Matter of justifiable right of women to enter Sabarimala temple
रंजन गोगई ने जाते-जाते सबरीमाला मंदिर में औरतों के प्रवेश के न्यायपूर्ण अधिकार के मामले को झूठ-मूठ का कुछ इस प्रकार उलझा कर छोड़ दिया कि अब सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ इस विषय की चीर-फाड़ के लिये लगा दी गई है । वह पूरे विषय को कुछ ऐसे टटोल रही है जैसे कोई शरीर के अंगों को शरीर के अंदर विद्यमान न देख कर उनके बाहर बिखरे हुए रूप में देखे और उन पर चील कौवों की तरह टूट पड़े !
चौबे जी चले हैं छब्बे जी बनने !
अब यह पीठ सभी धर्मों की सभी रीति-रिवाजों की संभावनाओं-असंभावनाओं पर विचार करेगी, बल्कि कहा जाए तो कुछ भी नहीं करेगी, और अंतत: एक घाल-मेल पैदा करके धर्म जगत के प्रभुत्वशालियों की जकड़बंदी को मज़बूत करेगी और स्त्रियों के धार्मिक अधिकार के प्रति न्याय को कठिन बना देगी।
चौबे जी चले हैं छब्बे जी बनने पर तय है कि दूबे जी बन कर ही लौटेंगे। ये एक निश्चित विषय पर न्याय के प्रयोजन के प्रयोजन की मरीचिका के पीछे भटकेंगे !
वरिष्ठ वकील फाली नरीमन ने इस विषय में सुप्रीम कोर्ट की अधिकार सीमा और न्याय विवेक का बिल्कुल सही सवाल खड़ा किया है।
–अरुण माहेश्वरी
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