What you need to know about food waste and climate change
भोजन के खराब तथा व्यर्थ होने से बचाना, भारत में प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती और भोजन तथा पोषण सुरक्षा में सुधार लाने का अवसर है
नई दिल्ली, 19 अगस्त 2021- यूनाइटेड नेशंस इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी आकलन (एआर6) रिपोर्ट (Sixth Assessment (AR6) Report of the United Nations Inter-Governmental Panel on Climate Change (IPCC)) से इस बात की पुष्टि हो गई है कि वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियां भी जलवायु संकट का सामना करने जा रही हैं। यह रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग पर मानव के प्रभाव को स्पष्ट करती है।
पूरी दुनिया में प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन का 8% हिस्सा भोजन के खराब और व्यर्थ होने की वजह से पैदा होता है। भारत में खाद्य पदार्थों के खराब होने और उसे व्यर्थ फेंके जाने के कारण पड़ने वाले सामाजिक, पर्यावरणीय तथा आर्थिक प्रभावों और वर्तमान स्थितियों को समझने के लिए वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट इंडिया (World Resources Institute India-डब्ल्यूआरआई-इंडिया) ने 106 प्रकाशित तथा अप्रकाशित दस्तावेजों का सुव्यवस्थित ढंग से विश्लेषण करने के साथ-साथ क्षेत्र विशेष के विशषज्ञों से सलाह-मशवरा भी किया है। इस अध्ययन में फूड एंड लैंड यूज कोअलिशन (एफओएलयू) इंडिया का भी सहयोग मिला है।
यह अध्ययन अनुसंधान नीति तथा क्रियान्वयन के स्तरों पर मौजूद उल्लेखनीय खामियों को रेखांकित करता है, जिन पर सुव्यवस्थित ढंग से समाधान निकालना भारत में भोजन के खराब और व्यर्थ होने से बचाने के लिए आवश्यक है।
Food Loss and Waste in India: The Knowns and The Unknowns
डब्ल्यूआरआई इंडिया द्वारा किया गया ताजा अध्ययन 'फूड लॉस एंड वेस्ट इन इंडिया : द नोन्स एंड द अननोन्स’ भारत में भोजन के खराब और व्यर्थ होने की समस्या से निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार करने की एक महत्वपूर्ण बुनियाद उपलब्ध कराता है। यह इस समस्या की तीव्रता, उसके होने के प्रमुख स्थानों की पहचान और नुकसान के महत्वपूर्ण बिंदुओं तथा अनेक अन्य पहलुओं की समझ उपलब्ध कराता है।
डब्ल्यूआरआई इंडिया के बारे में
डब्ल्यूआरआई इंडिया एक शोध संगठन है जिसमें ऐसे विशेषज्ञ और स्टाफ कर्मी शामिल हैं, जो स्वस्थ पर्यावरण को बनाए रखने के लिए नेतृत्वकर्ताओं के करीबी सहयोग से बड़े विचारों को जमीन पर उतारने के लिए काम करते हैं।
एफओएलयू इंडिया के बारे में
फूड एंड लैंड यूज़ ऑफ वैल्यू (एफओएलयू) इंडिया दरअसल, काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद (आईआईएम-ए), द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट (टेरी), रिवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर नेटवर्क (आरआरएएन) तथा वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट इंडिया (डब्ल्यूआरआई) इंडिया द्वारा संयुक्त रुप से शुरू की गई एक पहल है।
अध्ययन में यह पाया गया कि :
