मज़दूरों का गीत – असरार-उल-हक़ मजाज़
Majaz lakhanvi famous nazm mazdoor mehnat se mana choor hain hum
किसान हैं हम किसान हैं हम
मेहनत से ये माना चूर हैं हम
आराम से कोसों दूर हैं हम
पर लड़ने पर मजबूर हैं हम
किसान हैं हम किसान हैं हम
गो आफ़त ओ ग़म के मारे हैं
हम ख़ाक नहीं हैं तारे हैं
इस जग के राज-दुलारे हैं
किसान हैं हम किसान हैं हम
बनने की तमन्ना रखते हैं
मिटने का कलेजा रखते हैं
सरकश हैं सर ऊँचा रखते हैं
किसान हैं हम किसान हैं हम
हर चंद कि हैं अदबार में हम
कहते हैं खुले बाज़ार में हम
हैं सब से बड़े संसार में हम
किसान हैं हम किसान हैं हम
जिस सम्त बढ़ा देते हैं क़दम
झुक जाते हैं शाहों के परचम
सावंत हैं हम बलवंत हैं हम
किसान हैं हम किसान हैं हम
गो जान पे लाखों बार बनी
कर गुज़रे मगर जो जी में ठनी
हम दिल के खरे बातों के धनी
किसान हैं हम किसान हैं हम
हम क्या हैं कभी दिखला देंगे
हम नज़्म-ए-कुहन को ढा देंगे
हम अर्ज़-ओ-समा को हिला देंगे
किसान हैं हम किसान हैं हम
हम जिस्म में ताक़त रखते हैं
सीनों में हरारत रखते हैं
हम अज़्म-ए-बग़ावत रखते हैं
किसान हैं हम किसान हैं हम
जिस रोज़ बग़ावत कर देंगे
दुनिया में क़यामत कर देंगे
ख़्वाबों को हक़ीक़त कर देंगे
किसान हैं हम किसान हैं हम
हम क़ब्ज़ा करेंगे दफ़्तर पर
हम वार करेंगे क़ैसर पर
हम टूट पड़ेंगे लश्कर पर
किसान हैं हम किसान हैं हम
(सौजन्य से – जस्टिस मार्कंडेय काटजू)
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