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नई स्टार्टअप संस्कृति का पर्याय बनी बैंगनी क्रांति’: डॉ जितेंद्र सिंह
Lavender festival kicks off in Bhaderwah, J&K
डोडा, 27 मई, 2022: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि वर्तमान समय नवाचार का है, जो आमदनी का माध्यम भी बन सकता है।
लैवेंडर की खेती का केंद्र बनकर उभरे डोडा जिले की ‘बैंगनी क्रांति’ का उदाहरण देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि लैवेंडर सिर्फ सौंदर्य से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह रोजगार का एक सशक्त माध्यम भी है, जिसकी जीवंत मिसाल भद्रवाह के किसान एवं उद्यमी बने हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह कल लैवेंडर की खेती एवं प्रसंस्करण (Lavender Cultivation and Processing) का पर्याय बनी ‘बैंगनी क्रांति’ की सफलता का उत्सव मनाने के लिए भद्रवाह में आयोजित दो दिवसीय ‘लैवेंडर फेस्टिवल’ (Lavender Festival in Hindi) को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय असंतुलन दूर करने और इस क्षेत्र को मुख्यधारा में लाने में भद्रवाह की ‘बैंगनी क्रांति’ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
जम्मू के उधमपुर से लोकसभा सांसद डॉ जितेंद्र सिंह ने किसानों एवं स्टार्टअप्स से लैवेंडर उत्पादन एवं प्रसंस्करण के क्षेत्र में एक ऐसा लक्ष्य निर्धारित करने का आह्वान किया है, जिससे 25 वर्ष बाद स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगाँठ के अवसर पर जब भारत विश्व की शीर्ष देशों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो, तो उसमें भद्रवाह के योगदान को भी योगदान किया जाए।
किसानों की आमदनी दोगुनी करने एवं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण से प्रेरित ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘स्टैंड-अप इंडिया’ जैसे अभियान का उल्लेख करते हुए डॉ जितेंद्र से भद्रवाह की ‘बैंगनी क्रांति’ (Bhaderwah's 'Purple Revolution') को एक नये स्टार्टअप कल्चर का पर्याय बताया है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि भद्रवाह की ‘बैंगनी क्रांति’ के पीछे भी क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने और पिछड़े इलाकों को मुख्यधारा में लाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा रही है।
उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अरोमा मिशन के अंतर्गत भद्रवाह में लैवेंडर की खेती को प्रोत्साहन एवं समर्थन प्रदान किया जा रहा है। सीएसआईआर की जम्मू स्थित प्रयोगशाला सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिव मेडिसन (आईआईआईएम) के वैज्ञानिक और अरोमा मिशन (Aroma Mission) के नोडल अधिकारी डॉ सुमित गैरोला ने बताया कि “स्थानीय युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की इस मुहिम में भारतीय सेना का समर्थन एवं सहयोग भी मिल रहा है। भारत में उपयोग होने वाले लैवेंडर तेल का अधिकतर हिस्सा आयात किया जाता है। एक लीटर लैवेंडर तेल का मूल्य करीब 10 हजार रुपये है, जो इस क्षेत्र में उगायी जाने वाली मक्के जैसी पारंपरिक फसलों की तुलना में किसानों की आय चार गुना से अधिक बढ़ाने में सक्षम है। यदि यहाँ पर लैवेंडर के तेल से साबुन, शैम्पू, परफ्यूम, औषधीय उत्पाद इत्यादि मूल्यवर्द्धित उत्पाद बनाये जाते हैं, तो किसानों की आय कई गुना बढ़ सकती है।”
भद्रवाह के एक प्रगतिशील लैवेंडर उत्पादक किसान भारतभूषण बताते हैं कि पिछले साल इस क्षेत्र में करीब 08 क्विंटल लैवेंडर तेल प्राप्त हुआ था, और इस वर्ष हमारा लक्ष्य 12 क्विंटल लैवेंडर तेल उत्पादन करने का है। भद्रवाह के ही एक अन्य युवा उद्यमी तौकिर अहमद वाज़वान, जो लैवेंडर उत्पादों का प्रसंस्करण एवं विपणन करते हैं, बताते हैं कि भद्रवाह की करीब 80 प्रतिशत आबादी खेती से जुड़ी है। लेकिन, अभी मुश्किल से भद्रवाह के लहरोत और टपरी की करीब दो प्रतिशत जमीन में ही लैवेंडर की खेती होती है। यदि अधिक संख्या में किसान लैवेंडर को अपनाते हैं, तो हम बुल्गारिया जैसे देशों को भी लैवेंडर उत्पादन में पीछे छोड़ सकते हैं, और लैवेंडर उत्पादन के मामले में भद्रवाह; भारत का बुल्गारिया बन सकता है। तौकीर कहते हैं कि किसान अपनी जमीन का सही उपयोग करते हैं, तो वे आत्मनिर्भर बन सकते हैं, और उन्हें नौकरियों के लिए पलायन नहीं करना होगा।
सीएसआईआर-आईआईआईएम के निदेशक डॉ डी.एस. रेड्डी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “अरोमा मिशन का उद्देश्य देश में किसानों और उत्पादकों को सुगंधित उत्पादों के आसवन और मूल्य संवर्द्धन के लिए तकनीकी और ढांचागत सहायता प्रदान करना तथा सुगंधित नकदी फसलों की खेती का विस्तार करना है। कई दशकों के वैज्ञानिक हस्तक्षेप से, सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू ने लैवेंडर की एक विशिष्ट किस्म (आरआरएल-12) और कृषि प्रौद्योगिकी विकसित की है। लैवेंडर की यह किस्म कश्मीर घाटी और जम्मू संभाग के समशीतोष्ण क्षेत्रों सहित भारत के समशीतोष्ण क्षेत्र के वर्षा सिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त पायी गई है। अरोमा मिशन के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के डोडा, उधमपुर, कठुआ, बांदीपोरा, किश्तवाड़, राजौरी, रामबन, अनंतनाग, कुपवाड़ा और पुलवामा जैसे जिलों में किसानों को लैवेंडर की खेती, प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन और विपणन से जुड़ी सहायता के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री और एक संपूर्ण प्रौद्योगिकी पैकेज उपलब्ध कराया जा रहा है।”
डॉ सुमित गैरोला ने बताया कि ‘बैंगनी क्रांति’ के वास्तविक सूत्रधार डॉ जितेंद्र सिंह हैं, जिन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में कमान संभालने के बाद देश भर के वैज्ञानिकों को किसानों की आय दोगुनी करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी उनके बीच लेकर जाने के लिए आह्वान किया। इसके बाद एक पायलट परियोजना, जिसे जम्मू-कश्मीर आरोग्य अरोमा ग्राम परियोजना कहा जाता है, शुरू की गई। सीएसआईआर की पाँच प्रयोगशालाओं के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र का दौरा किया एवं स्थानीय जलवायु, मिट्टी और पारिस्थितिक तंत्र का सर्वेक्षण करने के बाद पाया कि लैवेंडर की खेती को इस क्षेत्र में बढ़ावा दिया जा सकता है। इस तरह, ‘अरोमा मिशन’ का जन्म हुआ, जिसमें विभिन्न सुगंधित एवं औषधीय पौधों की खेती एवं प्रसंस्करण के लिए किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उन्हें रोपाई के लिए निशुल्क पौधे, उपकरण और विशेषज्ञों का मार्गदर्शन प्रदान नियमित रूप से प्रदान किया जा रहा है। इसका परिणाम हम भद्रवाह में ‘बैंगनी क्रांति’ के रूप में देख रहे हैं, और भद्रवाह को ‘लैवेंडर नगरी’ कहा जा रहा है।
सीएसआईआर-आईआईएम के वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र भांवरिया ने बताया कि “लैवेंडर की खेती अनुपयुक्त भूमि में भी की जा सकती है, और इसे सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। रोपाई के करीब 2-3 साल के भीतर लैवेंडर का पौधा तैयार हो जाता और फूल देने लगता है। बिना किसी अतिरिक्त देखभाल के यह पौधा 15 वर्षों से अधिक समय तक फूल देता रहता है। किसान इन फूलों को तोड़कर इकट्ठा कर लेते हैं, जिन्हें आसवन इकाइयों में ले जाया जाता है, और प्रसंस्करण करके तेल प्राप्त किया जाता है। यह तेल औषधियों समेत अन्य कई उत्पादों में उपयोग होता है। इसीलिए, लैवेंडर तेल की इंडस्ट्री में काफी माँग है।”
लैवेंडर फेस्टिवल में उपस्थित मुम्बई की फाइन फ्रेग्नेंस प्राइवेट लिमिटेड की उद्यमी काजल शाह ने बताया कि अपनी औद्योगिक इकाई के लिए उन्हें फ्रांस और बुल्गारिया जैसे देशों से लैवेंडर तेल आयात करना पड़ता है। लेकिन, भद्रवाह आने के बाद मैंने पाया कि यहाँ उत्पादित लैवेंडर तेल बुल्गारिया और फ्रांस के मुकाबले बेहतर गुणवत्ता रखता है, और भद्रवाह से लैवेंडर तेल मिलता है, तो उन्हें विदेशों से तेल आयात नहीं करना पड़ेगा।
‘लैवेंडर फेस्टिवल’ में बड़ी संख्या में विभिन्न राज्यों के किसान, कृषि उद्यमी, सुगंधित तेल उत्पादक, और स्टार्टअप उद्यमी शामिल हुए हैं। फेस्टिवल के पहले दिन आयोजित एक सम्मेलन में सुगंधित तेल एवं औषधीय उत्पादों से जुड़े उद्यमियों, अकादमिक विशेषज्ञों, और किसानों द्वारा लैवेंडर की खेती, प्रसंस्करण और विपणन से जुड़ी चुनौतियों एवं उनके संभावित समाधान पर चर्चा की गई।
(इंडिया साइंस वायर)