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Lockdown: Best around the world, our PM will keep wearing masks in between and keep on raining jumlas?
कल सुबह से तेज़ हवा चल रही थी। गेहूँ की फसल पककर खड़ी है। ओलावृष्टि और बारिश से बची खुची फसल भी काटने के हालात नहीं हैं। सब्जी और फलों की खेती करने वाले किसान पुरी तरह बर्बाद हो चुके हैं।
कल देश के 130 करोड़ लोगों को बेसब्री से प्रधानमंत्री के राष्ट्र को सम्बोधन का इंतजार था कि लॉक डाउन से ठप ज़िंदगी (Life off lockdown) और अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने की वे कोई दिशा दिखा पाते हैं या नहीं।
नहीं दिखा सके।
दिखा पाते तो बांद्रा और सूरत में घर लौटने को बेताब भूखे बेरोज़गार लोगों का हुजूम नहीं उमड़ता।
अगर प्रधानमंत्री दिशा दिखा पाते तो गोदी चैनलों को उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल को लाइव दिखाना नहीं पड़ता।
हमारे गांवों में हर साल बिजली के शार्ट सर्किट से खड़ी फसल खेतों में ही जल जाने की घटनाएं आम हैं। इसलिए हमारे दिनेशपुर इलाके में सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक बिजली काट दी जाती है। कल 9 बजे ही सुबह से तेज़ हवा चलने के कारण बिजली काट दी गयी।
सुबह ही सविता जी ने बंगला नववर्ष के मौके पर कोलकाता दूरदर्शन का विशेष कार्यक्रम (Kolkata Doordarshan special program on the occasion of Bangla New Year) लगा रखा था, जो 9 बजे भी जारी था।
हम प्रधानमंत्री का लाइव भाषण (Prime Minister's Live Speech) देख नहीं सके।
घर में चूंकि काम हम दोनों मिल बाँटकर करते हैं तो अमूमन लोगों का फोन भी रिसीव करने की हालत में नहीं होते। दोपहर बाद हमने वीडियो पर प्रधानमंत्री का लाइव भाषण (Prime Minister's live speech on video) सुना। उनकी सप्तपदी भी दिन से सुन ली। काढ़ा पीने की रेसिपी उन्होंने नहीं बताई। वरना वह भी सुन लेते।
चूंकि हम टीवी नहीं देख रहे थे इसलिए आख़िर तक उन्हें इस उम्मीद में सुनते रहे कि किसानों मजदूरों और बेरोज़गार करोड़ों लोगों, भूखे, बीमार लोगों और आम जनता को भरोसे में लेने के लिए वे कुछ तो कहेंगे।
पूरे भाषण में कोरोना जांच की बात उन्होंने नहीं की।
पूरे भाषण में उन्होंने दूसरी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के इलाज की बात नहीं की।
पूरे भाषण में उन्होंने ट्रेन और सार्वजनिक परिवहन, कल कारखाने, काम धंधे खोलने की बात नहीं कही।
उन्होंने लॉक डाउन को जायज बताने में ही इतना वक्त लगाया, जिसे समझने में किसी को कोई असुविधा नहीं हुई। सारे मुख्यमंत्री, सारे विपक्ष के नेता और आम नागरिक भी इसे जरूरी मान रहे हैं।
लोग जानना चाहते थे कि घर का चूल्हा जलाने का क्या इंतज़ाम होगा इस दौरान।
लोग जानना चाह रहे थे कि फसल कैसे कटेगी और कहां बिकेगी।
लोग जानना चाह रहे थे कि राशन सबको मिलेगा या नहीं।
खालिस जुमलों की बरसात के लिए लोग टीवी के सामने बैठे नहीं थे।
वे समझना चाहते थे कि इस कोरोना महामारी, भुखमरी, बेरोज़गारी और अर्थ व्यवस्था के बहुआयामी संकट से निकलने की सरकार की क्या योजना है और उसे कैसे अमल में लाएगी।
मीडिया रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन की बातें कर रहा था कई दिनों से। पीएम ने 20 अप्रैल तक इंतज़ार करने के लिए कहा। दिशा निर्देश अलग से जारी करने की बात कही। तो वे सम्बोधन किसे और क्यों कर रहे थे।
उन्होंने विदेश से आने वाले लोगों की निगरानी का दावा किया। कितने लोग विदेश से आये, कितनों की जांच हुई, कितने संक्रमित हुए उसका ब्यौरा नहीं दिया गया।
प्रधानमंत्री संसाधनों की कमी का रोना रोते रहे।
क्या हमारे पास वियतनाम, सिंगापुर, ताइवान, हांगकांग, क्यूबा, दक्षिण कोरिया से भी कम संसाधन हैं।
हमारी समझ में कुछ नहीं आया।
शाम को बिजली आयी तो खबरों में बांद्रा और सूरत के मजदूर थे। उनकी भूख थी। सत्ता की राजनीति थी। मस्जिद का जिक्र था। मजदूरों की बेबसी थी। गांव तक पहुंचने की बेसब्री थी।
कल हमने वियतनाम में एक भी मौत न होने की कहानी पर एक वीडियो शेयर किया था।
आज पुण्य प्रसून वाजपेई का स्वास्थ्य पर हजारों करोड़ की विदेश मदद के वावजूद इसे अंधाधुंध मुनाफा का खेल बनाने के बेशर्म विकास पर एक वीडियो आपकी राय के निवेदन के साथ शेअर किया है।
हर अंधेरी रात की सुबह होती है। जिनसे अंधेरे में रोशनी की उम्मीद होती है वे और गहन अंधकार बांट रहे हो तो यह रात कैसे कटेगी?
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जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
सुबह होने तक हम क्या-क्या खोने वाले हैं?
कहाँ-कहाँ चोरी हो रही है?
कहाँ-कहाँ डाका डाला जा रहा है?
किस-किसकी जान माल खतरे में है?
कोई जवाब नहीं है।
अगले 19 दिनों में कोरोना पर कितना नियंत्रण हो पायेगा और कितने टेस्ट होंगे, कहाँ कहाँ-हॉट स्पॉट बनेंगे, थर्ड स्टेज के हालात में अमेरिका बनने से कैसे बचेंगे, कोई जवाब नहीं, कोई भरोसा नहीं।
कब फंसे हुए बेरोज़गार भूखे लाखों लोग अपने गांव तक पहुंचेंगे, कोई जवाब नहीं।
हालात सुधरे या हैं, कब खुलेंगे रोज़गार के रास्ते, कब चालू होंगे कल कारखाने, कारोबार या अनन्तकाल तक हमारे विश्व भर में बेस्ट प्रधानमंत्री बीच-बीच में मास्क पहनकर जुमलों की बरसात ही करते रहेंगे?
पलाश विश्वास