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जनसरोकारी विमर्श एवं पत्रकारिता के पुरोधा और प्रणेता थे ललित सुरजन

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hastakshep
12 Dec 2020
New Update
देशबन्धु के प्रधान संपादक ललित सुरजन का निधन

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Lalit Surjan was the leader and pioneer of public advocacy and journalism

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भारतीय मीडिया और विशेषकर अविभाजित मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता जगत के लिए ललित सुरजन जी का अवसान एक ऐसी क्षति है, जिसकी भरपाई हाल-फिलहाल में सालों तक मुश्किल दिखती है।

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ललित सुरजन लोकतांत्रिक, जनसरोकारी पत्रकारिता के लिए केवल एक पुरोधा, मार्गदर्शक ही नहीं रहे, बल्कि अपनी वैचारिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं के लिए भी हमेशा एक उदाहरण के तौर पर जाने एवं माने जाते रहे हैं। यह अलग बात है कि सरकारों एवं सत्ता-संगठनों पर काबिज लोगों ने उनकी भूमिका एवं योगदानों की उतनी कद्र कभी नहीं की, जितनी की जानी चाहिए थी।

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असल में सामाजिक प्रतिबद्धताओं के लिए प्रमुखता एवं मुखरता के साथ लिखने, बोलने एवं आवाज उठाने तथा आज के गैरजरूरी राजनीतिक मूल्यों के साथ समझौता नहीं करना भी देशबंधु की पहचान है। इसके बावजूद अविभाजित मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता जगत में ललित सुरजन का कद, पहचान, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान शिखर पर आसीन है।

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दरअसल में आज पत्रकारिता महज एक पेशा एवं व्यवसाय बनती जा रही है, बनाई जा रही है या बनकर रह गई है; ऐसे वक्त में जनसरोकार के मसलों को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है।

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आज लोकतांत्रिक जनसरोकार के मुद्दों को बचाकर रखना, उन्हें उठाना और उठाने के लिए पत्रकारों, समाज के लेखकों, बुद्धिजीवियों, विमर्शकारों, विचारकों के साथ जनसमुदाय एवं जनमानस को अभिप्रेरित करना सबसे कठिन, मुश्किल एवं चुनौतीभरा काम है।

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आज बाकायदा सरकारों एवं सत्ता पर आसीन जनप्रतिनिधियों एवं नौकरशाहों के द्वारा जब जनसरोकार के विषयों को दबाया एवं कुचला जा रहा है; समाज के बहुसंख्यक लोगों में इन मसलों को उठाने का साहस एवं माद्दा खत्म होता जा रहा है; ऐसे समय में ललित सुरजन याद आते हैं।

ऐसे समय में ललित सुरजन की वैचारिक प्रतिबद्धता याद आती है, ऐसे समय में ललित सुरजन की जनसरोकारी पत्रकारिता राह दिखाती है, ऐसे समय में ललित सुरजन की लोकतांत्रिक समझ झकझोरती है, ऐसे समय में ललित सुरजन की जनतांत्रिक वैचारिकता साहस भरती है, ऐसे समय में ललित सुरजन के सामाजिक सरोकारी मूल्यों एवं मान्यताओं की चेतना ठहर कर सोचने एवं विचार करने को मजबूर करती है। यही तो ललित सुरजन का प्रभाव है।

आज यह कहना कतई अतिश्योक्तिपूर्णं नहीं होगा कि ललित सुरजन जैसे व्यक्तित्व का अवसान छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश के मीडिया जगत के लिए केवल एक अपूर्णीय क्षति भर नहीं है, बल्कि धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाज एवं सामाजिक-वैचारिक तानाबाना के लिए भी एक बहुत बड़ी क्षति है जिसकी भरपाई आने वाले कई वर्षों तक नामुमकिन नहीं तो कठिन अवश्य है।

आज जब हम ऐसे दौर में पहंुच चुके हैं जहां मीडिया की निष्पक्षता, प्रतिबद्धता एवं विश्वसनीयता पर रोज सवाल खड़े किये जा रहे हैं, ऐसे समय में राष्ट्रीय स्तर पर देशबंधु समूह ने अपनी लोकतांत्रिक निष्पक्षता, वैचारिक प्रतिबद्धता और बौद्धिक विश्वसनीयता के पैमाने पर अपने आप को आज भी प्रतिस्थापित कर रखा है तो यह निश्चित ही ललित सुरजन की बौद्धिक, साहसिक एवं वैचारिक प्रामाणिकता का परिणाम है।

ललित सुरजन जी के नेतृत्व में देशबंधु समूह ने हमेशा समाज के वाजिब सरोकारों के लिए काम किया है। चाहे वह नये लोगों को पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे लाने की बात हो, चाहे वह नवोदित पत्रकारों, विचारकों, विमर्शकारों एवं लेखकों को स्वतंत्र तौर पर लिखने के लिए अवसर देने की बात हो। देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए पत्रकारिता की बात हो या सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं एवं चिंताओं को उठाने की बात हो। चाहे वह राष्ट्रीय चिंताओं की बात हो या क्षेत्रीय एवं स्थानीय मसलों की बात हो देशबंधु ने हमेशा अपनी जिम्मेवारी एवं जिम्मेदारी का पालन एवं निर्वहन बखूबी किया है।

पत्रकारिता के मूल्यों, आदर्शों एवं मान्यताओं के साथ ललित सुरजन ने शायद कभी समझौता नहीं किया, भले ही समाचार पत्र समूह की प्रसार संख्या एक समय में लगातार गिरती क्यों न गई हो। यही बात जहां एक ओर ललित सुरजन की पहचान, प्रतिष्ठा, साहस की मिसाल बनती एवं बनाती है, वहीं दूसरी ओर ललित सुरजन एवं देशबंधु को एक नये मुकाम पर प्रतिस्थापित भी करती है।

आज देशबंधु समाचार पत्र समूह अपनी प्रसार संख्या के हिसाब एवं लिहाज से भले ही शिखर पर नहीं रह गई है, लेकिन अपने प्रतिमान और आदर्शों के लिए आज भी शिखर पर है। आज देश के राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के जितने भी नामी एवं प्रतिष्ठित अखबार प्रकाशित हो रहे हैं उनमें निश्चित ही देशबंधु का बेशक अलग एवं अग्रणी स्थान है। ललित सुरजन की यही कमाई है, जिसे उन्होंने अपने पिता मायाराम सुरजन से विरासत में प्राप्त की थी। आज दोनों इस दुनिया में बेशक नहीं हैं लेकिन उनके बताये रास्ते और उनकी स्थापित मिसालें आज भी और कल भी देश के लाखों युवाओं, पत्रकारों, लेखकों, विमर्शकारों एवं बहुसंख्यक जनसमुदाय को रास्ता दिखाते रहेंगे।

समाज के हजारों-लाखों लोगों की आवाज बनकर ललित सुरजन एवं उनकी पत्रकारिता तथा उनकी प्रतिबद्धता ने आज देश के सामने निष्पक्ष एवं गंभीर जनसरोकारी पत्रकारिता का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है, आने वाले सालों तक इसकी मिसाल दी जाती रहेगी।

छत्तीसगढ़ के संदर्भ में ललित सुरजन के योगदानों की चर्चा करते हुए उनके एक विशेष योगदान की चर्चा करना बहुत उल्लेखनीय है कि ललित जी ने केवल पत्रकारिता के क्षेत्र में, केवल पत्रकारिता के लिए ही नहीं बल्कि राज्य में एक शैक्षणिक एवं अकादमिक वातावरण के विकास एवं निर्माण के लिए भी प्रशंसनीय कार्य किया है। ’छत्तीसगढ़ संदर्भ ग्रंथ’ इस कड़ी में एक महत्वपूर्णं प्रयास है, जिससे उच्चशिक्षा जगत के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को भरपूर सहायता एवं लाभ मिलता रहा है। आज इसका संशोधित संस्करण शायद प्रकाशित नहीं हो पा रहा है, जिसकी निहायत आवश्यकता एवं महत्ता है। देशबंधु समूह को इस दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए इस पर तत्काल काम करना चाहिए।

