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केजरीवाल की बदलती हुई अस्मिता को पहचानो ! केजरीवाल जान लो यह बेवकूफों का देश नहीं है

केजरीवाल की बदलती हुई अस्मिता : केजरीवाल आम आदमी नहीं है, मुख्यमंत्री हैं। केजरीवाल सरकार चला रहे हैं। चुनाव जीतते ही उनकी अस्मिता में अचानक बदलाव आ गया है। यह उनके जीवन,राजनीति और समूचे व्यक्तित्व में आया पैराडाइम शिफ्ट है।

जनविरोधी होने का ऐसा साहस भाजपा भी नहीं कर सकती, जैसा केजरीवाल करते हैं

केजरीवाल जान लो यह बेवकूफों का देश नहीं है

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मीडिया केजरीवाल के भोंपू की तरह प्रचार कर रहा है

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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) कमाल का भाषण देते हैं, ईमानदार हैं। चिंता हमें मीडिया को देखकर हो रही है, वह उनका भोंपू की तरह प्रचार कर रहा है। यह सच है कि केजरीवाल ने अपने साथ जिन विधायकों को विधानसभा के अंदर पहुँचा दिया है, वे अब आम आदमी नहीं रहे। वे विधायक हैं। यह उनकी नई पहचान है। कल तक जो गृहिणी थी, या पत्रकार था, वह अब विधायक है।

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Kejriwal is not a common man, he is the Chief Minister.

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केजरीवाल आम आदमी नहीं है, मुख्यमंत्री हैं। केजरीवाल सरकार चला रहे हैं। चुनाव जीतते ही उनकी अस्मिता में अचानक बदलाव आ गया है। यह उनके जीवन,राजनीति और समूचे व्यक्तित्व में आया पैराडाइम शिफ्ट है।

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सवाल यह है एक साधारण गृहिणी जब विधायक बन जाती है तो उसकी पहचान बदलती है या नहीं ?

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कल तक मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) समाजसेवक थे, एनजीओ चलाते थे, अराजनीतिक थे। लेकिन आज विधायक हैं, राजनीति करते हैं, मंत्री हैं। यह पैराडाइम शिफ्ट है, और इससे उनकी अस्मिता का एक नया आयाम सामने आया है। यह शुभलक्षण है।

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केजरीवाल कल तक सामान्य नागरिक थे, लेकिन अब मुख्यमंत्री हैं

जो विधायक है, मंत्री है, मुख्यमंत्री है, वह अब आम आदमी नहीं रहा। वह कहां सोता है,कहां रहता है, क्या खाता है, यह गैर जरूरी तत्व है, जरूरी तत्व है उसका विधायक बनना। विधायक बनते ही उसकी पहचान का रूपान्तरण हुआ है। और यह जनसमर्थन से बदली पहचान है। कल तक केजरीवाल सामान्य नागरिक थे, लेकिन आज मुख्यमंत्री हैं। मुख्यमंत्री, विधायक या मंत्री का अर्थ है कि वे सरकार चला रहे हैं और सरकार का काम है सत्ता का प्रबंध करना।

अब सत्ता का अंग बन गए हैं केजरीवाल

वे कल तक आम जनता का अंग थे, लेकिन विधायक बनते ही सत्ता का अंग बन गए हैं। वे भत्ते लें या न लें, गाड़ी-बंगला लें या नहीं, लेकिन वे तो विधायक हैं, मुख्यमंत्री हैं। यह सत्ता का क्षेत्र है। यह आप पार्टी के चुने हुए विधायकों की पहचान में आया नया पैराडाइम शिफ्ट है। इसे मीडिया में आम आदमी, आम आदमी कहकर छिपाया नहीं जा सकता।

अरविंद केजरीवाल ने 2 जनवरी 2014 में दिल्ली विधानसभा में आम आदमी की "अव्वल" परिभाषा दी। उन्होंने कहा 'आम आदमी वह है जो ईमानदार है।'

