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निराला की प्रेरक कौन थीं?
हिन्दी में सूर्यकान्त त्रिपाठी ´निराला´ पर जब भी बातें होती हैं तो उनकी पत्नी की भूमिका का कभी जिक्र नहीं होता। सच यह है निराला को हिन्दीसेवा के लिए प्रेरित उनकी पत्नी ने किया।
निराला की ´कुल्लीभाट´ रचना बेहद दिलचस्प है। रामविलास शर्मा ने ´निराला की साहित्य साधना´में बहुत ही रोचक ढ़ंग से समूचे प्रसंग को उद्घाटित किया है।
निराला की पत्नी के कथासूत्र को ´कुल्लीभाट´ में देखें तो चीजों को बेहतर ढ़ंग से समझ सकते हैं।
मनोहरा देवी की समझ में निराला उस समय हिन्दी के पूरे गँवार थे, ´बिलकुल ठोस मूर्ख´। हिन्दी को लेकर पति-पत्नी की बातचीत इस प्रकार हुई है-
पति- तुम हिन्दी- हिन्दी करती हो, हिन्दी में क्या है ॽ
पत्नी- जब तुम्हें आती ही नहीं, तब कुछ नहीं है।
पति- मुझे हिन्दी नहीं आती ॽ
पत्नी- वह तो तुम्हारी ज़बान बतलाती है। बैसवाड़ी बोल लेते हो, तुलसीकृत रामायण पढ़ी है, बस तुम खड़ी बोली का तुम क्या जानते हो ॽ
संवाद के बाद पूरी बात बतलाते हुए निराला ने लिखा है कि उनकी पत्नी ने खड़ी बोली के बहुत-से महारथियों के नाम गिना दिये। पर मनोहरा देवी ने भजन गाया तो तुलसीदास का।
उस समय मनोहरादेवी की उम्र 13-14 साल रही होगी। उपरोक्त संवाद में यह देखें कि निराला की पत्नी की कितनी विकसित चेतना थी कि वह खड़ी बोली हिन्दी के पक्ष में बोल रही थीं, लेकिन उस समय निराला के पास वह चेतना नहीं थी।
निराला की पत्नी गांव में रहते हुए भी खड़ी बोली हिन्दी के नए कवियों से वाकिफ थीं, निराला नहीं।
निराला ने जब अपनी पत्नी से यह सवाल किया कि हिन्दी में क्या है ॽ तो वे नहीं जानते थे कि उनको सटीक उत्तर भी मिलेगा। यह संवाद जिस समय हो रहा था निराला 16साल के रहे होंगे। निराला का मुँह बंद करने के लिए मनोहरा देवी ने उसी समय निराला को खड़ी बोली हिन्दी के दो गीत गाकर सुनाए। यह उस समय गांव में रहने वाली 13-14 साल की लड़की की चेतना थी।
निराला के अनुसार जो दो गीत सुनाए वे हैं-
पहला- अगर है चाह मिलने की तो हरदम लौ लगाता जा।
दूसरा- सासुजी का छोकड़ा, मेरी ठोड़ी पर रख दिया हाथ।
बहुत गम खा गई नहीं चाँटे लगाती दो-चार।।
रामविलास शर्मा ने इस समूचे प्रसंग पर लिखा है ´निराला को जिस बात ने प्रभावित किया,वह था मनोहरा देवी का मधुर कण्ठ-स्वर।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन-सुनकर पहलीबार निराला के ज्ञान नेत्र खुले; उन्हें संगीत के साथ काव्य के अमित प्रकाश का ज्ञान हुआ। यह भजन निराला जीवन भर गाते रहे; इससे अधिक उनके हृदय को प्रभावित करने वाला दूसरा गीत संसार में न था।
मनोहरा देवी गढ़ाकोला में रामायण पढ़ा करती थीं। निराला के चाचा दरवाजे पर बैठे सुनते थे। मनोहरा देवी ने निराला का परिचय खड़ी बोली से नहीं, तुलसीदास से कराया। तुलसीदास को ज्ञान मिला,पत्नी के उपदेश से; निराला को हिन्दीसेवा के लिए प्रवृत्त किया मनोहरादेवी ने !´
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी