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Meaning of resignation of Swami Prasad Maurya
2022 में पाँच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों (Assembly elections to be held in five states in 2022) में जिस उत्तर प्रदेश पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं, उसके लिए 11 जनवरी का दिन बहुत खास रहा. इस दिन दिल्ली में जिस समय भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक चल रही थी, उस समय उत्तर प्रदेश में योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya, who was a cabinet minister in the Yogi government in Uttar Pradesh) ने पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया और उनके साथ तीन अन्य विधायक- रोशन लाल, भगवती सागर और ब्रजेश प्रजापति- भी भाजपा से निकल लिए.
अपने इस्तीफे में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा पर उठाए गंभीर सवाल
राज्यपाल को भेजे गए अपने इस्तीफे भाजपा की कार्य प्रणाली (BJP working method) पर गंभीर सवाल उठाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने पत्रकारों से अपने इस्तीफे पर बातचीत में कहा कि योगी मंत्रीमंडल में श्रम एवं सेवायोजन व समन्वय मंत्री के रूप में विपरीत परिस्थितियों व विचारधारा में रहकर भी बहुत ही मनोयोग के साथ उत्तरदायित्व का निर्वहन किया. लेकिन दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के कारण उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देता हूँ.
यूपी विधानसभा में किसकी सरकार बन रही है, इस सवाल पर मौर्या ने कहा कि जहाँ पर रहेंगे, उसी की सरकार आएगी. मेरी नाराजगी विचारधारा से है. भाजपा की विचारधारा गरीबों, दलितों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों के खिलाफ है. मैंने सामाजिक न्याय के लिए लगातार संघर्ष किया है, आगे भी करता रहूँगा. मुझे जहाँ भी सामाजिक न्याय साकार होता दिखेगा, मैं वहीं रहूँगा.
श्री मौर्य के सपा ज्वाइन करने का स्वागत करते हुए अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा है, ‘सामाजिक न्याय और समता- समानता की लड़ाई लड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य जी एवं उनके साथ आने वाले अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का सपा में ससम्मान हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन. सामाजिक न्याय का इन्कलाब होगा- बाइस में बदलाव होगा.’
स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा से जुड़ने से उत्साहित अखिलेश यादव ने एक और एक और ट्वीट में कहा है, ‘इस बार सभी शोषितों, वंचितों, उत्पीड़ितों, उपेक्षितों का’ मेल होगा और भाजपा की बांटने व अपमान करने वाली राजनीति का इन्कलाब होगा. बाइस में सबके मेल मिलाप से सकारात्मक राजनीति का मेला होबे. भाजपा की ऐतिहासिक हार होगी.’
जमीन से जुड़े स्वामी प्रसाद जैसा नेता के भाजपा छोड़ने और सपा ज्वाइन करने से अचानक यूपी की चुनावी में फिजा में बड़ा बदलाव आ गया है.
स्वामी प्रसाद मौर्य का राजनीतिक कैरियर
प्रतापगढ़ में जन्मे एवं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से लॉ में स्नातक और एमए के डिग्रीधारी स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1980 में युवा लोकदल से की.
अपने राजनीतिक सफ़र के अगले चरण में वह 1996 में बसपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद राय बरेली के डलमऊ विधानसभा से पहली बार विधायक चुने गए और 1997 में पहली और 2002 में दूसरी बार मायावती सरकार में मंत्री बने.
अगस्त 2003 में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने वाले मौर्य स्वामी प्रसाद मौर्य फिर 2007 से 2009 तक मंत्री रहे.
इसके बाद 2009 में कुशीनगर लोकसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े, पर हार गए. लेकिन 2009 में कांग्रेस आरपीएन सिंह के सांसद बनने से खाली हुई पड़रौना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला और वे जीत गए. 2012 में दुबारा इसी सीट से विधायक बने. उन्हें बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.
2012 में मिली हार के बाद मायावती जी ने उन्हें अध्यक्ष पद से हटाकर नेता प्रतिपक्ष बनाया और उनकी जगह राम अचल राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद उन्होंने बसपा से बगावत करके भाजपा का दामन थाम लिया और 2017 से पुनः पड़रौना से जीत कर योगी सरकार में मंत्री बने.
सामाजिक न्याय के इस चैम्पियन के भाजपा ज्वाइन करने से सामाजिक न्याय प्रेमी उनके समर्थकों और बुद्धिजीवियों को बहुत आघात लगा था, लेकिन 11 जनवरी को जब उन्होंने भाजपा छोड़ सपा ज्वाइन किया, उनके पुराने समर्थक ख़ुशी से झूम उठे और सोशल मीडिया पर स्वामी प्रसाद मौर्य के स्वागत का सैलाब पैदा कर दिए.
बड़ी घटना है स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा छोड़ना
स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा छोड़ना बड़ी घटना थी, इसलिए तमाम चैनलों ने इसे डिबेट का मुद्दा बनाया. चैनलों पर चर्चा में शामिल अधिकांश विश्लेषकों ने माना कि वह यूपी के मौसम विज्ञानी हैं जो राम विलास की तरह चुनावी हवा का रुख भांप लेते हैं. इसलिए उनका भाजपा छोड़ना 10 मार्च को आने वाले चुनाव परिणाम का एक बड़ा संकेत है.
मौर्य के इस्तीफे से भाजपा पर पड़ने वाले असर पर अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों की राय का प्रतिबिम्बन एक टिप्पणीकार के इन शब्दों में हुआ है, ‘योगी आदित्यनाथ यूपी के जिस चुनावी मुकाबले को 80/20 मानकर चल रहे थे, मौर्य के इस्तीफे से वह अचानक 50/50 हो गया है.’