- भारत में अध्ययन अधिकतर फसल कटने के बाद उसमें होने वाले नुकसान की मात्रा पर केंद्रित है, न कि खराब होने वाले भोजन पर। यहां तक कि फसल कटने के बाद होने वाले नुकसान में भी भोजन के खराब होने के गुणवत्ता संबंधी पहलू नजरअंदाज ही रह जाते हैं।
- हालांकि फसल कटने के बाद उसमें होने वाले नुकसान के आकलन के लिए राष्ट्रीय तथा उप-राष्ट्रीय स्तर पर शोध होते हैं। मगर उन तमाम अध्ययन के तथ्य परस्पर तुलना करने योग्य नहीं हैं, क्योंकि इन सभी अध्ययनों के लिए अलग-अलग मापदंड इस्तेमाल किए जाते हैं।
- घरेलू स्तर पर खुदरा तथा सेवा कार्यप्रणाली के स्तर पर भोजन के खराब होने के आंकड़ों पर कोई भी प्रयोगसिद्ध शोध लगभग नदारद है। भोजन के खराब होने से बचाने किए जाने वाले अधिकतर प्रयास मुख्य रूप से फूड बैंक या कंपोस्टिंग द्वारा व्यर्थ खाने के प्रबंधन पर ही केंद्रित होते हैं।
- भारत में भोजन के खराब और बेकार होने के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं को ज़्यादा खंगाला नहीं गया है। भोजन के खराब होने और व्यर्थ होने पर लिंग संबंधी अनुसंधान भी उपलब्ध नहीं है, और न तो प्रौद्योगिकी के सुधार में और न ही ऐसे भोजन के प्रबंधन के समाधान के लिए इन बातों को विचार के दायरे में लाया जाता है।
- खाद्य पदार्थों के संरक्षण से संबंधित नीतियां मुख्य रूप से फसल कटने के बाद उसके भंडारण संबंधी ढांचे, जैसे कि कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने पर केंद्रित है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए इस अध्ययन में भारत में खाद्य पदार्थों के खराब होने और उन्हें व्यर्थ फेंके जाने की समस्या से निपटने के लिए एक ऐसा रोड मैप तैयार करने का सुझाव दिया गया है जो अनुसंधानिक जानकारी की बुनियाद पर तैयार रणनीतियों तथा समाधानों पर आधारित हो और उसमें विभिन्न हितधारकों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी ध्यान में रखा जाए।
'फ्रेंड्स ऑफ चैंपियंस 12.3 इन इंडिया' : भोजन के खराब तथा व्यर्थ होने में कमी लाने के लिए की गई एक साझेदारी
डब्ल्यूआरआई इंडिया और एफओएलयू इंडिया ने एक दस्तावेज जारी करने और ‘चैंपियंस 12.3 स्ट्रेटजी ऑफ टारगेट मेजर एक्ट’ पर विचार विमर्श के लिए हाथ मिलाए हैं। इस विचार-विमर्श में भोजन के सड़ने तथा उसके नुकसान को आधा करने से संबंधित सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स के लक्ष्य 12.3 को अपनाने, खराब होने वाले भोजन की मात्रा को नापने और जिन स्थानों पर ज्यादा मात्रा में भोजन खराब होता है वहां पर इसे रोकने के लिए कदम उठाने जैसे पहलू शामिल हैं। इस कार्यक्रम का समापन फ्रेंड्स ऑफ चैंपियंस 12.3 इन इंडिया में शामिल होने के आह्वान के साथ होता है। यह विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे ऐसे लोगों का एक समूह है जो भोजन के सड़ने और व्यर्थ होने में कमी लाने के लिए संकल्पबद्ध हैं।
डब्ल्यूआरआई इंडिया की सीनियर मैनेजर मोनिका अग्रवाल ने कहा
"भारत में एक बड़ी मात्रा में भोजन कभी इस्तेमाल ही नहीं हो पाता, क्योंकि वह खेत से थाली तक पहुंचने की प्रक्रिया के दौरान बेकार हो जाता है। यह भोजन की मात्रा के मुकाबले ज्यादा बड़ा नुकसान है क्योंकि यह हमारे लोगों के स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी, पेड़-पौधों, जानवरों, मिट्टी, पानी और जैव विविधता जैसी एक दूसरे से जुड़ी चीजों से संबंधित मामला है। भोजन के उत्पादन, उसके भंडारण, उसे लाने ले जाने, उसका प्रसंस्करण और वितरण करने तथा उसके इस्तेमाल के दौरान होने वाली उसकी बर्बादी को कम करने के लिए हमें ठोस बहुपक्षीय प्रयास करने की जरूरत है।"
