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एकांतप्रिय पक्षी है खरमोर (Lesser florican, also known as the likh or kharmore)
खरमोर अभयारण्य / सैलाना वन्यजीव अभयारण्य, (Kharmor Sanctuary) | खरमोर पक्षी की जानकारी,
Lesser Florican Bird In Hindi
पिछले दिनों हमें खरमोर पक्षी की दिलचस्प उछाल देखने का अवसर झाबुआ जिले के रायपुरिया गांव से सटे घास के मैदान (Grasslands adjacent to Raipuria village of Petlawad Tehsil in Jhabua District of Madhya Pradesh) में मिला। इसे अस्सी के दशक में सालिम अली की पहल पर रतलाम जिले के सैलाना में खरमोर अभयारण (Sailana Wildlife Sanctury) घोषित किया जा चुका है। मानसून के साथ घास ऊंची होने लगती है और देसी मुर्गे के आकार के इन पक्षियों का आना प्रारंभ होता है। मानसून की विदाई के साथ ही ये यहां से विदा ले लेते है। बताया जाता है कि खरमोर की तादाद पिछले दशकों में बेहद घटी है
खरमोर की उपस्थिति का पता कैसे चलता है?
प्रजनन काल में खरमोर की उपस्थिति का पता उनकी प्रणय निवेदन की प्रक्रिया से चलता है। इस दौरान नर खरमोर आकर्षक रूप धारण कर लेता है, उसकी गर्दन और छाती के पंख सफेद परों में ढंक जाते हैं। माथे पर एक कलंगी होती है जो हवा में लहराती है। मटमैले रंग की चितकबरी मादा साल भर एक सरीखी रहती है। प्रजनन काल में नर काफी सक्रिय हो जाता है और मादा को लुभाने के लिए आसमान में ऊंची-ऊंची उछाल मारता है।
सुन्दर सुराहीदार गर्दन और लंबी टांगों वाले खरमोर की उछाल देखते ही बनती है। घास जितनी ऊंची होती है उससे ऊंची छलांग खरमोर लगाता है।
कमजोर मानसून में घास अधिक ऊंची न होने के चलते खरमोर की छलांग भी प्रभावित होती है। इन हालात में खरमोर यहां पहुंचते भी नहीं हैं।
खरमोर का स्वभाव
खरमोर काफी शर्मिला और एकांतप्रिय पक्षी है। खरमोर को मानवीय हस्तक्षेप बिलकुल पंसद नहीं है। जब हम मोरझरिया में खरमोर का अवलोकन कर रहे थे तब जरा सी भी इंसानी आहट को वे भांप जाते और उछलना बंद कर घास में छिपने की कोशिश करते थे।
खरमोर का निवास व प्रजनन स्थान
उल्लेख मिलता है कि खरमोर भारत में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण तक पाए जाते थे। पहले खरमोर का प्रमुख प्रजनन स्थान नासिक, अहमदनगर, शोलापुर, पूर्वी हरियाणा और काठियावाड़ में था। लेकिन वर्तमान में खरमोर के प्रजनन स्थल गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिमी मध्यप्रदेश हैं।
शंकरन द्वारा 1999 तथा भारद्वाज और उनके साथियों द्वारा अगस्त 2010 में गुजरात, राजस्थान व मध्यप्रदेश में एक सर्वे किया गया था। कुल 91 घास के मैदान का सर्वे किया गया।
वर्ष 2010 के सर्वे में 24 मैदानों में खरमोर की उपस्थिति का पता लगा। यहां 84 खरमोर देखे गए जिनमें से 83 नर और एक मादा थी।
2010 में खरमोर की तादाद 1999 के मुकाबले 65 फीसदी कम थी।
महाराष्ट्र के विदर्भ में यवतमाल जिले में 1982 में तथा 2010 में अकोला जिले में खरमोर (Kharmore in Akola district) के मिलने की पुष्टि हुई है। इसी प्रकार से 20-25 खरमोरों की पुष्टि वाशिम जिले में हुई है।
गुजरात में दाहोद, भावनगर, अमरेली, सुरेन्द्र नगर और कच्छ जिलों में खरमोर पाए जाने की पृष्टि हुई है।
राजस्थान में अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, पाली और प्रतापगढ़ जिलों में खरमोर देखे गए हैं।
आंध्रप्रदेश में खरमोर रोलपाडू वन्यजीव अभयारण्य और बंगालपन्नी में देखे गए हैं।
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उल्लेखनीय है कि सरदारपुर खरमोर अभयारण्य में इस मानसून में एक भी खरमोर ने दस्तक नहीं दी। सैलाना अभयारण्य में लगभग एक दर्जन खरमोर दिखाई दिए है जो पिछले सालों की तुलना में कम है। झाबुआ जिले के रायपुरिया से सटे मोरझरिया में इस साल तीन खरमोर देखे गए है? पिछले सालों का आकांड़ा देखे तो सैलाना में 2005 में 26, 2006 में 28, 2007 में 27, 2008 में 30, 2009 में 32, 2010 में 23 और 2011 में 18 और 2015 में 15 खरमोर दिखाई दिए थे।
आखिर खरमोर की संख्या में कमी के क्या कारण हैं?
