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महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस पर संपादकीय टिप्पणी (Editorial Comment in Hindi on Operation Lotus in Maharashtra)
देशबन्धु में संपादकीय आज (Editorial in Deshbandhu today)
महाराष्ट्र में शिवसेना ने अपने से अलग विचारधारा रखने वाली कांग्रेस और राकांपा के साथ महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार (Mahavikas Aghadi coalition government) जब से बनाई है, तब से इस सरकार के अल्पायु होने की भविष्यवाणी भाजपा और उसके समर्थक नेता करते रहे हैं। इस गठबंधन के बीच कई बार मतभेद भी देखने को मिले, लेकिन संकट के वक्त ये तीनों दल एक साथ खड़े दिखाई देते हैं। और एक बार फिर महाराष्ट्र से ऐसी ही तस्वीर सामने आ रही है।
अपने 20 से अधिक समर्थक विधायकों के साथ गुजरात पहुंचे एकनाथ शिंदे
शिवसेना के वरिष्ठ विधायक एकनाथ शिंदे (Shiv Sena's senior MLA Eknath Shinde) अपने 20 से अधिक समर्थक विधायकों के साथ गुजरात के सूरत में डेरा डाले हुए हैं, जिससे महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार पर खतरे का अंदेशा जतलाया जा रहा है।
हालांकि राकांपा और कांग्रेस पूरी तरह से शिवसेना के साथ खड़े हैं और ये दोनों दल पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सरकार पर कोई आंच न आए।
भाजपा पर लगते रहे हैं सरकारों को अस्थिर करने के आरोप
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पिछले आठ सालों के भाजपा के शासन काल में देश में बहुत सी चीजें बदली हैं, लेकिन सत्ता के लिए भाजपा जो तिकड़मी खेल खेलती है, उसके नियम-कायदों में कोई बदलाव नहीं आया है। आलम ये है कि जब भी किसी गैरभाजपा शासित राज्य में सत्तारूढ़ दल के विधायक अचानक कहीं चले जाते हैं तो सरकार गिरने का अंदेशा जताया जाने लगता है।
भाजपा पर आरोप लगते रहे हैं कि कभी जांच एजेंसियों का दबाव डालकर, कभी धन या पद का लालच देकर वह विरोधी दलों के विधायकों को तोड़ती है।
वैसे भाजपा ने इन पैंतरों के लिए एक परिष्कृत नाम दिया है ऑपरेशन लोटस। कमल भाजपा का निशान है और इस निशान का परचम लहराने के लिए जो अभियान चलाया जाए, वह है ऑपरेशन लोटस।
अब महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस चलाने की कोशिश कर ही भाजपा
हाल के बरसों में कर्नाटक और मध्यप्रदेश में ऑपरेशन लोटस के सफल उदाहरण देखे गए हैं, जहां कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर भाजपा ने अपनी सरकार बना ली। राजस्थान में भी यही कोशिश हुई थी। तब कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट कई दिनों तक अपने समर्थक विधायकों के साथ एक रिसार्ट में चले गए थे। लेकिन कांग्रेस के अनुभवी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बात संभाल ली और राजनैतिक अस्थिरता पैदा नहीं हुई। शायद भाजपा अब यही ऑपरेशन लोटस महाराष्ट्र में चलाने की कोशिश (Operation Lotus in Maharashtra) कर रही है।
सोमवार को महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव (Legislative Council elections in Maharashtra) हुए और उसमें भी राज्यसभा चुनावों के समान ही क्रास वोटिंग हुई थी। जिस वजह से महाविकास अघाड़ी गठबंधन उम्मीदवारों को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली, जबकि भाजपा के सभी प्रत्याशियों को जीत मिली।
चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे कहां गए, कुछ पता नहीं चल रहा था, फिर खबर आई कि वे अपने समर्थक विधायकों के साथ सूरत में हैं।
