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Marks of Socio-Economic are eliminating children with merit
( हरियाणा सरकार का तुगलकी आदेश- Tughlaqi order of Haryana government निम्न स्तर के बच्चों को सरकारी नौकरी में ला रहा है. मेरिट वाले मेहनती और प्रतिभाशाली बच्चों के लिए हरियाणा में नौकरी के चांस (Job Chances in Haryana) न के बराबर हो गए हैं. वोट बैंक के लिए गरीबी और सरकारी नौकरी का हवाला देकर हरियाणा के आने वाले भविष्य को तबाह करने की राह पर है वर्तमान सरकार के बन्दर बाँट वाला ये आदेश. केवल ग्रुप सी और डी में पांच नंबर का अतिरिक्त प्रावधान (Extra provision of number five in Group C and D only) मध्यम वर्ग को खत्म कर रहा है.
बड़े घर के बच्चे देते हैं बड़ी नौकरी के एग्जाम इसलिए वहां जान-बूझकर नहीं खेला गया अतिरिक्त अंक (Extra marks) का ये पर्दे वाला खेल ताकि राजनीति के रसूखदार और बड़े घरानों के बच्चों को कोई दिक्क्त नहीं हो.क्या ये सरकार ऐसा कानून भी बनाएगी जिसके तहत चुनाव में बराबर सीटें जीतकर आने वाली पार्टी में से उस पार्टी को एक्स्ट्रा पांच सीट दे दी जाये जिसकी अब तक को सरकार नहीं बनी और उसकी सरकार बन जाये.)
--प्रियंका सौरभ
ये कैसी सरकार है और ये कैसे तुगलकी फरमान?. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा प्रदेश की जहां की वर्तमान सरकार ने अपने वोट बैंक के लिए गरीबों को लुभाने के लिए एक लपलपाती चाल चली है. देश भर में सुर्खिया बंटोर रही हरियाणा सरकार की सरकारी नौकरियों में केवल ग्रुप सी और डी की नौकरियों में एक्स्ट्रा पांच मार्क्स की नीति (Extra five marks policy in Group C and D jobs) मेहनती और प्रतिभाशाली बच्चों को एग्जाम में बैठने से पहले ही बाहर का रास्ता दिखा रही है. आज की इस गलाकाट प्रतियोगी परीक्षा में जहाँ मेहनती बच्चे रात-रात भर जागकर सरकारी नौकरी की आस में पूरा जोर लगाकर तैयारी करते हैं तब जाकर उनको कोई नौकरी नसीब होती है.
मगर हरियाणा प्रदेश की वर्तमान सरकार की तुगलकी नीति देखिये जहां एक-एक मार्क्स से मेहनती बच्चे फाइनल लिस्ट में रह जाते हैं और अगली बार के लिए कमर कस लेते हैं वहां ये तुगलकी आदेश रिटेन में पांच नंबर एक्स्ट्रा देकर निम्न स्तर के उम्मीदवारों को चयन में ला रहा है.
सोचिये जहाँ बच्चे आधे-आधे मार्क्स के लिए खुद को कोसते हैं कि काश में एक क्वेश्चन और कर देता वहां किसी निम्न स्तर के बच्चे को पांच नंबर का फायदा देकर मेरिट में पहुँचाना उस मेहनती बच्चे को कितना दुःख दे रहा होगा जो उच्च मार्क्स के बावजूद नौकरी और रोजगार की दौड़ से बाहर हो गया ?
हरियाणा सरकार ने उन घरों के बच्चों के लिए सरकारी नौकरी के लिए एग्जाम में एक्स्ट्रा पांच मार्क्स का प्रावधान किया है जिनके घरों में कोई सरकारी नौकरी नहीं है. कैसा आदेश है ये ??? सीधा तुगलकी फरमान. सरकारी नौकरी न होने के लिए मार्क्स भी एक या दो नहीं पूरे पांच निर्धारित कर दिए. जो किसी को भी मेरिट से बाहर कर दे. आखिर इनकी जरूरत क्या है ?
भारत का संविधान आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े लोगों के विकास के लिए तो एक्स्ट्रा प्रावधान करने की वकालत पहले ही करता है लेकिन उनके लिए तो कुछ नहीं कहता कि अमुक के पास ये चीज़ नहीं तो उसके लिए कुछ स्पेशल कर दो. जब पूरे देश भर में पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान है तो ये आरक्षण के ऊपर एक और आरक्षण क्यों ?
यही नहीं ये प्रावधान केवल ए ग्रुप सी और डी के लिए किया गया ताकि माध्यम वर्ग आपस में भिड़े. प्रथम क्लास नौकरी के लिए राजनीति के रसूखदार और अमीर घरों के बच्चे आवेदन करते हैं, इसलिए वहां अतिरिक्त अंक (Extra marks) का प्रावधान नहीं किया गया. या यूं कहें कि मध्यम वर्ग का गला काट दिया है और उन बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया जो एक सरकारी चपरासी का बच्चा है और जिसने एक अफसर बनने के या अपने बाप से थोड़ी बड़ी नौकरी के सपने देख लिए.
