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Lockdown achieved 95% NCAP targets in 74 days showing clear areas for action round the year
नयी दिल्ली, 11 जुलाई, 2020 : कोविड-19 महामारी के चलते घोषित लॉक डाउन में सभी गैर-आवश्यक गतिविधियां प्रतिबंधित किये जाने से भारत के प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण के स्तरों में उल्लेखनीय गिरावट हुई है। रेस्पिाइरर लिविंग साइंसेज (Respirer Living Sciences) और कार्बन कॉपी (Carboncopy) के शोधकर्ताओं (Researchers from Respirer Living Sciences and Carbon Copy) ने भारत में लागू लॉक डाउन के सभी चार चरणों के दौरान औसत वायु गुणवत्ता का अध्ययन किया है।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक विज्ञप्ति के मुताबिक नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के क्रियान्वयन की निगरानी के लिये लागू एनसीएपी ट्रैकर परियोजना के तहत दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और बेंगलूरू में पीएम2.5, पीएम10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), कार्बन मोनोक्साइड (CO), ओजोन (O3) और बेंजीन(C6H6) के कंसंट्रेशन या सान्द्रता का भी अध्ययन किया है। 25 मई से आठ जून 2020 के बीच लॉकडाउन के चार विभिन्न चरणों के दौरान वायु प्रदूषण के मानव जनित स्रोतों पर कई तरह की पाबंदियां लगायी गयीं। इससे न सिर्फ हवा साफ हुई, बल्कि शोधकर्ताओं को खराब वायु गुणवत्ता वाले बड़े भारतीय महानगरों में आधारभूत स्तरों का अध्ययन करने का मौका भी मिला।
इस दौरान मिले रुझानों से पता चला कि 74 दिनों की छोटी अवधि में लॉकडाउन के दौरान उठाये गये अभूतपूर्व कदमों की वजह से चार शहरों- दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और बेंगलूरू में एनसीएपी के तहत वर्ष 2024 तक के लिये निर्धारित लक्ष्यों का 95 प्रतिशत हिस्सा हासिल हो चुका है।
यह पूरा आंकड़ा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तत्वावधान में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा स्थापित एयर क्वॉलिटी मानिटर्स से मिला है। यह आधिकारिक आंकड़ा है और एनसीएपी में इसी को इस्तेमाल किया जा रहा है। देश के शहरों में पार्टिकुलेट मैटर (सांस के जरिये फेफड़ों में आसानी से दाखिल होकर बीमारियां पैदा करने वाले प्रदूषण के महीन छोटे कण) को वर्ष 2024 तक 20-30 प्रतिशत कम करके हवा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये केन्द्र सरकार ने एनसीएपी को लागू किया था। एक साल के दौरान इस कार्यक्रम के दायरे में आने वाले शहरों की सूची में 122 नॉन-अटेनमेंट नगरों को जोड़ा गया और उनमें से 102 शहरों के लिये वायु प्रदूषण कार्ययोजनाओं को विकसित और अनुमोदित किया गया।
रेस्पिाइरर लिविंग साइंसेज (Respirer Living Sciences) के सीईओ रोनक सुतारिया ने कहा