इस बीच इन विधायकों से संपर्क साधने की कोशिश की गई। जबकि दूसरी ओर भाजपा में हलचलें तेज हो गई और ये कयास लगने लगे कि उद्धव सरकार गिर सकती है और एक बार फिर सत्ता भाजपा की झोली में आ सकती है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक महाराष्ट्र में अनिश्चितता बनी हुई है। शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा तीनों गठबंधन साथी दावा कर रहे हैं कि सरकार पर कोई खतरा नहीं है।
कांग्रेस के सभी विधायकों को मुंबई में ही रहने के निर्देश दिए गए हैं। जबकि दिल्ली में शरद पवार ने प्रेस कांफ्रेंस की।
शरद पवार ने कहा है कि भाजपा ने इससे पहले भी तीन बार कोशिश की है, लेकिन इस बार भी उनकी चाल नाकाम होगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह शिवसेना का अंदरूनी मामला है। एकनाथ शिंदे ने कभी हम लोगों से नहीं कहा कि वो सीएम बनना चाहते हैं। उद्धव ठाकरे इसका कोई न कोई हल निकाल लेंगे। वो एकनाथ शिंदे को कोई नई जिम्मेदारी दे देंगे।
वैसे इस बीच एकनाथ शिंदे का भी ट्वीट आया है कि हम बालासाहेब के पक्के शिवसैनिक हैं। बाला साहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है। बाला साहेब के विचारों और धर्मवीर आनंद दीघे साहब की शिक्षाओं के बारे में सत्ता के लिए हमने कभी धोखा नहीं दिया और न कभी धोखा देंगे।
हिंदुत्व की बात तो करते हैं उद्धव ठाकरे, लेकिन नफरत की राजनीति के पक्षधर नहीं हैं
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श्री शिंदे के ट्वीट में बाल ठाकरे और हिंदुत्व का जिक्र है। शिवसेना से अलग होकर मनसे बनाने वाले राज ठाकरे भी बाला साहेब और हिंदुत्व की बातें करते हैं। क्योंकि शिवसेना की राजनीति इनके ही इर्द-गिर्द रही है। भाजपा और शिवसेना का लंबा साथ भी इसी वजह से चला। लेकिन अब बाल ठाकरे की शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथों में है, जो हिंदुत्व की बात तो करते हैं, लेकिन नफरत की राजनीति के हिमायती नहीं हैं। उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राकांपा के साथ मिलकर सरकार बनाई है और भाजपा को विपक्ष में बैठने पर मजबूर किया है। यही बात भाजपा को चुभती रही है और शिवसेना के भी कई पुराने और कद्दावर नेताओं को यह बात रास नहीं आई है।
एकनाथ शिंदे खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते थे, लेकिन उद्धव ठाकरे की वजह से उन्हें पीछे हटना पड़ा। आदित्य ठाकरे ने उनका नाम सदन के नेता के तौर पर प्रस्तावित किया, लेकिन अब आदित्य ठाकरे की सक्रियता और संगठन में बढ़ता कद उन्हें शायद खटक रहा है।
एकनाथ शिंदे के संघ, भाजपा और देवेन्द्र फड़नवीस से अच्छे संबंध रहे हैं। जानकार बताते हैं कि एकनाथ शिंदे भाजपा और शिवसेना को फिर से एक साथ लाना चाहते हैं। अगर ऐसा हुआ तो उनके सांसद बेटे श्रीकांत शिंदे का राजनैतिक भविष्य संवर सकता है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एकनाथ शिंदे की ओर से कोई नया कदम उठाने की जानकारी नहीं आई है। लेकिन उनके एक झटके ने महाराष्ट्र सरकार को हिला दिया है।
केंद्र में बैठी भाजपा के लिए इस हलचल में अपना फायदा ढूंढना आसान है, हालांकि महाराष्ट्र में अगर कांग्रेस और राकांपा अपने साथ छोटे दलों और निर्दलियों को एकजुट रखने में कामयाब हो जाते हैं, तो फिर शिवसेना में उठी बगावत को नाकाम कर सत्ता बचाई जा सकती है।
आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.
Web title : Maharashtra: Will BJP's Operation Lotus succeed?