जाहिर है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से भाजपा की सम्भावना में अचानक भारी गिरावट आ गयी है. जिस परिणाम में अचानक भाजपा के सम्भावना में गिरावट आई है, उसी परिमाण में पहले से ही फेवरिट सपा की सम्भावना में इजाफा हो गया है.
इसमें कोई शक नहीं कि यूपी चुनाव में पहले ही लोग जिस सपा के विजयी होने की सम्भावना जाहिर कर रहे थे, स्वामी प्रसाद मौर्य के जुड़ने से अचानक ऐसा लगने लगा है कि अखिलेश यादव इतनी बेहतर स्थिति में अब तक के अपने राजनीतिक करियर में शायद कभी रहे.
स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफे के बाद जिस तरह अचानक बसपा की ओर मायावती जी के चुनाव में न उतरने की घोषणा हुई, उसका भी सपा के पक्ष में एक खास मनोवैज्ञानिक सन्देश गया. हालाँकि पिछले कुछ चुनावों में मायावती और अखिलेश यादव खुद प्रार्थी न बनकर चुनाव लड़वाते रहे. लेकिन इस बार मायावती जी के चुनाव न लड़ने की घोषणा की टाइमिंग ऐसी रही कि वह सपा के पक्ष में चला गया. अब चुनाव एक तरह से भाजपा बनाम सपा हो गया है, जिसमें अखिलेश यादव की स्थिति बहुत ही बेहतर हो गयी है. 11 जनवरी के पहले वह जयंत चौधरी की रालोद, ओम प्रकाश राजभर जैसे मुखर सामाजिक न्यायवादी की ‘सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी’ अनुप्रिया पटेल की माँ कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी), महान दल और अपने चाचा शिवपाल यादव की ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी’ पार्टी को साथ लेकर अपनी स्थिति में पहले ही खासा सुधार कर लिए थे. किन्तु बसपा के राम अचल राजभर और दद्दू प्रसाद जैसे जुझारू नेताओं के बाद अब स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ मिलने से उनकी स्थिति काफी सुखद हो गयी है.
बहरहाल स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद भाजपा में भगदड़ की स्थिति पैदा हो गयी है. मंत्री और विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं और त्यागपत्र की झड़ी लग गयी है. इस बीच भाजपा के एक अन्य सहयोगी दल अपना दल(एस) ने मौका माहौल देखकर अपने तेवर कड़े कर दिए हैं.
अपना दल(एस) की सुप्रीमो अनुप्रिया पटेल ने नसीहत के सुर में कह दिया है, ‘स्वामी प्रसाद मौर्य का जाना दुखद है. भाजपा को पार्टी नेताओं के मान-सम्मान का ख्याल रखना चाहिए’.
भाजपा को नसीहत को नसीहत देने के साथ ही वह सीटों के बंटवारे में अपनी पार्टी का हिस्सा बढ़ाने के मूड में आ गयी हैं. उधर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद यादव भी अखिलेश यादव के साथ आने की घोषणा कर दिए हैं. इससे भाजपा की स्थिति और विकट हो गयी है. इसलिए संघ के 2025 के सपनों (हिन्दू राष्ट्र की घोषणा) को पूरा करने के लिए हर हाल में यूपी जीतने पर आमादा भाजपा अब बदले हालात में नफरत की राजनीति को अभूतपूर्व ऊंचाई देने की तैयारी करेगी, यह बात गाँठ बढ़कर ही अखिलेश यादव को आगे बढ़ना होगा.
चूँकि भाजपा के नफरत की राजनीति सहित उसकी हर चाल की सही काट सामाजिक न्याय की राजनीति ही है, इसलिए अखिलेश यादव को सामाजिक न्याय की राजनीति को नयी ऊंचाई देने का मन बनाना पड़ेगा, तभी इस अनुकूल हालात को वह ईवीएम में तब्दील कर पाएंगे. इसके लिए जरूरी है कि सापेक्षिक वंचना को हवा देते हुए वह बताएं कि सिर्फ आरक्षण के खात्मे के लिए भाजपा मंदिर – मस्जिद का मुद्दा उठाती है और सत्ता मिलने पर उसका इस्तेमाल सरकारी कंपनियों, रेलवे हवाई अड्डों इत्यादि उन क्षेत्रों को निजी क्षेत्र वालों के हाथ में देने में करती है, जहाँ आरक्षण मिलता है. सत्ता मिलने पर फिर उसका इस्तेमाल वह शेष बचे क्षेत्रों को बेचने में करेगी. हम यदि सत्ता में आये तो जनगणना कराकर सरकारी नौकरियों से आगे बढ़कर निजी क्षेत्र, सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी इत्यादि ए टू जेड सभी क्षेत्र में सभी समाजों के संख्यानुपात में आरक्षण देंगे.
अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य का स्वागत करते हुए उन्हें सामजिक न्याय और समता-समानता की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नेता बताया है. इस कड़ी में आगे कहा है, ‘हम सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं.’ वह सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं, इसका सन्देश तभी बहुसंख्य मतदाताओं में जा पायेगा जब वह सता में आने पर सर्वव्यापी आरक्षण लागू करने की घोषणा करें. और जब उन्हें ओम प्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल, राम अचल राजभर, दद्दू प्रसाद इत्यादि जसे सामजिक न्याय के योद्धाओं के साथ स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे नेता का साथ मिल गया फिर सामाजिक न्याय की राजनीति को शिखर प्रदान करने में दिक्कत कहाँ है?
एच एल दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)