जानिए, उत्तर प्रदेश में कितनी सुरक्षित हैं दलित महिलायें? क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े

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Guest writer
06 Oct 2020
जानिए, उत्तर प्रदेश में कितनी सुरक्षित हैं दलित महिलायें? क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े

Know, how safe are Dalit women in Uttar Pradesh? What are the official figures

हाल में राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो (National Crime Research Bureau) द्वारा क्राइम इन इंडिया- 2019 रिपोर्ट (Crime in India - 2019 report) जारी की गयी है. इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 में पूरे देश में दलित उत्पीड़न के अपराध (Crimes of dalit oppression) के जो आंकड़े छपे हैं उनसे यह उभर कर आया है कि इसमें उत्तर प्रदेश काफी आगे है.

उत्तर प्रदेश की दलित आबादी (Dalit population of Uttar Pradesh) देश में सब से अधिक आबादी है जो कि उत्तर प्रदेश की आबादी का 20.7% प्रतिशत है.

Uttar Pradesh 7th in Dalit harassment cases at national level

रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2019 में दलितों के विरुद्ध उत्पीड़न के कुल 45,935 अपराध घटित हुए जिन में से उत्तर प्रदेश में 11,829 अपराध घटित हुए जो कि राष्ट्रीय स्तर पर कुल घटित अपराध का 25.8 प्रतिशत है जोकि राष्ट्रीय स्तर पर दलितों की 20.7% प्रतिशत है तथा 5% अधिक है.

इस अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक लाख दलित आबादी पर घटित अपराध की दर 22.8 रही जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 28.6 रही जोकि राष्ट्रीय दर से 6% अधिक है.  

इस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर दलित उत्पीड़न के मामलों में उत्तर प्रदेश का 7वां स्थान है.

यह भी उल्लेखनीय है कि 2016 की राष्ट्रीय दर 20.3 के मुकाबले में यह काफी अधिक है. इन आंकड़ों से एक बात उभर कर आई है कि उत्तर प्रदेश में दलित एवं दलित महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि दलित महिलाओं पर अत्याचार के मामलों की संख्या और दर राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है.

अब अगर दलितों पर राष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश में घटित अपराधों के श्रेणीवार आंकड़ों का विश्लेषण किया जाये तो स्थिति निम्न प्रकार है:-

एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम(आईपीसी सहित) के अपराध:

वर्ष 2019 में पूरे देश में इस अधिनियम के अंतर्गत 41,793 अपराध घटित हुए जबकि इसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में 9,451 अपराध घटित हुए. इन अपराधों की राष्ट्रीय दर (प्रति 1 लाख आबादी पर) 20.8 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 22.9 थी जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध का लगभग 22.6% है. इस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर इन अपराधों के मामलों में उत्तर प्रदेश का 6वां स्थान है जोकि काफी ऊँचा है.

एससी/एसटी एक्ट के मामले (आईपीसी के बिना) :

इस शीर्षक के अंतर्गतपूरे देश में 4129 मामले घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 2378 मामले रहे जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का लगभग 58%है. इस अपराध में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश चौथे स्थान पर है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 2.1 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 5.7 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित कितने सुरक्षित हैं.

एससी/एसटी एक्ट के मामले (अन्य अपराध) :

इस शीर्षक के अंतर्गतपूरे देश में2042 मामले घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 1281 मामले रहे जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का लगभग 63%है. इस अपराध में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 1.0 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 3.1 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित कितने सुरक्षित हैं.

हत्या :

वर्ष 2019 में पूरे देश में दलितों की हत्यायों की संख्या (Number of killings of Dalits across the country) 923 थी जिन में अकेले उत्तर प्रदेश में 219 हत्याएं हुयीं. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.4 के विपरीत उत्तर प्रदेश की दर 0.5 रही जो कि राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध का लगभग 24% है. राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश का चौथा  स्थान है. इससे स्पष्ट है कि दलित हत्यायों के मामले में उत्तर प्रदेश काफी आगे है.

हत्या का प्रयास (धारा 307 आईपीसी) :

2019 में पूरे देश में दलितों की हत्या के प्रयास की संख्या 780 थी जिन में अकेले उत्तर प्रदेश में 110 थी. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.4 के विपरीत उत्तर प्रदेश की दर 0.3 रही जो कि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का 14% है. इससे स्पष्ट है कि दलित हत्या के प्रयास के मामले में भी उत्तर प्रदेश काफी आगे है.

गंभीर चोट :

उपरोक्त अवधि में पूरे देश में गंभीर चोट के 1,050 मामले दर्ज हुए जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में 281 मामले घटित हुए. इसकी राष्ट्रीय दर 0.5 रही जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.7 रही जो कि राष्ट्रीय दर से काफी अधिक है.

अपराधिक अभित्रास (506 आईपीसी) :

इस अपराध के अंतर्गतपूरे देश में3083 मामले घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 1109 मामले रहे जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का 36%है. इस अपराध में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश 5वें स्थान पर है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 1.5 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 2.7 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित कितने सुरक्षित हैं.

