Majority of people are being denied political representation through population politics.
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हमारे दिवंगत मित्र प्रबीर गंगोपाध्याय ने बांग्ला में जनसंख्या की राजनीति (population politics) पर एक अद्भुत तथ्य आधारित, अखिल भारतीय ग्रास रूट लेवल सर्वेक्षण और जनसंख्या के आंकड़ों के साथ अद्भुत किताब लिखी थी।
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Politics of Demography
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इसी राजनीति के तहत भारत विभाजन करके सत्ता हस्तांतरण के बाद से लगातार जनसंख्या विन्यास बदलकर हाशिये के जन समुदायों के साथ देश की विविधता और बहुलता का सफाया हो रहा है और बहुसंख्य जनता को राजनीतिक प्रतिनिधित्व से वंचित रखा जा रहा है। सारे कायदे कानून इसी राजनीति के तहत बदले जा रहे हैं।
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आर्थिक सुधारों के पहले शहीद शंकर गुहा नियोगी के मजदूर अस्पताल और निर्माण और संघर्ष केंद्रित उनकी राजनीति पर उनके सहयोगी डॉ पुण्यव्रत गुण (Dr. Punyabrata Goon) की किताब का हिंदी में मैंने अनुवाद किया था। यह पुस्तक हमारे मित्र अनिल चमड़िया ने छापी है। मैंने छपी हुई पुस्तक अभी तक नहीं देखी है।
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डॉ गुण अब भी सक्रिय हैं। बंगाल के जन प्रतिबद्ध चिकित्सकों की एक बहुत बड़ी टीम है उनके साथ। ये लोग कोलकाता, सुन्दरवन, जंगल महल और उत्तर बंगाल में नियोगी के मजदूर अस्पताल की तर्ज पर कई अस्पताल चला रहे हैं।
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इन अस्पतालों में दिल का ऑपरेशन भी बहुत सस्ते में होते हैं। जेनेरिक दवाएं दी जाती हैं। अनावश्यक दवा, जांच और ऑपरेशन के बिना आम लोगों को कोलकाता के अनेक बड़े अस्पतालों के नामी डॉक्टर बिना फीस चिकित्सा सेवा देते हैं इन मजदूर अस्पतालों के जरिये।
कोरोना काल के कॉरपोरेट समय में हिंदी पट्टी में इस प्रयोग की चर्चा भी नहीं हो सकी है। हम मजदूर अस्पताल के बारे में सोच भी नहीं सकते। क्या डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी सोचते हैं? शायद Dr AK यानी ए के अरुण इस बारे में कोई ठोस जानकारी दे सकें। अनिल चमड़िया फिलहाल सम्पर्क में नहीं हैं।
डॉ प्रबीर गंगोपाध्याय (Dr Prabir Gangopadhyay) भी इस टीम में शामिल थे। उनकी बांग्ला किताब जनसंख्या की राजनीति का भी अनुवाद हमने किया था, लेकिन यह पुस्तक कॉपी राइट बांग्ला प्रकाशक के पास होने की वजह से हिंदी में छप नहीं सकी।
प्रबीर बाबू इस समस्या का कुछ हल निकालते इससे पहले उनका निधन हो गया।
उनकी बेटी दुनिया अभी मजदूर अस्पताल हावड़ा के फुलेश्वर में डॉ गुणके साथ काम कर रही हैं।
हम सभी चाहते थे कि कॉरपोरेट राजनीति में सत्ता के गणित साधने के समीकरण बनाने वाले जाति, धर्म, नस्ल, भाषा, अस्मिता, क्षेत्र के हिसाब से मेहनतकश को बांटकर उनके सफाये की इस ध्रुवीकरण या जनसंख्या की राजनीति पर वस्तुपरक ढंग से वैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी पट्टी में भी गम्भीर चिंतन मंथन कर भावनाओं की राजनीति के बदले जनता की राजनीति के लिए बहस शुरू हो।
इसी मकसद से जनसंख्या की राजनीति के कुछ अंश अमलेन्दु उपाध्याय के hastakshep.com में प्रकाशित भी किये गए थे। लेकिन वह संवाद अभी तक हम शुरू ही नहीं कर सके।