‘‘लॉकडाउन ने हमें हमारे पर्यावरण में इंसानी(anthropogenic) गतिविधियों के कारण होने वाले प्रदूषण के उत्सर्जन के प्रभावों को समझने में मदद की है। जिन चार शहरों का अध्ययन किया गया वे सभी एनसीएपी के तहत वर्ष 2024 तक के लिये तयशुदा लक्ष्य की दिशा में करीब 30 प्रतिशत तक सुधार लाने में कामयाब रहे। कोलकाता तो लॉकडाउन अवधि में लक्ष्य के हिसाब से अपनी हवा की गुणवत्ता में 50 प्रतिशत से ज्यादा सुधार हासिल करने में कामयाब रहा। लॉकडाउन की यह अवधि, नीति निर्माताओं के लिये एक उदाहरण की तरह है कि आने वाले चार साल के लिये तय किये गये लक्ष्य को अपेक्षाकृत कम समय में कैसे हासिल किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का दावा है कि लॉकडाउन ने उन्हें भारत भर में प्रदूषण के स्तरों की पृष्ठभूमि को समझने को मौका मिला। दिल्ली के कम्युनिकेशन इनीशियेटिव क्लाइमेट ट्रेंड्स और आईआईटी-दिल्ली के डॉक्टर सागनिक डे द्वारा आयोजित एक वेबिनार में यह बताया गया कि भारत में प्रदूषण फैलाने वाले आठ प्राथमिक स्रोतों में से चार तो लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह बंद रहे। इनमें निर्माण कार्य, औद्योगिक गतिविधियां, ईंट भट्ठे और वाहन शामिल हैं। औद्योगिक गतिविधियों में भारी कमी की वजह से पिछली 25 मार्च से आठ जून के बीच बिजली की मांग में भी साल-दर-साल के हिसाब से 19.9 प्रतिशत की गिरावट (power demand plummeted by 19.9% ) आयी। भारत में कोयले से चलने वाले बिजलीघर दरअसल प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं। हालांकि इस दौरान घरों से निकलने वाला प्रदूषण, खुले में चीजें जलाने से होने वाला प्रदूषण, डीजल जेनेरेटर और धूल का प्रभाव बदस्तूर जारी रहा।
आईआईटी-दिल्ली के सेंटर फॉर एक्सीलेंस फॉर रिसर्च ऑन क्लीन एयर (CERCA) के कोऑर्डिनेटर डॉक्टर सागनिक डे ने कहा
‘‘लॉकडाउन ने भारत में प्रदूषण के स्तरों की उस पृष्ठभूमि को समझने का अवसर दिया, जो सबसे अच्छे हालात में भी मौजूद रह सकती है। लॉकडाउन के दौरान इन चार प्रमुख शहरों में पीएम2.5 का स्तर 20-49 μg/m3 रहा। इसका मतलब है कि यह सबसे अच्छी स्थिति है। हमें इससे बेहतर हालात नहीं मिल सकते। स्वच्छ वायु के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक 10μg/m3 है।’’
ट्रैकर ने प्रदूषण को कम करने के लिहाज से एनसीएपी की प्रभावशीलता को दिखाने के लिये वर्ष 2017 के स्तरों को आधार मानते हुए 2017, 2018 और 2019 में इन चार शहरों में पीएम2.5 और पीएम10 के स्तरों का विश्लेषण किया। कोलकाता ने जहां वर्ष 2018 के मुकाबले 2019 में पीएम स्तरों में करीब 24 प्रतिशत का सुधार किया। वहीं मुम्बई में औसतन 16 फीसद, बेंगलूरू में 19.8 प्रतिशत और दिल्ली में 6.4 प्रतिशत का सुधार हुआ। मगर फिर भी यह सुधार एनसीएपी में निर्धारित लक्ष्यों के लिहाज से कम है। वर्ष 2019 में दिल्ली में पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 109.2 μg/m3 था, जबकि एनसीएपी के तहत 2019 में दिल्ली में पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 70.9 μg/m3 निर्धारित था। इसका मतलब यह है कि साल 2019 में दिल्ली को एनसीएपी के लक्ष्य को हासिल करने के लिये प्रदूषणकारी तत्वों में 35 प्रतिशत की कमी लानी होगी। इसी तरह मुम्बई में पीएम2.5 का वार्षिक औसत 36.1 μg/m3 था, जबकि एनसीएपी के तहत वार्षिक औसत स्तर 28 μg/m3 का लक्ष्य निर्धारित था। इस तरह वर्ष 2019 में मुम्बई एनसीएपी के तहत निर्धारित अपने लक्ष्यों को पूरा करने में 22.4 प्रतिशत से पीछे रह गया। इसी दौरान कोलकाता भी अपने लिये निर्धारित लक्ष्य से 16 फीसद और बेंगलूरू 12.1 प्रतिशत पीछे रह गया।
