Advertisment

मतगणना से जुड़े अनेक दिलचस्प किस्से

author-image
hastakshep
22 Nov 2020
New Update
आत्मनिर्भर भारत में बिजली निजीकरण का विरोध कर रहे बिजली कामगारों की गिरफ्तारी, वर्कर्स फ्रंट ने भर्त्सना की

Advertisment

Many interesting stories related to counting

Advertisment

भोपाल। दिनांक 10 नवंबर को बिहार विधानसभामध्यप्रदेश विधानसभा की 28 सीटों सहित अनेक राज्यों में हुए विधानसभा व लोकसभा उपचुनावों की मतगणना हो गई। अब मतगणना इतनी द्रुतगति से होती है कि अपरान्ह तक परिणाम आ जाते हैं।

Advertisment

Reporting of counting of votes of elections held in 1962

Advertisment

मैंने पहली बार सन् 1962 में संपन्न हुए चुनावों की मतगणना की रिपोर्टिंग की थी। वर्तमान में तो निर्वाचन कार्यालय अपने एक स्वतंत्र विशाल भवन में स्थित है किंतु उस समय वह शाहजहांनाबाद स्थित गोलघर के एक छोटे से हिस्से में स्थित था। कार्यालय में कुल एक-दो बरामदे और कमरे थे। मतगणना की रिपोर्टिंग करने के लिए एक बरामदे में पत्रकार कक्ष बनाया गया था। कक्ष में 15-20 कुर्सियों और कुछ टेबिलों की व्यवस्था थी।

Advertisment

पहला परिणाम देर रात तक आ पाता था। मतगणना लगभग दो दिन तक चलती थी। पत्रकारों के बीच प्रदेश के मुख्य चुनाव पदाधिकारी बैठते थे। जैसे ही कोई परिणाम आता था मुख्य चुनाव पदाधिकारी की टेबिल पर रखे माईक से उसकी घोषणा की जाती थी।

Advertisment

सभी अखबारों के संवाददाता अपने-अपने समाचार पत्र की डेडलाइन तक रिपोर्टिंग करते थे। हममें से अनेक संवाददाता अपनी-अपनी अंतिम रिपोर्ट देने के बाद फिर कार्यालय में आ जाते थे। एजेन्सियों और आकाशवाणी के प्रतिनिधि लगभग पूरी रात बैठे रहते थे।

Advertisment

एक-एक घंटे के अंतराल से परिणाम आते थे। इस दरम्यान पत्रकारों और मुख्य चुनाव पदाधिकारी के बीच दिलचस्प बातचीत चलती रहती थी।

हम लोगों ने अनेक पदाधिकारियों के कार्यकाल के दौरान रिपोर्टिंग की थी। इनमें सबसे दिलचस्प समय श्री एम. एस. चौधरी का था। बाद में वे प्रदेश के मुख्य सचिव भी बने।

अनेक परिणामों की घोषणा के पहले यह अनुमान लगाया जाता था कि कौन जीतने वाला है। इसको लेकर शर्तें भी लगतीं थीं। स्वयं चौधरीजी भी इन शर्तों में शामिल होते थे। जिसका अनुमान सही होता था उसे अल्पाहार की व्यवस्था करनी पड़ती थी। चौबीस घंटे चाय-नाश्ते का दौर चलता रहता था।

जब परिणाम आने का दौर थम जाता था तो हम लोग झपकी भी ले लेते थे। उस समय कब-जब ऐसी स्थिति भी बन जाती थी कि निर्वाचन कार्यालय के पहले राजनीतिक पार्टियों के कार्यालय में परिणामों की जानकारी आ जाती थी। इस मामले में सबसे शीघ्र बाजी जनसंघ का कार्यालय मार लेता था।

चौधरी साहब अनेक दिलचस्प किस्से सुनाते थे। हंसी के ठहाकों के बीच ये किस्से सुने जाते थे।

चौधरी साहब के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी जिनका नाम एल. बी. सरजे था मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बने। वे अत्यंत गंभीर स्वभाव के थे। बात कितनी ही दिलचस्प क्यों न हो उनके चेहरे पर मुस्कराहट नहीं आती थी। एक दिन हम लोगों ने उनसे पूछा कि आप हमेशा इतने गंभीर क्यों रहते हैं?

इसका उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। इस पर हमने उनके एक वरिष्ठ सहयोगी ने कहा कि चुनाव आयोग की अनुमति के बिना नहीं मुस्कराएंगे। यह सुनकर उनके चेहरे पर थोड़ी मुस्कराहट आई।

ऐसे ही मतगणना से जुड़े अनेक दिलचस्प किस्से हैं जो मुझे आज भी याद हैं।

एल. एस. हरदेनिया

Advertisment
सदस्यता लें