हाल ही में बीएनएचएस के छह सदस्यीय दल ने सरदारपुर, झाबुआ जिले के पेटलावद व सैलाना के घास के मैदानों व गांवों का अध्ययन प्रारंभ किया है जो यह समझने की कोशिश करेगा कि आखिर खरमोर की संख्या घटने के कारण क्या हैं (After all, what are the reasons for the decrease in the number of Kharmore?)।
जिला वन अधिकारी राजेश खरे के मुताबिक मोरझरिया घास के मैदान की तार फैसिंग की जा चुकी है। वहां पर नाकेदार और चौकीदारों की नियुक्ति भी की गई है, जो खरमोर की गतिविधियों पर नजर रखते हैं।
हाल ही में हम लेखकद्वय ने मोरझरिया गांव से सटे घास के मैदान का दौरा किया जहां तीन नर खरमोर दिखाई दिए।
मोरझरिया के घास के मैदान में चौकीदारी कर रहे आदिवासी बीजल बताते हैं कि यहां पर पिछले साल भी खरमोर देखे गए हैं। वे उसी वास्तविक स्थिति भांपने का हुनर रखते हैं। उन्होंने हमें हाथ के इशारे से बताया कि किस जगह पर खरमोर बैठे हैं। और कुछ ही देर में उस स्थान से खरमोर ने उछाल भरी।
खरमोर का दुश्मन कौन है?
बीजल ने बताया कि खरमोर की मौजूदगी का पता उसके दुश्मन से भी लगता है। शिकरा नामक पक्षी खरमोर का दुश्मन है। खरमोर जहां होता है उसके आसपास शिकरा तेजी से मंडराता है और उसे परेशान करने की कोशिश करता है।
उन्होंने बताया कि अभी जहां शिकरा मंडरा रहा है, खरमोर वहीं कहीं घास में दुबका हुआ होगा।
खरमोर को बचाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
खरमोर को बचाने के लिए वन विभाग की ओर से जो प्रयास किए जो रहे हैं उनमें से एक है इनाम योजना।
इनाम योजना के तहत अगर किसी को खरमोर दिखता है तो उसकी खबर देने वाले को एक हजार रूपये और अगर खरमोर किसी के खेत में अंडा देता है और उसकी खबर वन विभाग का दी जाती है तो खेत मालिक को पांच हजार रूपये देने की घोषणा की गई है। जिन किसानों के खेतों में खरमोर अंडे देते हैं उस फसल की भरपाई भी वन विभाग की ओर से की जाती रही है।
दरअसल, खरमोर घास के मैदानों से सटे हुए सोयाबीन, मूंग-उड़द, मूंगफली इत्यादि के खेतों में चले जाते हैं और सुरक्षित स्थान पाकर वहां अंडे दे देते हैं।
खरमोर को संरक्षित करने का मामला प्राकृतवास की सुरक्षा से जुड़ा है। सैलाना में खरमोर अभयारण्य से लगे हुए इलाके में पवन चक्कियां लगाई गई है। आशंका जताई जा रही है कि इन पवन चक्कियों की आवाज से खरमोर की जीवनचर्या प्रभावित होती है। ये मसले हैं जिन पर अध्ययन करने की जरूरत है।
खरमोर झाड़ियों और झुरमुटदार सूखे घास के मैदान में बहुतायत से और कभी-कभार बाजरे, कपास इत्यादि की फसल वाले खेतों में देखे गए हैं। ऊंचे और घने पेड़ों वाले इलाकों या पहाड़ी, दलदल, घने जंगल, रेगिस्तान और बंजर जमीन पर नहीं पाए जाते। खरमोर उस घास के मैदान मे रहना पसंद करते हैं जहां पशुओं की दखलंदाजी न हो और घास की ऊंचाई एक मीटर से अधिक न हो।
उत्तर पश्चिम भारत में घास के मैदानो में जो घास पाई जाती वह छोटे-छोटे चकत्तों में दूर-दूर उगती है। खरमोर इसी घास में अंडे देता है।
शंकरन का यह अवलोकन है कि जिन सालों में बरसात अधिक होती है और घास के मैदान ऊंची घास से ढंक जाते हैं तो खरमोर छोटे घास वाली वनस्पति के खेत में चले जाते हैं और जब खरमोर प्रजनन न कर रहे हों, तो ये छोटे पेड़ों और पशुओं के चरने वाले मैदान व कंटीली बेर की झाड़ियों में विचरण करते रहते हैं।