चपरासी साल में ज्यादा से ज्यादा तीन-चार लाख रूपये तनख्वाह लेता है. जबकि एक व्यापारी या बड़ा जमींदार और दूकान वाला सरकारी चपरासी से दसों गुना ज्यादा कमाता है. इसके बावजूद उस गरीब चपरासी के बच्चे को पांच नंबर नहीं मिलेंगे और लाखों कमाने वाले वाले व्यापारी, जमींदार या दूकान वाले के बच्चों को मिलेंगे.
इस तुगलकी फरमान का उदाहरण है हाल ही में हिसार की लाला लाजपतराय विश्विद्यालय द्वारा भर्ती किये गए लैब अटेंडेंट और क्लर्क भर्ती का अंतिम परिणाम. जिनमें सारे के सारे आवेदक वो ही चयनित हुए जिनके पास अतिरिक्त अंक (Extra marks) थे. मेधावी बच्चे परीक्षा देने, कट ऑफ में आने और डॉक्युमनेट्स वेरफिकेशन तक के मेहमान रहे. आखिरी बाज़ी निम्नस्तर के सीढ़ी वाले बच्चे हथिया गए.
अब दो प्रश्न ये उठते हैं कि आखिर उन प्रतिभाशाली बच्चों का क्या कसूर था जो एक्स्ट्रा पांच मार्क्स की वजह से नौकरी न पा सके?
हरियाणा सरकार का तर्क है कि सरकारी नौकरी वाले घरों का आर्थिक स्तर बढ़िया होता है और वो अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं. अब आप ही सोचिये. क्या एक तीन-चार लाख की सालाना आमदनी वाला चपरासी क्या किसी व्यापारी या जमींदार का मुकाबला कर सकता है जो चपरासी से दसों गुना ज्यादा कमाते हैं.
क्या ऐसे बैसाखी वाले लोग जो एक्स्ट्रा पांच मार्क्स की वजह से नौकरी पा गए, मेरिट वाले बच्चों से ज्यादा उपयुक्त हैं? भविष्य क्या होगा ऐसे सरकारी महकमों का? खासकर शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग का, जहां ये कम स्कोर वाले उम्मीदार सेवाएं देंगे. ऐसा करके हरियाणा सरकार हरियाणा का भविष्य तो बर्बाद कर ही रही है. साथ ही मेधावी बच्चों के संवैधानिक अधिकारों को भी छीन रही है. ये धक्के से असफल किये गए बच्चे आज और कल में अपना कोई भविष्य नहीं देख रहे. ऐसा न हो कि ये आत्महत्या की राह पर चल पड़ें.
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रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार.
सरकारी नौकरी के लगभग दसों टेस्ट क्लियर कर चुके और एक्स्ट्रा पांच मार्क्स न होने की वजह से फाइनल सिलेक्शन से दूर रहे, भिवानी के दीपेंदर, हिसार की प्रियंका, जींद के मनोज कहते हैं कि एक्स्ट्रा पांच मार्क्स का फायदा रिजर्वेशन होने के बावजूद देना सरकार का तुगलकी और वोट बैंक का फरमान है. इन्होंने यहाँ की सरकार के मुखिया से पूछा है कि क्या ये सरकार ऐसा कानून भी बनाएगी जिसके तहत चुनाव में बराबर सीटें जीतकर आने वाली पार्टी में से उस पार्टी को एक्स्ट्रा पांच सीट दे दी जाये जिसकी अब तक को सरकार नहीं बनी और उसकी सरकार बन जाये.
इन्होंने ये बात हरियाणा के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री को खुले तौर पर कही है. अगर वो इस बात को स्वीकार कर लेंगे और तो हरियाणा के मेधावी विद्यार्थी भी एक्स्ट्रा पांच मार्क्स को सही मान लेंगे.
इन एक्स्ट्रा पांच मार्क्स से आज वो घर भी दुखी हैं जहां किसी बच्चे को सरकारी नौकरी न होने की वजह से कहीं कोई छोटी नौकरी तो मिल गयी लेकिन अब उस के अच्छी नौकरी और घर में किसी अन्य सदस्य को नौकरी के सारे रस्ते बंद हो गए.
हरियाणा के मेधावी बच्चों की मांग को देखते हुए यहाँ की सरकार और उच्च न्यायालय को स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले को तुरंत संतुलित करना चाहिए. वरना हरियाणा के हर घर में बेरोजगारी की थाली और घण्टियां बजती रहेंगी और यहाँ के युवा आंदोलन की राह पकड़ लेंगे.