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भारत की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील का नाम जानते हैं आप?

‘टूना’ के अस्तित्व पर मंडराता खतरा

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उत्तरी भारत के सबसे बड़ा ताजा झील का नाम क्या है?

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ताजे पानी की सबसे बड़ी झील कौन सी है?

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भारत में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील किस राज्य में स्थित है?

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लोकटक झील, भारत में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है। यह झील मणिपुर की राजधानी इम्फाल (Imphal, capital of Manipur) से 53 किलोमीटर दूर और दीमापुर रेलवे स्टेशन के निकट स्थित है। 34.4 डिग्री सेल्सियस का तापमान, 49 से 81 प्रतिशत तक की नमी, 1,183 मिलीमीटर का वार्षिक वर्षा औसत तथा पबोट, तोया और चिंगजाओ पहाड़ मिलकर इसका फैलाव तय करते हैं। इस पर तैरते विशाल हरित घेरों की वजह से इसे तैरती हुई झील कहा जाता है।

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एक से चार फीट तक मोटे ये विशाल हरित घेरे वनस्पति मिट्टी और जैविक पदार्थों के मेल से निर्मित मोटी परतें हैं। परतों की मोटाई का 20 प्रतिशत हिस्सा पानी में डूबा रहता है; शेष 80 प्रतिशत सतह पर तैरता दिखाई देता है। ये परतें इतनी मजबूत होती हैं कि स्तनपायी जानवरों को वजन आराम से झेल लेती हैं।

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फूमदी (फुमड़ी) क्या है?

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स्थानीय बोली में इन्हें फुमदी (Phumdis are a series of floating islands, exclusive to the Loktak Lake in Manipur state, in northeastern India) कहते हैं। फूमदी के भी मुख्यत: दो प्रकार हैं- 'फूमदी एटाओबा’ यानी तैरती हुई फूमदी और 'फूमदी अरुप्पा’ यानी डूबी हुई फूमदी। इनके नाते से ही लोकटक लेक को दुनिया की इकलौती तैरती झील का दर्जा प्राप्त है।

फूमदी पर संरक्षित पार्क (Protected Park on Phumdi)

नमी, जलजीव, वनस्पति और पारिस्थितिकी की दृष्टि से लोकटक (Ecologically Loktak) काफी धनी झील मानी जाती है। जहाँ तैरती हुई फूमदी पर कई तरह की घास, नरकुल तथा अन्य पौधे मौजूद हैं, वहीं डूबी हुई फूमदी पर पनपी वनस्पति उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली साबित होती रही है।

विश्व का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय पार्क

दिलचस्प है कि फूमदी का सबसे बड़ा घेरा 40 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का है। इस घेरे के रूप में निर्मित इस भूभाग को भारत सरकार ने ' केयबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान(Keibul Lamjao National Park) का नाम व दर्जा दिया है।

फूमदी निर्मित इस पार्क को संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए भारत सरकार ने 'रामसर साइट’ घोषित किया गया है। 'केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय पार्क’ दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय पार्क भी है।

पार्क में संरक्षित क्षेत्र का रकबा पहले चार हजार हेक्टेयर था। स्थानीय निवासियों के दबाव में अप्रैल, 1988 में घटाकर 2,160 हेक्टेयर कर दिया गया है। फूमदी का रकबा बढ़ने-घटने के साथ पार्क का रकबा भी घटता-बढ़ता रहता है। संरक्षित क्षेत्र, सरकार के अधिपत्य में है और शेष पर थांग, बरेल और मारिल जनजाति के स्थानीय निवासियों का मालिकाना है।

समृद्ध पारिस्थितिकी (rich ecology) : डांसिंग डियर का घर

प्राप्त जानकारी के मुताबिक एक वक्त में मान शर्मा ने इस पार्क की स्थापना की थी। कई खास वनस्पतियों, पुष्पों और जीवों से समृद्ध होने के कारण भी यह पार्क खास है। संगमरमरी व, एशियन सुनहरी बिल्ली, कई खास तरह के साँप, अजगर, काला हिमालयी व मलायन भालू, जंगली कौआ, स्काईलार्क, स्पॉटबिल, बर्मी सारस जैसे कई विविध रंग-बिरंगे पक्षी 2014 के आँकड़ों के अनुसार यह पार्क, स्थानीय बोली में संगाई के नामकरण वाले दुर्लभ प्रजाति के मौजूदा 216 हिरणों का भी घर है। खास अदा के कारण संगाई हिरणों को यहां 'डांसिंग डियर’ भी कहते हैं।

संगाई हिरणों (Sangai in Manipur society) को मणिपुर के 'राज्य पशु’ (state animal of Manipur) का दर्जा प्राप्त है। वन्यजीव गणना के मुताबिक, वर्ष 1975 में इनकी संख्या (Sangai deer in Manipur) मात्र 14 थी। 1995 में 155 और पिछले वर्ष 2016 का आँकड़ा 216 संगाई हिरणों का है।