डब्ल्यूआरआई इंडिया के सीईओ डॉक्टर ओ. पी. अग्रवाल ने कहा
"इस मुद्दे पर डब्ल्यूआरआई इंडिया द्वारा काम किये जाने की प्रेरणा यह है कि भोजन के खराब और बेकार होने में बड़े पैमाने पर कमी लाई जाए। यह वर्ष 2050 तक स्वास्थ्य परक आहार का लक्ष्य हासिल करने के लिए सतत खाद्य प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण पैमाना है। भोजन के खराब होने में कमी लाना जमीन, पानी और हवा पर पड़ रहे दबाव को कम करने का एक अवसर है। इससे भोजन की उपलब्धता भी बढ़ेगी और किसानों, उपभोक्ताओं तथा संबंधित अन्य पक्षों की आमदनी में भी सुधार होगा। यह सही है कि इससे संबंधित शोधों में कई खामियां हैं मगर फसल कटने के बाद होने वाले खाद्य पदार्थों के नुकसान को लेकर उल्लेखनीय जानकारियां हैं, जिन पर सुव्यवस्थित ढंग से काम करने की जरूरत है।’’
गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक तथा डब्ल्यूआरआई इंडिया के निदेशक मंडल के अध्यक्ष जमशेद गोदरेज ने कहा
‘‘मिलने वाले आर्थिक लाभों और जलवायु संबंधी फायदे को देखते हुए डब्ल्यूआरआई इंडिया ने भोजन के खराब और बेकार होने पर बहुत सही समय पर अध्ययन शुरू किया है। भारत में फ्रेंड्स ऑफ चैंपियंस 12.3 नामक क्षेत्रीय नेटवर्क का गठन खाद्य पदार्थों के उत्पादन, वितरण तथा उपभोग का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने में अनुसंधान और कार्य संबंधी ढांचा तैयार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। मैं आशा करता हूँ कि यह नेटवर्क इस दिशा में सहयोग और समन्वित कार्रवाई को बढ़ावा देगा।’’
डब्ल्यूआरआई इंडिया में सस्टेनेबल लैंडस्केप एंड रीस्टोरेशन शाखा की निदेशक डॉक्टर रुचिका सिंह ने कहा
"भोजन को खराब और बेकार होने से बचाना जलवायु के लिए अच्छा होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय फायदों को हासिल करने का एक अच्छा मौका भी है। ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका में सुधार और हरित उद्यमिता को तैयार करने के अवसर के असीमित फायदे हैं और इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भोजन को खराब होने से बचाने को हर व्यक्ति का एजेंडा बनाने का यह सही समय है।’’
भारत में एफओएलयू के कंट्री कोआर्डिनेटर डॉक्टर जयहरी केएम ने कहा
"एफओएलयू भोजन के खराब और बेकार होने में कमी लाने को पूरी दुनिया में भोजन तथा पोषण सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर देखता है। भारतीय कृषि तथा निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में वस्तु आपूर्ति श्रृंखलाओं के प्रबंधन में व्याप्त जटिलताओं को देखते हुए एफओएलयू फ्रेंड्स ऑफ चैंपियन 12.3 साझेदारी के तहत एक ऐसा मजबूत कार्य गठजोड़ बनाने का प्रयास कर रहा है, जिसमें अधिक व्यापक सहभागिता और लक्ष्य पर केंद्रित रवैया शामिल हो। मुझे आशा है कि राष्ट्रीय तथा उप-राष्ट्रीय सरकारें इस गठबंधन में शामिल होंगी।’’