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बिना ऑक्सीजन और बिना दवाई के होने वाली हत्याएं हैं : पूछता है भारत; काली टोपी नेकरधारी बटुक कहाँ हैं !!

हमारा दुर्भाग्य है कि राष्ट्र सिर्फ लाठी भांजने वालों के हाथ में चला गया है

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चुनाव के बीच भी जब नरेंद्र मोदी दलबदल सहित बंगाल में कोरोना की घर घर डिलीवरी करने में लगे थे तब चुनाव के बावजूद वहां की जनवादी नौजवान सभा, एसएफआई और जनवादी महिला समिति के रेड वालंटियर्स संक्रमण से पीड़ित लोगों को अस्पताल पहुंचाने, उनके लिए बैड और ऑक्सीजन के बंदोबस्त के लिए जूझ रहे थे।

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केरल, जहां की पिनाराई विजयन की अगुआई वाली वाम जनवादी सरकार ने सारे इंतजाम सही समय पर कर रखे हैं वहां भी इन्हीं संगठनों के युवा कार्यकर्ता साफ़ सफाई, सेनीटेशन की जाग्रति और बचाव प्रबंधों की जानकारी आम करने में जुटे हुए थे।

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बिहार से लेकर उत्तरप्रदेश, झारखण्ड से लेकर उत्तराखण्ड, ओड़िसा से लेकर कर्नाटक, तामिलनाडु, गुजरात तक एक भी प्रदेश का नाम लीजिये वाम जनांदोलनों के कार्यकर्ता और असंख्य वामोन्मुखी नागरिक संगठन अपनी पूरी ताकत के साथ कोरोना महामारी पीड़ितों की सेवा, उन्हें राहत पहुंचाने में भिड़े हुए नजर आएंगे। खुद के संक्रमित होने की सारी जोखिम उठाते हुए, अपने घरों में पड़े संक्रमितों की सुश्रुषा से चुराते हुए।

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मध्यप्रदेश के ग्वालियर में ऑक्सीजन, प्लाज्मा, बैड, वेंटीलेटर और राशन के लिए लड़ने के साथ साथ सीपीआई(एम) का जिला दफ्तर लगभग चौबीसों घंटे चलने वाला लंगर बना हुआ है। दोनों वक़्त चाय और खाना बनाकर उसे अस्पतालों में बाहर बैठे मरीजों के अटेंडेंट्स और होम आइसोलेशन में अकेले पड़े नागरिकों के घर तक पहुंचाने में कामरेड्स लगे हुए हैं।

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छत्तीसगढ़ की कोरबा नगर निगम में सीपीएम की दोनों पार्षद, सेनीटाइज़ेशन के पूरे अमले को साथ लेकर अपने अपने वार्ड में घर-घर सेनीटाइज करने का काम खुद अपनी देखरेख में करवा रही हैं, खुद भी कर रही हैं।

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अनेकों स्वयंसेवी संगठन और सेवाभावी युवाओं अनगिनत दल, बिना किसी के कहे, आपदा सहायता समूह बनाकर देश भर में जहां से भी पुकार आती है वहां मदद उपलब्ध कराने के लिए ऐसी कातर गुहार लगा रहे हैं जैसे खुद उनके या उनके किसी घनिष्ठ परिजन की जान खतरे में हैं। ये इतने अधिक है कि इन सबका ब्यौरा यहां नहीं दिया जा सकता।इनमे थिएटर से जुड़े लोगों से लेकर शिक्षा, साहित्य, चिकित्सा, ट्रेड यूनियन, किसान महिला संगठन यहां तक कि छोटी छोटी बच्चियों के भी नन्हें-नन्हें समूह है। जिन्हें यह सब करना था वे भले कारपोरेट की तिजोरी के दरबान बने खड़े हों - राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व की सारी चौंध भले टीका कंपनियों के मुनाफों की काली कोठरी में कैद हो गयी हो; जुगनुओं की यह फ़ौज देश भर में फैले असहायता और बदहवासी के अन्धकार को दूर करने की शक्तिभर कोशिशों में तल्लीन है। मानवता के प्रति समर्पित भारत के ये लोग असली भारत हैं।

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मगर इस सबके बीच जिनकी गैरहाजिरी सबसे ज्यादा साफ़ साफ़ दिख रही है वह है काली टोपी नेकरधारी बटुक !!