खरमोर के प्रजनन व्यवहार का सबसे दिलकश नर की उछाल ही उसके लिए खतरा साबित हुई है। शिकारी इस ताक में रहते है कि कब खरमोर उछले और उसे बंदूक से मार गिराया जाए।
विवरण मिलते हैं कि खरमोर को उस समय मार गिराया जाता था, जब प्रणय निवेदन के लिए या दूसरे नर खरमोर को अपनी मौजूदगी का पता देने के लिए वे घास में उछलते थे। उछलते वक्त नर खरमोर मेंढक के टर्राने सी अवाज निकालता है जो शांत घांस के इलाके में 300 से 400 मीटर की दूरी तक सुनी जा सकती है।
यह देखा गया है कि एक दिन भर में नर 600 बार तक उछाल भरता है।
खरमोर एक स्थानीय प्रवासी है। हालांकि इसके प्रवास का रहस्य बेहतरी से अभी तक नहीं समझा जा सका है। अप्रजनन काल में ये रहस्यमय ढंग से अपना रंग बदल लेते है।
ये मानसून के दिनों में देश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में घास के मैदानों में प्रजनन करते हैं और फिर दक्षिण-पूर्वी भागों की ओर चले जाते हैं। अपने अप्रजनन काल में ये क्या करते हैं, कैसे रहते हैं इसके बारे में बहुत कुछ जानना-समझना अभी भी शेष है।
पिछले कुछ वर्षों में खरमोर की संख्या में काफी कमी आई है। 1870 में इनकी वैश्विक संख्या लगभग 4374 थी जो 1989 में 60 फीसदी घटकर लगभग 1672 रह गई। हालांकि एक सर्वे 1994 में किया गया था जिससे पता चलता है कि अच्छी बरसात के चलते इनकी संख्या में फिर से बढ़ोत्तरी हुई जो बढ़कर 2206 हो गई।
इसी प्रकार से खरमोर की संख्या की बढ़ोत्तरी के पैटर्न को देखते हुए 1999 में खरमोर की संख्या 3530 तक पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही थी मगर ऐसा हो न सका।
वर्तमान में विश्व स्तर पर खरमोर शायद 2500 के अंदर ही सिमटकर रह गए हैं। खरमोर उन 50 पक्षियों की श्रेणी में शुमार है जो खतराग्रस्त है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून का पैटर्न प्रभावित हुआ है जिसका असर खरमोर के प्रजनन पर हो रहा है।
हमारे यहां घास मैदानों को जंगल जैसी प्रतिष्ठा हासिल नहीं है और इन्हें अनुपजाऊ जमीन के रूप में ही देखा जाता है। इस वजह से घास के मैदानों पर हर तरह के विकास की योजनाओं को मढ़ दिया जाता है। मसलन अगर वृक्षारोपण करना हो तो इन्हीं घास के मैदानों को क्षतिपूर्ति के रूप में चुना जाता है। जब विकास के नाम पर जंगल कटते हैं तो इन्हीं घास के मैदानों को बंजर मानकर इन पर वृक्षारोपण करके खरमोर के कुदरती आवासों को नेस्तनाबूत किया जाता रहा है।
इनके अलावा खरमोर का शिकार, फसलों में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल, घास के मैदानों में पशु चराई के बढ़ते दबाव, घास के मैदानों पर अतिक्रमण आदि ऐसे कारण हैं जिनके चलते घास के मैदानों का बुरा हाल हुआ है। इन कारणों से खरमोर के प्रजनन आवास बर्बाद हो रहे हैं, जो खरमोर के भविष्य का धुंधला कर रहे है।
- कालुराम शर्मा/जितेश भोल्के
Notes : खरमोर का वैज्ञानिक नाम : Sypheotides indicus
अन्य क्षेत्रीय नाम:
हिन्दी : लीख या लिख, छोटा चरत
गुजराती : खर मोर
मध्य प्रदेश : खर तीतर, भटकुकड़ी, भटतीतर
महाराष्ट्र : तन्नेर
पश्चिम बंगाल : छोटा डाहर, लिख
तमिलनाडु : वारागु कोझि
आन्ध्र प्रदेश : नेला नेमाली
केरल : चट्टा कोझि
कर्नाटक : चट्टा कोझि , कन्नौल
सिन्ध : खरमूर
(देशबन्धु में वर्ष 2017 में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)