सुप्रसिद्ध कवि अप्रसिद्ध कवियों की कवितायें नहीं पढ़ते
अप्रसिद्ध कवियों की कवितायें पढ़ने से
सुप्रसिद्ध कवियों के अहम के पतित होने का डर होता है...
सुप्रसिद्ध कवि याद करते हैं अपने अप्रसिद्धि के समय को..
कितना तो मिलने जाया करते थे वे प्राय: ..
अपने से अधिक सुप्रसिद्ध कवियों से विनीत भाव के साथ..
अकादमी और पत्रिकाओं के दफ़्तरों की
कितनी तो यात्रायें करते थे सम्पादकों से सम्पर्क बनाने को...
सुप्रसिद्ध कवि भूल नहीं पाते अपने सुप्रसिद्ध होने के लिये
किये गये जोड़-तोड़ के वे तमाम प्रयत्न
कि अपनी उच्च सेवा में रहते कितनों के काम साधे उन्होंने
सुप्रसिद्धों की संगत में बने रहने के लिये
कितनी तो हाँ में हाँ मिलाई अपने से अधिक सुप्रसिद्धों की...
और आज के ये अप्रसिद्ध कवि चाहते हैं कि अभी पढ़ लें
हम उनकी कवितायें बिना जान-पहचान
आख़िरकार सुप्रसिद्धि का भी तो है कुछ रुतबा और मूल्य ...
कैलाश मनहर
(प्रस्तुति डॉ. कविता अरोरा)