Advertisment

लूट-कमीशनखोरी बन चुका है नीतीश सरकार का पर्याय - माले

author-image
hastakshep
03 Mar 2021
New Update
पटना में NRC-CAA-NPR के खिलाफ गरीब दलित उतरे सड़कों पर

Advertisment

पटना से विशद कुमार, 03 मार्च - गांव से लेकर शहर तक नई आवास नीति बनाने के केंद्रीय नारे के साथ आज खेग्रामस (अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मज़दूर सभा) व मनरेगा मजदूर सभा के संयुक्त तत्वावधान में बिहार विधानसभा मार्च में हजारों की संख्या में दलित-गरीब, मनरेगा मजदूर पटना पहुंचे। उन्होंने 12 बजे गेट पब्लिक लाइब्ररी से हाथों में अपनी मांगों की तख्तियां लिए मार्च किया और फिर गर्दनीबाग धरनास्थल पर सभा की।

Advertisment

सभा में दोनों संगठनों के नेताओं के अलावा माले के सभी विधायक व अखिल भारतीय किसान महासभा के भी नेतागण शामिल हुए। मार्च में महिलाओं की बड़ी उपस्थिति देखी गई।

Advertisment

उपर्युक्त केंद्रीय मांग के साथ-साथ मनरेगा मज़दूरों को 200 दिन काम और 500 रुपये दैनिक मज़दूरी का प्रावधान, मासिक पेंशन भुगतान और सबों को राशन की गारंटी करने, सरकारी स्कूल के लड़के-लड़कियों को स्मार्ट मोबाइल देने, तीनों कृषि कानून रद्द करने, जल-जीवन हरियाली योजना के नाम पर गरीबों को उजाड़ने पर रोक लगाने, लूट-कमीशनखोरी पर रोक लगाने आदि मांगें उठाई गईं।

Advertisment

ग्रामीण गरीबों की सभा के साथ माले के सभी विधायकों ने अपनी एकजुटता दिखाई। महबूब आलम, गोपाल रविदास सत्यदेव राम, बीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, अरूण सिंह, महानंद सिंह, रामबलि सिंह यादव आदि विधायकों ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विधानसभा के अंदर भी इन सवालों को हम मजबूती से उठायेंगे। उनके अलावा रामेश्वर प्रसाद, धीरेन्द्र झा, पंकज सिंह, शत्रुघ्न साहनी, उपेंद्र पासवान, जिवछ पासवान भी मार्च में शामिल थे।

Advertisment

खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा ने इस मौके पर कहा कि बिहार की बदहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कोरोना लॉकडाउन जनित तबाही (Corona lockdown-caused havoc) ने पूरी तरह से तहस नहस कर दिया है। बिहार के तकरीबन 1 करोड़ ग्रामीण परिवारों का गुजारा राज्य के बाहर के रोजगार से होता है और असंगठित क्षेत्र में कार्यरत इन ग्रामीण कामगारों की रोजी रोटी आज संकटग्रस्त है। सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले इनके लड़के-लड़कियों की पढ़ाई पूरी तरह बाधित हो गयी हैं। इसके साथ ही गांव के बूढ़े-बुढियों, विकलांगों, निराश्रितों, विधवाओं आदि की जीवन स्थिति दयनीय हो चली है। यही वजह है कि भूख और कुपोषण में राज्य की हालिया रिपोर्ट चिंताजनक तस्वीर पेश कर रही है। केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा संचालित ग्रामीण विकास व गरीब हितैषी  योजनाएं घोर अनियमितता का शिकार हैं। लूट और कमीशनखोरी चरम पर है। रिश्वत का आलम यह कि अब बिना अग्रिम रिश्वत दिए किसी योजना का लाभ गरीबों को नहीं मिल रहा है।

Advertisment

सत्येदव राम ने कहा कि चौतरफा तबाही के बीच गरीबों को उजाड़ने का खेल चल रहा है। लोगों को समय पर मासिक राशन-पेंशन नहीं मिल रहे हैं। जब हम पेंशन का सवाल उठाते हैं, तो सरकार उल-जलूल बयान देती है। मनरेगा में लोगों को काम और समय पर उचित मजदूरी के भुगतान पर मनरेगा लूट की खेती चल रही है। सरकार के पास कोई सर्वे नहीं है और न ही वह कोई जमीनी सर्वे कराने को लेकर तत्पर है। राज्य में तकरीबन 50 लाख ऐसे परिवार हैं जिनके पास वासभूमि का कोई मालिकाना कागज नहीं है, जहां वे दशकों से रह रहे हैं। वे नदियों, नदियों के भड़ान, तालाब-पोखरों, तटबंधों, सड़क के किनारे अथवा अन्य सरकारी व वन विभाग की जमीन पर बसे हैं। जमीन का मालिकाना कागज नहीं रहने के चलते उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल रहे हैं। हम इन सारे सवालों पर सरकार को घेरने का काम करेंगे।

