/hastakshep-prod/media/post_banners/6PntFgV3iExjK9XzbNcL.jpg)
Kejriwal and Aam Aadmi Party are part of RSS's Plan B!
इतना मत चाहो वो बेवफा हो जाएगा...
बशीर बद्र साहब की इन पंक्तियों की चलती फिरती मिसाल आज कल दिल्ली में इलेक्शन के माहौल में देखने को मिल रही है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को लेकर लोग ऐसा प्रचार कर रहे हैं कि ऐसा लगता है कि पिछली सरकारों ने कुछ किया ही नहीं और इस सरकार ने दिल्ली को फर्श से उठा कर अर्श पर बिठा दिया है। इन सब बातों का असर ये हुआ है कि दिल्ली भले अर्श पर ना पहुंची हो, मगर आम आदमी पार्टी के विधायकों के दिमाग़ ज़रूर अर्श पर पहुंच गए हैं और ये चीज़ अब उनके व्यवहार में भी दिखने लगी है।
अब रही बात काम की, तो इस बात से कोई झूठे से झूठा शख़्स भी इंकार नहीं कर सकता कि शीला दीक्षित ने दिल्ली में जो काम किया था वो आज उनके जाने के बाद भी हर गली, नुक्कड़, चौराहे, सड़क, फ्लाई ओवर, मेट्रो से चिल्ला चिल्ला कर बोलता है।
शीला दीक्षित को अगर उनके कार्यकाल में हुए काम के आधार पर आंका जाता तो वो चौथी बार फिर से मुख्यमंत्री बनतीं, मगर उस वक़्त देश में एक ऐसी हवा चल रही थी जिसका असर उन पर भी हुआ और वो चुनाव हार गयीं। केंद्र में कांग्रेस सत्ता में थी और पूरे देश में कांग्रेस विरोधी माहौल बना हुआ था, जिसका ख़ामियाज़ा दिल्ली की राज्य सरकार को भी भरना पड़ा हालांकि उसका उन मुद्दों से कोई लेना देना ही नहीं था, बस ऐसे ही हुआ कि गेहूं के साथ घुन पिस गया और इन सब के पीछे आरएसएस प्रायोजित अन्ना हज़ारे आंदोलन था जिसने एक ऐसा भ्रम पैदा कर दिया था लोगों में कि अब अगर एक दिन भी ये सरकार देश में रह गई तो देश ख़त्म हो जाएगा, ये बात और कि आज 6-7 साल बाद देश वाक़ई ख़त्म होता दिख रहा है।
अरविंद केजरीवाल भी उसी आंदोलन की पैदावार हैं, तो क्या उन्हें ये मालूम नहीं रहा होगा कि ये आंदोलन किसकी शह और संसाधनों से चल रहा है, ये तो वैसे ही हुआ कि चोरी के पैसों से आप धर्मशाला खोल लो और अपने आप को बहुत नेक साबित करो।
मुझे तो ऐसा लगता है कि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी आरएसएस के प्लान बी का हिस्सा है, जिसको बीजेपी की नाक में नकेल डालने के लिए खड़ा किया गया है क्योंकि आरएसएस हमेशा शक्ति के संतुलन को बनाए रखना चाहती है, वो कभी भी बीजेपी को अपने से ऊपर नहीं उठने देगी।
केजरीवाल जिस फ़सल की पैदावार हैं उसका असर गाहे बगाहे उनकी बातों में दिख जाता है जैसे उन्होंने शाहीन बाग में हो रहे आंदोलन को लेकर कही कि ये सिर्फ़ चुनाव तक चलेगा या अगर दिल्ली पुलिस मेरे अधीन होती तो दो दिन लगते रोड खुलने में, ऐसा कहते हुए वो ये भूल जाते हैं कि वो खुद ऐसे आंदोलनों की वजह से ही आज मुख्यमंत्री बने हुए हैं, मतलब दोनों हाथों में लड्डू चाहिए।
मुझे आज भी 2019 लोकसभा चुनाव के बाद उनका दिया हुआ बयान याद है जिसमें उन्होंने कहा था कि मुसलमानों ने हमें वोट नहीं दिया, मतलब हार का ठीकरा मुसलमानों पर फोड़ दिया।
जब विधानसभा में 67 सीटें मिली थी तब तो ये नहीं कहा था कि मुसलमानों ने हमें जिता दिया, मीठा मीठा गप गप और कड़वा कड़वा थू थू, वाह भाई वाह!!
इन सब बातों का मतलब ये नहीं है कि आप आम आदमी पार्टी को वोट मत दीजिए, हर इंसान अपनी राय और पसंद नापसंद के लिए स्वतंत्र है, हो सकता है मैं भी उसी को वोट दूँ क्योंकि हमारे पास अंधों में काना राजा चुनने का ही विकल्प है मगर ऐसा मत कीजिए कि इनको सर पर बिठा लीजिए या ऐसे पेश करिए कि ये एकदम दूध के धुले हुए हैं और दिल्ली इनके बग़ैर चल नहीं सकती और सबसे ख़ास बात, ये भावना कभी भी मत आने दीजिए अपने मन में कि कोई भी नेता काम करके या सब्सिडी देकर एहसान कर रहा है उसको उसी काम के लिए वहां भेजा गया है और वो हमारे ही पैसे हम पर खर्च कर रहा है ना कि अपनी जेब से!
डॉ सैय्यद ज़ियाउल अबरार हुसैन
डॉ सैय्यद ज़ियाउल अबरार हुसैन एक फार्मेसी शोधकर्ता हैं जो कि वर्तमान में गुड़गांव में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं तथा सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विषयों में रुचि रखते हैं और लेख लिखते हैं।