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आज 7 नवंबर को महान अक्टूबर क्रांति का जन्मदिन है
रूस के समाजवादी इंक़लाब की सालगिरह 7 नवम्बर 2021 पर हस्तक्षेप के यूट्यूब चैनल पर शाम 5:30 से 7:00 तक लाइव ऑनलाइन आयोजन हुआ।
मुख्य वक्ता : विजय सिंह थे, जो रूसी इतिहास के दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक एवं रेवॉल्यूशनरी डेमोक्रेसी के सम्पादक हैं।
वरिष्ठ अर्थशास्त्री, जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, दिल्ली से संबद्ध जया मेहता व प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने चर्चा में भाग लिया।
चर्चाकार थे अमलेन्दु उपाध्याय (सम्पादक हस्तक्षेप)
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1917 की रूसी क्रांति, रूस की क्रांति से संबंधित प्रश्न उत्तर, रूसी क्रांति से जुड़े सवाल और उनके जवाब
अक्टूबर क्रांति की क्रांतिकारी विरासत की हिफाजत करना क्यों जरूरी है?
अक्टूबर क्रांति ऐसी क्रांति थी जिसने सारी दुनिया को गहरे स्तर पर जाकर प्रभावित किया। संभवतः मानव सभ्यता के इतिहास में इतना व्यापक विश्वव्यापी प्रभाव किसी क्रांति का नहीं पड़ा। इस क्रांति ने सामाजिक मुक्ति संभव है, इस विचार को संभव कर दिखाया ।
अक्टूबर क्रान्ति ने दुनिया के मज़दूरों को मुक्ति का रास्ता दिखाया।
अक्टूबर क्रान्ति के बाद बने सोवियत रूस में मज़दूरों की पंचायतें ही पुलिस, कोर्ट-कचहरी यानि राजकाज के काम देखती थीं और फैक्टरी, खेतों यानि उत्पादन को संचालित कर रही थीं। यह वह देश है जहाँ न तो कोई बच्चा कुपोषित था, न वेश्यावृत्ति, न अशिक्षा और न ही मज़दूर सड़कों पर सोते थे। यह वह देश था जहाँ सबके रहने के लिए घर था। फैक्टरियों में कोई मालिक नहीं था। यह कोई शेखचिल्ली का सपना नहीं मज़दूरों की वह कहानी है जिसे मज़दूरों ने कामयाब कर दिखाया था। यह कैसे हुआ?
जिस समय पूरी पूँजीवादी दुनिया (capitalist world) महामन्दी में डूबी हुई थी उस समय रूसी अर्थव्यवस्था (Russian economy) छलाँगे मारते हुए आगे बढ़ रही थी!
सन् 1940 में दूसरे विश्व युद्ध में जब पूरे विश्व को जर्मन फासीवाद तबाह कर रहा था तब भी सोवियत रूस कि जनता ने अकूत कुर्बानियाँ देकर पूरे विश्व को फासीवाद के खतरे से मुक्ति दिलायी थी।
क्या अक्टूबर क्रांति एक तख्तापलट था?
सारी दुनिया में अक्टूबर क्रांति का मुक्ति आंदोलनों पर क्या प्रभाव पड़ा?
Is it fair to call both fascism and socialism totalitarian?
यूरोपीय संसद ने 2 अप्रैल 2009 को एक प्रस्ताव स्वीकार किया था, जिसमें सर्वसत्तावादी अपराधों की निंदा की गयी थी और इसकी पुकार लगायी गयी थी कि ‘कम्युनिज्म, नाजीवाद तथा फासीवाद को एक साझा विरासत’’ के रूप में पहचाना जाए। क्या फासीवाद और समाजवाद, दोनों को सर्वसत्तावादी कहना उचित है?
चर्चा के दौरान मुशर्रफ अली साहब ने पूछा-
“रूस में जब ज़मीन को सहकारी खेती के लिये लेने की कोशिश की गई तो वहां पार्टी और किसानों में ज़बरदस्त हिंसक संघर्ष हुआ जबकि चीन में ऐसा नही हुआ इसका क्या कारण है इसपर रोशनी डाले ?”
गुरनाम कंवर (Gurnam Kanwar) जी ने पूछा -
“रूस की समाजवादी क्रांति को याद करने की क्रांतिकारी पहल, जो आज अधिक प्रासंगिक है और हमें मजदूर वर्ग और मानवता को साम्राज्यवाद और फासीवाद के चंगुल से मुक्त करने के लिए प्रेरित करती है।“
(Revolutionary initiative to remember Socialist Revolution of Russia which is today more relevant and inspires us to liberate working class and humanity from clutches of imperialism and fascism.)
वीरेंद्र शर्मा (Virendra Sharma) जी ने पूछा-
“भारत में सत्ता प्राप्त किए बिना मजदूर एवं किसानों की समस्याओं का निराकरण नहीं हो सकता। संसद में वामपंथ कब और कैसे अपनी संख्या में इजाफा कर सत्ता हासिल करेगा?”
उषा अथली (Usha Athaley) ने पूछा
“भारत में जाति-सम्प्रदायों और धर्मों में बँटे लोगों को कैसे संगठित किया जा सकता है? कम्युनिस्ट पार्टियों और सांस्कृतिक संगठनों को किस तरह काम करना होगा?”
Virendra Sharma जी ने पूछा -
“भारत में किसान एवं मजदूर, वर्तमान केंद्र सरकार की किसान एवं मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्षरत हैं। क्या यहां पर इस तरह की किसी क्रांति की संभावना है?”
क्या कम्युनिस्ट धर्म के खिलाफ हैं ? Are communists against religion?
शकील चौहान (Shakeel Chauhan) जी ने कहा,
“हम कम्युनिस्टों को एक राजनीतिक प्रयोग की जरूरत है ताकि लोग जान सकें कि हम धर्म के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हम धर्म के नाम पर होने वाले कुकर्मों के खिलाफ हैं।“
we communists need a political experiment to people know that we are not against religion but we are against misdeeds in the name of religion.