श्री अशोक पांडे जी की यह पड़ताल जरूर पढ़ें। दिल्ली के दो मुहल्ला क्लीनिक के डॉक्टर पहले संक्रमित हुए और उनसे सैकड़ों। दिल्ली सरकार के अधिकांश अस्पताल में डॉक्टर व स्टाफ संक्रमित हैं।
कैंसर अस्पताल, जहांगीरपुरी वाला अस्पताल बन्द करना पड़ा। सारी दिल्ली में कोरोना भयंकर है, देश के 10 फीसदी मरीज और 5.65 प्रतिशत मौत दिल्ली से हैं।
ऐसे में दिल्ली के पोस्टरबॉय के स्वास्थ्य सेवा सुधार के दावे की जमीनी हक़ीक़त(The ground reality of health care reform claims in Delhi) अशोक का आकलन : --
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केजरीवाल ने कल कहा कि 70 साल में कुछ नहीं हुआ, उन्होंने पाँच-छह साल में जो किया उसी के भरोसे कोविड-19 से लड़ रहे हैं। दिल्ली सरकार की वेबसाइट कोविड-19 का इलाज़ कर रहे हॉस्पिटल्स के बारे में कुछ और कहती कहती है -
•GTB हॉस्पिटल बना 1987 में 350 बेड्स हैं। 2015 के बाद बढ़त का कोई ज़िक्र वेबसाइट पर नहीं।
•डॉ बाबा साहब अम्बेडकर हॉस्पिटल 1991 में बना। 500 बेड से शुरुआत हुई और अब भी उतने ही हैं। 2015 के बाद की कोई रिपोर्ट वेबसाइट पर नहीं।
•जीबी पंत हस्पताल 1961 में बना तब 230 बेड थे। 2014 में बढ़ाकर क्षमता 641 बेड की है। उसके बाद की कोई रिपोर्ट नहीं।
दीनदयाल उपाध्याय हॉस्पिटल 1970 में 50 बेड से शुरू हुआ। 1987 में 500 बेड किए गए। 1998 से यह चौबीस घंटे खुलने लगा। 2008 में क्षमता बढ़ाकर 640 बेड की गई। उसके बाद कोई रिपोर्ट नहीं।
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लोकनायक हस्पताल 1936 में बना था। 2014-15 के बाद किसी तरह की क्षमता वृद्धि की कोई रिपोर्ट नहीं।
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तो वास्तविकता यह है कि दिल्ली में कोविड-19 का इलाज़ पूरी तरह 2014-15 के पहले के बने हस्पतालों के भरोसे है। केजरीवाल साहब के बनाए मोहल्ला क्लिनिक बंद से पड़े हैं। पूरी दिल्ली रेड ज़ोन में है। लेकिन मीडिया मैनेजमेंट और क्रेडिट लूटने से उन्हें कौन रोक सकता है?
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(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी की एफबी पोस्ट का संपादित अंश साभार)