खुद को "विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन" कहने वाले आरएसएस के वे तथाकथित "स्वयंसेवक" जो आपदाओं के बीच फोटो खिंचाऊ दिखावे के मामले में हमेशा आगे रहे हैं, जो अपने गणवेश की हाफपैण्ट के फुल पैन्ट हो जाने के बावजूद पिछली 3-4 वर्षों में जब कभी आपदा वॉलन्टियरी के फोटो सेशन करते थे तब हाफ पैंट ही पहनकर फुटवा खिंचाते थे। ये नकली राष्ट्रभक्त राष्ट्र के अब तक की सबसे बड़ी विपदा में कही नजर नहीं आ रहे हैं। सौ सालों की सबसे बड़ी महामारी में पूरी तरह नदारद हैं । दिखावे के लिए भी नहीं दिखना चाहते। क्यों ? इसकी एक वजह तो यह है कि सेवा, राहत. मदद उनके डीएनए में ही नहीं है। उनका एकमात्र नारा था "आरामः दक्षः - कुर्सी हमारा लक्ष्य:", और अब जब कुर्सी का मोक्ष मिल ही गया तो फिर घण्टा बजाने का स्वांग रचाने की जरूरत ही कहाँ बची।  

और फिर इधर तो और भी झंझट वाला मसला है। जब खुद प्रधानमंत्री द्वारा गठित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की समिति कोरोना की दूसरी महा लहर के आने की चेतावनी दे रही थी। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया के सारे वायरोलॉजिस्ट अलर्ट जारी कर रहे थे कि भारत में कोरोना की सुनामी आने वाली है। तत्काल जरूरी बंदोबस्त किये जाने चाहिए। तब भक्तों के ब्रह्मा और नेकरधारियों के सरगना प्रधानमंत्री अपनी आधी बड़ी दाढ़ी के साथ दिए प्रवचन में दावा कर रहे थे कि भारत में उन्होंने कोरोना को पूरी तरह ख़त्म कर दिया। कि दुनिया के 155 देशों को उन्होंने कोरोना से लड़ने में मदद की है। वे दुनिया के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और बाकी देशों और उनकी चेतावनियों का मखौल उड़ा रहे थे। ब्रह्मा जी के इस दावे को लेकर काली टोपी नेकर धारी शाखा शृगाल पूरे देश में "मोदी है तो मुमकिन है" की दुंदुभि पीट चुके है। घण्टा, घंटरियाँ, ताली थाली लोटा ग्लास बाल्टी बजवाने से उपजी झंकारों और गौमूत्र, गंगा स्नान और लाला रामदेव की कोरोनिल के औषध चमत्कारों को बार बार दोहरा चुके हैं। अब किस मुंह से कहें कि आयी तो सुनामी ही है। इसलिए इस बार राहत और मदद की नौटंकी भी स्थगित।

इसके अलावा ऐसे किसी भी वालन्टियरी हस्तक्षेप की मदद तब पड़ती है जब कार्यपालिका ठप्प हो जाती है, जब सरकारें अपनी जिम्मेदारियां निबाहने में बुरी तरह असफल हो जाती हैं। अब की तो पूरा शीराजा ही बिखरा पड़ा है। इस बार विफलताओं के बहीखाते में इंदराज जनता या विपक्ष नहीं कर रहा। खुद कुनबे में ही भगदड़ मची हुयी है।

आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य के सम्पादक तरुण विजय ट्वीट कर बता रहे हैं कि उनकी सारी पहुँच और कोशिशों के बाद भी उनका अपना परिजन दिल्ली में बिना इलाज और ऑक्सीजन के मर गया। उत्तरप्रदेश के संक्रमित भाजपा विधायक अपनी ही सरकारों से याचना करते-करते मर रहे हैं।

भाजपा के ही नेता अपने परिजनों की दवा के लिए अपनी ही सरकार के मंत्रियों के दरवाजे पर जाकर लेटासन लगा रहे हैं। खुद नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक छन्नूलाल मिश्रा का परिवार बनारस में निजी अस्पतालों की लूट और अपने ही परिजनों की मौत से विचलित होकर बता रहा है कि मोदी के फोन के बाद भी उनकी बहू नहीं बची। आख़िरी वक़्त में उससे बात करने के लिए गयी बेटी से अस्पताल ने 1700 रूपये अलग से वसूल लिए।

जब देश में वैक्सीन जरूरी थी तब दुनियां में उसका निर्यात हो रहा था। नतीजा यह है कि अब देश में टीके के लाले पड़े हैं। इधर 1 मई से 18 वर्ष से ऊपर वालों के टीकारण की बड़बोली घोषणा होती है - उधर खुद भाजपा की राज्य सरकारें कहती हैं कि हमारे पास टीका आया ही नहीं है, लगेगा कैसे ?

इधर सीरम इंस्टीटूट के मालिक अदार पूनावाला को मोदी वाय श्रेणी की सुरक्षा देते हैं उधर वह सपरिवार छूमंतर होकर इंग्लैंड पहुँच जाता है और भारत को ठेंगा दिखाकर वहां 240 मिलियन पॉन्ड्स ( 24 अरब, 63 करोड़, 28 लाख, 80 हजार रु.) लगाकर ब्रिटैन में ही वैक्सीन बनाने का उद्योग लगाने और 6-7 हजार लोगों को रोजगार देने की घोषणा कर देता है।

भूटान जैसे अत्यंत नन्हें से देश सहित दुनिया भर के देश भारत के लिए मदद भेज रहे हैं। और मोदी की आत्मनिर्भरता वाले भारत की हालत यह है कि ऑक्सीजन न मिल पाने की वजह से हजारों भारतीय दम तोड़ चुके हैं। इस हाल में काली टोपी पहन नेकर बाँध कर जब शाखा बटुक अस्पतालों के बाहर जाएंगे तो जनता - ज्यादातर मामलों में इन्हें ही वोट देने वाली जनता - इनकी आरती भी उतार सकती है। इसलिए कौन जोखिम में पड़े - मगर बात इतनी ही नहीं है।

बिना ऑक्सीजन और बिना दवाई के होने वाली मौतें सामान्य मृत्यु नहीं हैं। ये हत्याएं हैं। एक हाईकोर्ट ने तो इसे नरसंहार तक की संज्ञा दी है।

नेकरिया पल्टन - जिससे जुड़े अनेक जन रेमडिसीवर इंजेक्शंस की कालाबाजारी और नकली दवाओं के कारोबार में पकडे भी गए हैं - के कथित राहत कामों में जुटने से मोदी सरकार की यह आपराधिक नाकामी भी उजागर होगी जिसे लेकर पूरी दुनिया चिंतित है मगर अपने भोंपू मीडिया की दम पर भारत में उस पर चर्चा रोकी जा रही है। ट्विटर और फेसबुक को ऐसी "हत्याओं" को उजागर करने वाली, आलोचनात्मक टिप्पणियां हटाने के लिए धमकाया जा रहा है।  

आपदायें अच्छे अच्छों के चेहरों से नकाब उतार देती - कोरोना आपदा ने विश्व के इस स्वयंभू सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन की नेकर उतार दी है।

बादल सरोज

सम्पादक लोकजतन

संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसान सभा

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