छत्तीसगढ़ राज्य के सामाजिक-आर्थिक एवं ग्रामीण विकास की दशा एवं दिशा को एक सकारात्मक, रचनात्मक एवं सृजनात्मक स्वरूप देने की ललक, उत्कंठा एवं अभिलाषा हमेशा से ललित सुरजन की रही है। इसलिए देशबंधु में इस तरह की विचारधाराओं के साथ तार्किक आलेखों को प्रमुखता के साथ स्थान मिलता रहा है।

ललित सुरजन यह अच्छी तरह जानते थे कि समाज के समग्र एवं सम्पूर्णं विकास के लिए किस तरह की सोच एवं विचारधारा को आगे बढ़ाने की जरूरत होती है, इसलिए उनके विचारों में, लेखनी में एवं जीवनमूल्यों में हमेशा इसकी छाप दिखलाई देती रही है। चाहे वह छत्तीसगढ़ के शैक्षणिक पिछड़ेपन की बात हो, चाहे वह आर्थिक पिछड़ेपन की बात। इसके लिए समय-समय पर सरकारों को सलाह-नसीहत देने या आईना दिखाने में वे कभी भी पीछे नहीं रहे।

देशबंधु एवं ललित सुरजन ने विशेषकर मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के ग्रामीण, सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक, व्यावसायिक एवं वैचारिक विकास एवं प्रतिबद्धताओं के लिए समर्पित होकर जिस तरह उत्कृष्ट काम किया है, वह उल्लेखनीय, सराहनीय तो है ही साथ ही साथ इसे सहेज कर रखने की भी जरूरत है। मौलिक रचनात्मकताओं; साहसिक, अडिग मूल्यों एवं मान्यताओं; उच्च आदर्शों के साथ या स्थापित प्रतिमानों के लिए समझौता रहित कठिन चुनौतियों के दम पर अपनी पहचान एवं मुकाम बनाना हमेशा से दुश्कर कार्य रहा है। ललित सुरजन ने इन्हीं रास्तों से अपना जीवन सफर तय किया है। यही ललित सुरजन की पहचान है, जिसको संजोकर रखने की जरूरत है।

छत्तीसगढ़ सरकार को भी इनकी याद के लिए कुछ ऐसे करना चाहिए जिससे आने वाले वक्त में उनकी प्रतिबद्धताएं मिल का पत्थर बनकर समाज एवं सरकारों को रास्ता एवं आईना दिखाते रहें।

आज जब पूरे देश की पूरी मीडिया की प्रतिष्ठा एवं विश्वसनीयता दांव पर लगी है, तब ऐसे समय में ललित सुरजन की जनसरोकारी पत्रकारिता की याद एक उम्मीद बंधाती है कि क्या ’देशबंधु’ लोकतांत्रिक मूल्यों, आदर्शों एवं मान्यताओं के साथ आने वाले समय में समझौता करेगी ? या इसी तरह साहस, निष्पक्षता एवं निरपेक्षता के साथ निर्बाध रूप से समाज को रास्ता दिखाती रहेगी ? यह एक बड़ा सवाल बनता है। उम्मीद की जानी चाहिए या उम्मीद की जा सकती है कि देशबंधु समूह इसी तरह आने वाले दिनों में भी अपनी जनसरोकारी पत्रकारिता की राह चलती रहेगी।

डॉ. लखन चौधरी

(लेखक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट एवं सामाजिक-आर्थिक विमर्शकार हैं)

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