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Lockdown in Delhi had devastating effect
एक अध्ययन में देखा गया कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान लोगों में मानसिक और भावनात्मक स्तर पर समस्याएं (Problems at the mental and emotional level in people during the corona lockdown) अधिक बढ़ गई हैं। इसके साथ ही अन्य समस्याओं में खाद्य पदार्थों का कम मिलना (lack of food) और अधिक महंगा होना भी शामिल है।
नई दिल्ली, 17 मई 2020. दिल्ली में लॉकडाउन का विनाशकारी प्रभाव पड़ा। लेकिन इसके साथ ही इंसानी आदतों में कई बड़े और लाभकारी परिवर्तन भी देखने को मिल रहे हैं। गैर अप्रवासी मजदूरों पर किए गए इस अध्ययन से पता चलता है कि लोगों ने मास्क का इस्तेमाल पहले के मुकाबले अधिक किया। इसके साथ ही हाथ धोना भी आदत में शामिल हुआ, जिससे वायरस के प्रभाव को कम करने में मदद मिली।
हाल ही में भारत में शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी इंडिया) के कार्यकारी निदेशक डॉ केन ली के एक शोध में ये बातें सामने आई है.
Most of the poor and non-migrant workers in Delhi have seen their weekly incomes fall by at least 57% during the lockdown.
शोध में पाया गया है कि दो महीने के लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में ज्यादातर गरीब और गैर-प्रवासी कामगारों ने अपने साप्ताहिक आय में कम से कम 57% की गिरावट देखी है, जबकि कार्यदिवस में आकस्मिक तौर पर 73% की कमी हुई है। दस में से नौ लोगों ने बताया कि मई के शुरू तक साप्ताहिक आय शून्य हो गई थी।
नौकरी में इस नुकसान के बावजूद ये देखा गया कि लोग बड़ी संख्या में स्वास्थ्य से संबंधित निर्देशों का पालन कर रहे हैं। कोविड-19 के आने से पहले की तुलना में मास्क का उपयोग चौगुणा हो गया है। घर के अंदर समय दोगुणा हो गया है। यही नहीं हाथ धोना तो लगभग सभी घरों में जरूरी हो गया है।
Lockdown has been financially disastrous for non-migrant workers in Delhi as well
डॉ केन ली के मुताबिक,
‘’दिल्ली में गैर-प्रवासी श्रमिकों के लिए भी लॉकडाउन आर्थिक रूप से विनाशकारी रहा है, लेकिन इससे इंसानी व्यवहार में बड़े पैमाने पर बदलाव आया। लोगों ने मास्क पहनना अधिक शुरू कर दिया। वे घर के अंदर अधिक रहने लगे, वहीं सामाजिक तौर पर लोगों से मिलना कम कर दिया। वे अपने हाथों को नियमित रूप से धोते थे, साथ ही धूम्रपान भी कम कर दिया। ये आदतें वायरस के प्रसार और स्वास्थ्य प्रभावों को सीमित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।’’
डॉ केन ली इसको लेकर चिंता जाहिर करते हैं।
उनके मुताबिक
"अभी हमारे पास एक बड़ा सवाल यह है कि क्या लॉकडाउन हटने के बाद ये सकारात्मक व्यवहार जारी रह सकते हैं, यहां तक कि डर और कोविड-19 का मीडिया कवरेज भी ऐसा ही रहेगा, या फिर ये कम हो जाएगा।’’
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शोधकर्ताओं ने पाया कि लोगों के इस व्यवहार परिवर्तन में मीडिया की बड़ी भूमिका रही है। इस दौरान मीडिया कवरेज को दर्शाने के लिए ट्विटर का डेटा इस्तेमाल किया। इसके मुताबिक कोविड-19 को लेकर 25 मार्च के बाद मीडिया कवरेज में 56 प्रतिशत का उछाल देखा गया। इस दौरान 80 प्रतिशत लोगों ने इस बीमारी को लेकर चिंतित महसूस किया।
डॉ ली के मुताबिक,
“जिन लोगों पर यह सर्वे किया गया उसमें दिल्ली में ज्यादातर गैर-प्रवासी कामगारों के स्वास्थ्य, भूख, सुरक्षा आदि मसलों में बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है। बहुत से लोगों ने दिल्ली सरकार के खाद्य सहायता कार्यक्रम से लाभान्वित होने की सूचना दी।’’
उन्होंने कहा कि,
‘’नए अनुमानों के आधार पर आने वाले महीनों में संक्रमण में वृद्धि की उम्मीद है, इसलिए सरकार को इस प्रकार के सहायता कार्यक्रमों का तेजी से विस्तार करने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।”
अध्ययन में यह भी देखा गया कि इस दौरान लोगों में मानसिक और भावनात्मक स्तर पर समस्याएं अधिक बढ़ गई है। इसके साथ ही खाद्य पदार्थों का कम मिलना और अधिक महंगा होना अपने आप में एक अलग समस्या बनकर उभरी है।
इस अध्ययन में साल 2018 और 2019 की स्थिति की तुलना लॉकडाउन की अवधि 25 मार्च से 17 मई तक की की गई है। सर्वे में फेसबुक मोबिलिटी डेटा के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि मई के शुरूआत में ही जनता कर्फ्यू के तुरंत बाद ही एक शहर से दूसरे शहर जाने की मात्रा में 80 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।