अन्य आईपीसी अपराध :

इस अपराध के अंतर्गतपूरे देश में 13135 मामले घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 4057 मामले रहे जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का 31%है. इस अपराध में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश चौथे स्थान पर है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 6.5 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 9.8 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित कितने सुरक्षित हैं.

इरादतन प्रकोपित अथवा अपमानित करने का अपराध :

इस शीर्षक के अंतर्गतपूरे देश में 2011 मामले घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 1076 मामले रहे जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का लगभग 54%है. इस अपराध में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश चौथे स्थान पर है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 1.0 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 2.6 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित कितने सुरक्षित हैं.

महिलाओं पर लज्जाभंग के इरादे से हमला :

इस अपराध के अंतर्गतपूरे देश में3375 मामले घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 776 मामले रहे जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का 23%है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 1.7 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 1.9 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है.

महिलाओं को परेशान करने के इरादे से हमला (धारा 354 ए) :

इसके अंतर्गत पूरे देश में976 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 226 मामले रहे जोकि कुल अपराध का 23% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.3 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.5 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है.

महिलाओं को वस्तरहीन करने के इरादे से बलप्रयोग (धारा 354 बी) :

इस शीर्षक अंतर्गत पूरे देश में266 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 104 मामले रहे जोकि कुल अपराध का 39% रहा. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.1 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.3 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है.

बच्चों पर पोक्सो का अपराध :

इस शीर्षक अंतर्गत पूरे देश में 429 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 90 मामले रहे जोकि कुल अपराध का 20.9% रहा. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.2 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.2 रही जो राष्ट्रीय दर के बराबर है.

महिलाओं को अपहरण धारा 363,........369) :

इस शीर्षक अंतर्गत पूरे देश में916 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 449 मामले रहे जोकि देश में कुल अपराध का 49% है . इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.5 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 1.1 रही जो राष्ट्रीय दर से बहुत ऊँची है.

महिलाओं को अपहरण (धारा 363) :

इसके शीर्षक अंतर्गत पूरे देश में392 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 196 मामले रहे जोकि देश में कुल अपराध का 49.5% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.2 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.5 रही जो राष्ट्रीय दर से बहुत ऊँची है.

अन्य अपहरण ;

इस शीर्षक अंतर्गत पूरे देश में313 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 176 मामले रहे जोकि देश में कुल अपराध का 56% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.2 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.4 रही जो राष्ट्रीय दर से बहुत ऊँची है.

महिलाओं का विवाह के लिए अपहरण (366) :

वर्ष 2019 में पूरे देश में विवाह के लिए अपहरण के कुल 357 मामले घटित हुए जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में 243 अपराध घटित हुए जोकि देश में कुल अपराध का 68% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.2 के विपरीत उत्तर प्रदेश की यह दर 0.6 रही जो कि पूरे देश में सब से ऊँची है.

बलात्कार (धारा 376) :

वर्ष 2019 में पूरे देश में दलित महिलाओं के बलात्कार के 3,486 अपराध घटित हुए जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में 537 बलात्कार के मामले दर्ज हुए जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध का 15.4% है. यद्यपि इस अपराध की राष्ट्रीय दर 1.7 के विपरीत उत्तर प्रदेश की दर 1.3 रही है परन्तु यह भी सर्वविदित है कि पुलिस में ऊँची जातियों के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराना कितना मुश्किल होता है जैसा कि हाल की हाथरस की घटना से स्पष्ट है. अतः बलात्कार के बहुत से मामले या तो लिखे ही नहीं जाते हैं या उनको अन्य हलकी धाराओं में दर्ज किया जाता है.  

18 वर्ष से ऊपर की दलित महिलाओं पर बलात्कार (धारा 376) :

वर्ष 2019 में पूरे देश में दलित महिलाओं के बलात्कार के 2369 अपराध घटित हुए जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में बलात्कार के  466 मामले दर्ज हुए जोकि राष्ट्रीय स्तर पर कुल अपराध का 19.6% है. इस अपराध में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश का 7वां स्थान है. यद्यपि इस अपराध की राष्ट्रीय दर 1.2 के विपरीत उत्तर प्रदेश की दर 1.1 रही परन्तु यह भी सर्वविदित है कि पुलिस में ऊँची जातियों के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराना कितना मुश्किल होता है. अतः बलात्कार के बहुत से मामले या तो लिखे ही नहीं जाते हैं या उनको अन्य हलकी धाराओं में दर्ज किया जाता है.  

बलवा :

वर्ष 2019 में पूरे देश में दलितों के विरुद्ध बलवे के 1,293 मामले दर्ज हुये जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में 338 मामले घटित हुए जोकि देश में कुल अपराध का 26% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.6 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.8 रही जो कि काफी अधिक है.

