा तो वकील साहेब ने कहा ज़मानत। मैंने कहा ज़मानत या बेल का अर्थ सब समझते हैं और इनका आम उपयोग होता है तो फिर एक कृत्रिम शब्द की क्या आवश्यकता ?
इस प्रकार एक ऐसी नक़ली भाषा बना दी गयी जिसे समझने में अक्सर कठिनाई होती है।
कई हिंदी की पुस्तकें पढ़ना आम आदमी के लिए कठिन होता है। अदालत में कई हिंदी की सरकारी विज्ञप्तियों को समझना मैंने मुश्किल पाया।
यह ग़लत फहमी है कि विदेशी शब्द आने से देशी भाषा कमज़ोर हो जाती है। अंग्रेजी भाषा में अनेक फ्रेंच जर्मन अरबी और हिंदुस्तानी शब्द आये। इससे अंग्रेजी और शक्तिशाली हुई, कमज़ोर नहीं।
इसी प्रकार हिंदुस्तानी में अरबी फ़ारसी और अन्य भाषाओँ के शब्द आये जिससे वह और शक्तिशाली हुई। इसलिए जो विदेशी भाषा के शब्द बोलचाल की भाषा में आ गए हैं उन्हें घृणापूर्वक निकालना मूर्खता है।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
लेखक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन और सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।