जानिए चिड़िया को पालतू क्यों न बनाएं

जानिए चिड़िया को पालतू क्यों न बनाएं जानिए चिड़िया को पालतू क्यों न बनाएं

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Birds Kept as Pets

यह बात तो लगभग सभी लोग जानते हैं कि चिड़िया पकड़ना या पालना कानूनन अपराध है। पर क्या आप जानते हैं चिड़िया को पालतू बनाकर हम जाने-अनजाने में देश के मॉनसून को भी प्रभावित करते हैं।

क्या चिड़िया पालतू रहना पसंद करती है?

वैसे भी चिड़िया कभी भी पालतू रहना पसंद नहीं करती। अक्सर वे कैद में ही मर जाती हैं। आजाद चिड़िया को आसमान में उड़ने के बजाय छोटे से पिंजरे में बंद करके रखना, उसे आसमान न देखने देना व उसे अपना परिवार न बनाने देना या उसे अपने परिवार के साथ की देखभाल का आनंद न मिलने देना, कहां तक न्याय संगत है। चिड़िया को पालतू बनाना पर्यावरण की दृष्टि से भी गलत है क्योंकि हर पक्षी को पकड़ने में सैकड़ों चिड़ियां रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं।

चिड़िया को पालतू बनाने का मानसून पर क्या प्रभाव?

what is the effect of domestication of bird on monsoon
What is the effect of domestication of bird on monsoon?

अनेक पेड़-पौधे ऐसे होते हैं जिनके बीज चिड़िया ही फैलाती हैं वरना यह पेड़ कभी उग ही न पाएं। इसलिए चिड़िया गायब हो जाने से पूरा वन ही गायब हो जाता है। जिससे मानसून प्रभावित होता है।

चिड़ियों की प्रजातियों के बारे में हमारे देश में बहुत कम लोग जानते हैं। वे चिड़ियों को खिलौने के रूप में खरीदते हैं और बेचने वाले उसे विदेशी चिड़िया बताकर आसानी से ज्यादा पैसे वसूलते हैं।

लाल बुलबुल को दुर्लभ फिंच कहकर बेचा जाता है। लाल लिपोथेरिक्स/ रोचिष्णु मिसिया (Red-billed leiothrix) को चीन में पाई जाने वाली पेकिन रोबिन (Pekin Robins, aka Red-billed leiothrix) के रूप में बेचा जाता है। भारतीय गोल्डफिंच को यूरेशियाई दुर्लभ गोल्डफिंच कहकर बेचा जाता है। लॉगिंग थ्रूश को खरीददार को विदेशी पक्षी संदर्भ पुस्तकें दिखाकर दुर्लभ बताते हैं। गोल्डन ऑरियल भारतीय जंगली पक्षी है।

काफी लोकप्रिय है पहाड़ी मैना

अधिकांश लोग बोलने वाली चिड़िया पसंद करते हैं, लेकिन इसे तस्करी करके नेपाल और पाकिस्तान में भेज दिया जाता है और भारतीयों की मांग इसके विकल्प से पूरी की जाती है।

पहाड़ी मैना कैसे बनाई जाती है

पहाड़ी मैना अब विलुप्ति के कगार पर है। पाइड और जंगल मिनास के सिर के बाल काटकर लाल रंग कर दिया जाता है। उनके पंख भी रंग दिए जाते हैं। कभी-कभी पीला गुब्बारा काटकर उसकी गर्दन में चिपका दिया जाता है, ताकि वह पहाड़ी मैना लगे।

जब विक्रेता किसी ग्राहक को देखता तो वह दिखावा करते हुए चिड़िया पर पानी छिड़कता है, खरीददार सोच नहीं पाता कि इसके पंख इतने घने क्यों है, जो कि तेलीय डाई के कारण होते हैं।

जब यह सब चिड़िया नहीं बोल पाती तो उसका आरोप खरीददार पर लगाया जाता है कि वह या तो उसकी देखभाल ठीक से नहीं कर रहा या उसे ठीक तरह से नहीं खिला पा रहा है। जबकि असली पहाड़ी मैना भी जो बोलती है, वो थोड़े से वाक्य होते हैं जो बार-बार दोहराए जाते हैं।

'स्टफ्ड' चिड़िया का कोलकाता में व्यापार

कुछ लोग इतने क्रूर होते हैं कि वे 'स्टफ्ड' चिड़िया खरीदते हैं। उनके लिए कोलकाता में पूरा व्यापार ही खुल गया है। चिड़ियाघरों को काफी भारतीय जंगली चिड़ियां मिलती हैं और वे विभिन्न चिड़ियों के अंग जोड़कर उन्हें दुर्लभ 'स्टफ्ड' चिड़ियों के नाम पर बेचते हैं।

दुर्लभ चिड़िया कैसी दिखती है

हम सबका यह दायित्व है कि यह जानें कि विदेशी या फिर दुर्लभ चिड़िया दिखती कैसी है। वहां जो भी दुर्लभ है, वह भारतीय चिड़िया ही मिलेगी। इन्हें पकड़ कर सजा दिलवाना चाहिए। चिड़िया कभी पालतू रहकर खुश नहीं रहती। अत: इनको न पालें।

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Know why not make a bird a pet

भारत की कोयल | पक्षी | भारतीय पक्षी | कोयल की कुहू कुहू | पक्षी ध्वनि | Cuckoo chirping

(देशबन्धु में 2009-04-23 को प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार )

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