न्यायालय में सजा की दर :

राष्ट्रीय स्तर पर न्यायालय में निस्तारित दलित उत्पीडन के मामलों की सजा की दर 32.1% के विपरीत उत्तर प्रदेश की यह दर 66.1% रही और इसका राष्ट्रीय स्तर पर दूसरा स्थान रहा. यद्यपि यह दर गुजरात की 1.8% की दर की अपेक्षा बहुत अच्छी कही जा सकती है परन्तु वर्ष के अंत तक विवेचना हेतु लंबित मामलों (50,776) की दर 95.4% है जोकि राष्ट्रीय दर 93.8% से ऊँची है, इस उपलब्धि को धूमिल कर देती है.

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध घटित कुल अपराध की दर राष्ट्रीय दर से बहुत अधिक है. इसमें दलितों के विरुद्ध गंभीर अपराध जैसे हत्या, लज्जाभंग/प्रयास, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, अपहरण और विवाह के लिए अपहरण, गंभीर चोट, बलवा और एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत घटित अपराधों की दर राष्ट्रीय दर से काफी अधिक रही. इन आंकड़ों से एक बात उभर कर सामने आई है कि उत्तर प्रदेश में दलित महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे बलात्कार, लज्जाभंग का प्रयास, अपहरण, यौन उत्पीड़न तथा विवाह के लिए अपहरण आदि की संख्या एवं दर राष्ट्रीय दर से काफी अधिक है. इससे यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में दलित महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.

यह देखा गया है कि उत्तर प्रदेश में हमेशा से दलितों पर होने वाले अत्याचार राष्ट्रीय दर से अधिक रहे हैं चाहे सरकार किसी की भी रही हो. इसका एक मुख्य कारण यह है कि उत्तर प्रदेश की सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक संरचना सामंती रही है जिसमें इन वर्गों पर अत्याचार होना स्वाभाविक है. इस कारण यहाँ की प्रशासनिक व्यवस्था भी सामंती ही रही है जो हमेशा सत्ताधारियों के हुकम की गुलाम रहती है. आज़ादी के बाद भी उत्तर प्रदेश की सामाजिक, राजनीतिक  तथा अर्थव्यवस्था का लोकतंत्रीकरण नहीं हो सका है. इसके विपरीत आज़ादी के बाद विकास की प्रक्रिया के अंतर्गत पूँजी का जो निवेश हुआ है उसने नये माफिया को जन्म दिया है जिसने सामंती ताकतों से गठजोड़ करके राजनीतिक सत्ता में अपना दखल बढ़ा लिया है. यह सर्वविदित है कि सामंती माफिया पूँजी के गठजोड़ की उपस्थिति सभी राजनीतिक दलों में रहती है और वे ज़रुरत के मुताबिक दल भी बदलते रहते हैं. इसी लिए सरकार बदलने के बाद भी उनकी राजनीतिक पकड़/पहुँच कमज़ोर नहीं होती. यही तत्व दलितों तथा अन्य कमज़ोर वर्गों एवं महिलाओं पर अत्याचार के लिए ज़िम्मेदार होते हैं.

उत्तर प्रदेश की यह भी त्रासदी है कि यहाँ पर सामंती-माफिया-पूँजी गठजोड़ के विरुद्ध बिहार की तरह (नक्सली तथा किसान आन्दोलन) ज़मीनी स्तर पर कोई भी प्रतिरोधी आन्दोलन नहीं हुआ है जिस कारण इन तत्वों को कोई चुनौती नहीं मिल सकी है. उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति भी इन्हीं सामन्ती/पूँजी मफियायों का सहारा लेकर सत्ता का भोग करती रही है जिस कारण इन तत्वों की सत्ता पर कभी भी पकड कमज़ोर नहीं हुयी है. अतः उत्तर प्रदेश की राजनीति पर सामन्ती-माफिया-पूँजी की निरंतर बनी रहने वाली पकड जो भाजपा सरकार के अधिनायक्वादी चरित्र के कारण और भी मज़बूत हो गयी है, दलितों पर राष्ट्रीय स्तर पर अधिक अत्याचार के लिए ज़िम्मेदार है.

अतः उत्तर प्रदेश में दलितों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए राजनीति पर सामन्ती-माफिया-पूँजी गठजोड़ को तोड़ने के लिए जनवादी आंदोलनों को तेज़ करना होगा. यह काम केवल वाम-जनवादी लोकतान्त्रिक ताकतों ही कर सकती हैं न कि सत्ता की राजनीति करने वाली कांग्रेस, समाजवादी, भीम आर्मी और बहुजन समाज पार्टी एवं उनके नेता.  

-एस.आर. दारापुरी,  

राष्ट्रीय प्रवक्ता,

आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता और अवकाशप्राप्त आईपीएस एस आर दारापुरी (National spokesperson of All India People’s Front and retired IPS SR Darapuri)

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता और अवकाशप्राप्त आईपीएस एस आर दारापुरी (National spokesperson of All India People’s Front and retired IPS SR Darapuri)

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