संगाई हिरणों को प्रिय 'जिजानिया लेतीफोलिया’ नामक पौधा यहाँ काफी है।

यहाँ गर्मियों में अधिकतम तापमान 35 डिग्री और सर्दियों में न्यूनतम 01.7 डिग्री सेंटीग्रेड तक जाता है।

आर्द्रता का आँकड़ा, अगस्त में अधिकतम 81 प्रतिशत और मार्च में न्यूनतम 49 प्रतिशत का है। ये आँकड़े भी संगाई हिरणों की बढ़त में सहायक सिद्ध जरूर हुए हैं, लेकिन मानव निर्मित कई परिस्थितियाँ ऐसी हैं, जो पार्क के लिये अहितकर सिद्ध हो रही हैं।

समृद्धि पर संकट का कारण बना बैराज (Barrage caused crisis on prosperity)

आजकल यहाँ झील और पार्क के बीच में एक द्वन्द्व खड़ा हो गया है। द्वन्द्व का कारण बना है एक बैराज। गौर कीजिए कि लोकटक बहुउद्देशीय परियोजना के अन्तर्गत 1983 में यहाँ एक बैराज बनाया गया। इस 'इथाई बैराज’ के बनने के बाद से झील का अधिकतम जलस्तर 768 से 768.5 मीटर रहने लगा। लगभग एक समान जलस्तर के कारण फूमदियों के डूबने और तैरने का प्राकृतिक चक्र टूट गया।

पहले ऋतु अनुसार फूमदियाँ डूबती-उतराती थीं; अब पार्क में अक्सर बाढ़ का ही दृश्य रहता है। पहले पार्क में नरकुल क्षेत्र ही था। परियोजना बनने के बाद से पार्क का एक-तिहाई हिस्सा पानी में डूबा रहता है और दो-तिहाई इलाका फूमदी क्षेत्र है।

माना जा रहा है कि लगातार बनी बाढ़ के कारण ही फूमदियों की मोटाई में गिरावट आई है; वनस्पतियों की वृद्धि दुष्प्रभावित हुई है। स्थानीय लोगों को भोजन देने वाली वनस्पतियों और मछलियों का संकट भी इस बैराज ने बढ़ाया है। खासकर छोटे जीवों पर तो संकट बढ़ा ही है।

वनस्पतियों की वृद्धि को स्थानीय लोकटक पनबिजली परियोजना ने एक और तरह से दुष्प्रभावित किया है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, पहले जब स्थानीय नदी - खोरदक तथा अन्य धाराओं में बाढ़ आती थी, तो उनका प्रवाह उलट जाता था। वह उलटा प्रवाह आकर लोकटक की सतह पर फैल जाता था।

नदियों से आया यह जल कई ऐसे पोषक और धातु तत्व अपने साथ लाता था, जो सूखे मौसम में नीचे जमकर उर्वरा क्षमता बढ़ाते थे। वनस्पतियों की वृद्धि अच्छी होती थी; अब कम होती है।

नगरीय प्रदूषण, रासायनिक खेती का प्रदूषण वन कटान, मिट्टी कटान, वनस्पतियों के सडऩे और फूमदियों के ऊपर तक डूबे रहने के कारण लोकटक झील के पानी की गुणवत्ता में भी कमी (Decreased water quality in Loktak lake) दर्ज की गई है। एक जाँच में लोकटक के पानी का पीएच मान 04 से 08.5 तक पाया गया। चिन्तित करता सवाल है कि इन सब कारणों से यदि फूमदी नष्ट होती रही, तो एकमात्र तैरती झील और पार्क का रुतबा कब तक बचेगा?

मूल कारण पर हो ध्यान

समाधान के तौर पर अधिक ऊँचाई वाले ऐसे स्थानों का निर्माण सुझाया गया है, जीव जहाँ निवास कर सकें। शोध, प्रशिक्षण, जन-जागृति अभियान, पारिस्थितिकी अनुकूल पर्यटन, ईंधन पर पाबन्दी जैसे उपाय भी सुझाए गए हैं। क्या गजब की बात है जो समस्या परियोजनाओं ने पैदा की है, हम उसका समाधान शोध, प्रशिक्षण, जागृति और पर्यटन में खोज रहे हैं।

भारत में आजकल यही हो रहा है। पहले समस्या पैदा करो, फिर उसका समाधान करने के लिये प्रोजेक्ट बनाओ, पैसा खपाओ; किन्तु समस्या के मूल कारण को यथावत बना रहने दो। कई अन्य की तरह इथाई बैराज भी कुदरती सम्पदाओं को बर्बादी की ओर ले जाती हमारी बेसमझी का एक नमूना है।

इस बेसमझी को और गहरे से समझना तथा समाधान की आवाज उठाना भी लोकटक भ्रमण का एक उद्देश्य हो सकता है। कभी चलिए।

अरुण तिवारी

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