हालांकि रोनक सुतारिया का कहना है कि वार्षिक आंकड़ों की तुलना में बहुत बारीक फर्क मौजूद हैं और परिणाम उतने सरल भी नहीं हैं। उन्होंने कहा ‘‘वर्ष 2019 के आंकड़े कंटीनुअस एम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग (CAAQMS) कार्यक्रम के तहत ऑनलाइन निगरानी नेटवर्क से मिले हैं, जबकि 2017 और 2018 के आंकड़े नेशनल एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग प्रोग्राम (NAMP) के तहत संचालित मैनुअल मॉनीटर्स से लिये गये हैं, लिहाजा इन वर्षों के आंकड़ों की तुलना करना चुनौतीपूर्ण है। इसके अलावा वर्ष 2019 में सर्दियों के महीनों का मैनुअल मॉनीटरिंग डेटा अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। इससे इस नतीजे पर पहुंचना और भी मुश्किल हो जाता है कि क्या वर्ष 2019 में प्रदूषण के स्तरों में वाकई कोई सुधार हुआ है।’’
लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण के स्तरों में आयी भारी गिरावट हमें यह सबक देती है कि भारत के वायु प्रदूषण सम्बन्धी प्रबन्धन को देश के स्वच्छ वायु से जुड़े लक्ष्यों के साथ जोड़ने की जरूरत है। जाहिर है कि भारत में अगर कम उत्सर्जनकारी अक्षय ऊर्जा उत्पादन मॉडल पर ध्यान दिया जाए तो प्रदूषण के स्तरों को काफी कम किया जा सकता है।
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क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा,
‘‘सभी आर्थिक गतिविधियों के रुक जाने से सबसे बड़ा फायदा रहा हवा की गुणवत्ता में आया सुधार। अगर लॉक डाउन न होता तो गुणवत्ता के इस स्तर तक, नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के अंतर्गत, पहुंचने में 5 साल लग जाते। और इससे एक बार फिर यह सिद्ध होता है कि हवा की गुणवत्ता को एक प्रादेशिक मुद्दा मान कर काम किया जाए जिससे विकास और आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ न सिर्फ़ हमारा आसमान साफ़ हो, ये हवाएँ भी सांस लेने लायक बनें।
बात दिल्ली की करें, जहाँ PM 2.5 में 30% की गिरावट दर्ज की गई है, तो ये याद रखना होगा कि यहाँ समस्या का हल जटिल है। ख़ास तौर से इसलिए क्योंकि हाल ही में आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए एक शोध (real-time source apportionment study) के मुताबिक़ तीन एयर कोरिडोर्स (उत्तर पश्चिमी, उत्तर पूर्वी, और पूर्वी) के ज़रिए देश की राजधानी तक 35 प्रकार के प्रदूषक तत्व पहुंचते हैं और यहाँ की हवाओं में ज़हर घोलते हैं।“
लॉक डाउन से मिले अनुभवों (Lock down experiences) से यह साफ होता है कि बेहतर वायु प्रदूषण प्रबंधन के लिये हर शहर के एक्शन प्लान को और सुदृढ. होने की ज़रूरत है। वायु प्रदूषण के बेहतर प्रबन्धन के लिये नगरों की कार्ययोजना को रणनीति और रवैये के हिसाब से और भी व्यापक तथा मजबूत बनाने की जरूरत है।’’
वर्ष 2017 में स्थापित किया गया क्लाइमेट ट्रेंड्स दिल्ली स्थित एक संचार रणनीति सम्बन्धी पहल है। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और स्वच्छ ऊर्जा के विषयों पर लोगों की समझ को बढ़ाना और उन पर बात को आगे बढ़ाना है। यह विभिन्न संगठनों, थिंक टैंक और स्टार्ट अप को जलवायु परिवर्तन और अक्षय ऊर्जा सम्बन्धी अभियानों में संचार सम्बन्धी लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करता है।