केजरीवाल, तुम पढ़े-लिखे, चमत्कार -प्रेमी, भगवान प्रेमी, आस्तिक आदमी हो ! अर्थशास्त्र भी बढ़िया जानते हो ! अनेक नामी-गिरामी प्रोफेसरों की सलाहकार मंडली भी तुम्हारे पास है! और तुम भी बहुत सुलझे हुए अक्लमंद हो।

लेकिन यह क्या कह डाला तुमने कि जो ईमानदार है वह आम आदमी है। यानी घासीराम और घनश्यामदास बिड़ला में कोई अंतर नहीं !! रतन टाटा और रतनू खां में कोई अंतर नहीं ! कमाल का राजनीति विज्ञान पढ़ा है तुमने केजरीवाल!!

केजरीवाल जान लो यह देश बेवकूफों का नहीं है। ईमानदारी को यदि आधार बनाओगे तो तुम्हारे लिए आम आदमी एक नैतिक पहचान मात्र होगा। आम आदमी नैतिकता नहीं है।

यह ईमानदारी और बेईमानी का मामला नहीं। जरा बताओ तो पहचान का आधार क्या नैतिकता हो सकती है ? आम आदमी एक सामाजिक-आर्थिक केटेगरी है। यह नैतिक केटेगरी नहीं है। आम आदमी को नैतिक केटेगरी बनाकर तुम आम आदमी की अवधारणा को भ्रष्ट कर रहे हो। आम आदमी की पहचान का इस तरह अवमूल्यन मत करो।

हमारे राजनेता शब्दों के अवमूल्यन के लिए लंबे समय से शब्द-अपराधी की सूची में हैं

केजरीवाल यह ठीक है तुम दिल्ली के मुख्यमंत्री हो।लेकिन याद करो, शब्दों के अवमूल्यन के लिए हमारे राजनेता लंबे समय से शब्द-अपराधी की सूची में हैं। आज तुमने भी शब्द-अपराधी की सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया। मैं तुमको दिलो-जान से चाहता हूँ और तुम्हारी ईमानदारी का कायल हूँ, लेकिन तुमको भाषा में भ्रष्टाचार फैलाने का हक किसी ने नहीं दिया। तुमको सरकार बनाने का बहुमत मिला है, शब्दों को भ्रष्ट करने का बहुमत नहीं मिला।

राजनेता आए दिन हमारी राजनीतिक पदावलियों को भ्रष्ट-विद्रूप करते रहे हैं और मैं उम्मीद कर रहा था कि कम से कम तुम भाषा में भ्रष्टाचार नहीं फैलाओगे।

केजरीवाल जान लो, शब्दों को अर्थहीन बनाना सबसे बड़ा सामाजिक अपराध है, कृपा करके यह अपराध आगे मत करना वरना आम आदमी तुमको कब्र मे सुला देगा।

जान लो समाजवादियों ने अपने कर्मों और भाषणों से समाजवाद को भ्रष्ट किया था और वे खंड-खंड हो गए।

श्रीमती गांधी ने वोटों के स्वार्थ के लिए समाजवाद को भ्रष्ट किया और उसका हश्र आपात्काल तक ले गया।

यह भी जान लो गांधीवादी समाजवाद का भाजपाई नारा गांधी और समाजवाद दोनों को रसातल में ले गया।

ज्यादा पीछे मत जाओ, कांग्रेस ने कुछ साल पहले नारा दिया था 'कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ।' यह आम आदमी के दुरुपयोग की आदर्श मिसाल थी। कांग्रेस 10साल शासन में रहने के बावजूद देश में मुँह दिखाने लायक नहीं बची।

मोदी ने विकास का नारा दिया और विकास को विध्वंस में बदल दिया।

कहने का अर्थ है शब्दों को विकृत न करो। अवधारणाओं को विकृत न करो। शब्दों के विकृतिकरण का काम आए दिन मोहन भागवत और उनकी संघी मंडली कर रही है, तय मानो उनका विनाश तय है।

शब्दों का अर्थ नष्ट करने वालों को आम जनता कब्र में सुलाना जानती है।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

 

 

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