Advertisment

महबूब आलम ने कहा कि शासनतंत्र को यह नहीं पता है कि राज्य में 60 फीसदी से ज्यादा खेती बटाई पर हो रही है। बड़ी संख्या में छोटे व मध्यम किसानों ने अलाभकर खेती छोड़ दी है और अपनी जमीन बटाई पर दे दी है। लेकिन बटाईदारों को कोई सरकारी सुरक्षा और सुविधा नही मिल रही हैं। राज्य सरकार द्वारा 2006 में  मंडी कानून को समाप्त कर दिया गया, इससे किसानों की बदहाली बढ़ी है। राज्य में कृषि लागत खर्च ज्यादा है और सरकारी खरीद नहीं होने के चलते कृषि घाटा अकल्पनीय तौर पर बढ़ा है। फसल बीमा का लाभ अथवा फसल क्षति मुआवजा बटाईदारों - लघु किसानों को बिल्कुल नहीं मिल रहे हैं।

प्रदर्शन के माध्यम से निम्नलिखित मांगें मांगी गईं -

1. जहां झुग्गी-वहीं मकान की नीति के आधार पर नई आवास नीति बनाई जाए। बिना वैकल्पिक व्यवस्था के गरीबों को उजाड़ने पर रोक लगे।

2. मनरेगा में प्रति मजदूर 200 दिन काम और 500 रुपये दैनिक मजदूरी का प्रावधान हो। किसी भी स्थिति में उन्हें राज्य में तय न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने पर रोक लगे। झारखण्ड सरकार की तरह बिहार सरकार तत्काल मनरेगा मजदूरी में इजाफा करे। मनरेगा कार्यस्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग हो, जॉब कार्ड को ठेकेदारों-पंचायत प्रतिनिधियों के कब्जे से बाहर किया जाए।

3. सभी जरूरतमंद परिवारों और परिवार के सभी सदस्यों को राशन दे सरकार। राशन में अनिवार्य रूप से डाल कर प्रावधान को शामिल किया जाए।

4. 60 साल से ऊपर के सभी वृद्धों, विकलांगों, विधवाओं सहित सभी निराश्रितों को प्रति महीना कम से कम 3000 रुपये का पेंशन दे। मासिक पेंशन भुगतान की गारंटी के लिये बीडीओ को जिम्मेवार बनाया जाए।

5. सरकारी विद्यालयों के शैक्षणिक स्तर में गुणात्मक सुधार के विशेष प्रबंध हो और 5वीं कक्षा के ऊपर के सभी छात्रों को स्मार्ट फोन दे सरकार। छात्रवृत्ति भुगतान की त्रैमासिक व्यवस्था हो।

6. प्रवासी मजदूरों का निबंधन हो तथा सभी घर लौटे सभी मजदूरों को 10 हजार रुपये कोरोना भत्ता दिया जाए।

7.प्रधानमंत्री आवास योजना में मची लूट पर लगाम लगाई जाए।घर के फोटो के आधार पर आवास मिले। जमीन के कागज की उपलब्धता के प्रावधान को समाप्त किया जाए।

8.बटाईदारों का निबंधन करने का कानून बनाये सरकार और उन्हें किसानों के सभी लाभ सुनिश्चित किया जाए।

9.अम्बानी-अडाणी के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ बिहार विधानसभा प्रस्ताव पारित करे। फसलों के अनिवार्य खरीद का कानून बने।

10.मंडी कानून की पुनर्बहाली हो तथा पंचायतों तक कृषि उपज की मंडी का विस्तार हो!

उम्मीद है कि सरकार अपेक्षित कदम उठाकर रूरल डिस्ट्रेस को कम करेगी और हाशिये पर खड़ी बड़ी आबादी को वाजिब हक देगी।

Advertisment
सदस्यता लें