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संज्ञान के लिए टॉनिक है कोको (Cocoa is a tonic for cognition)
कोको के औषधीय गुण (Medicinal properties of cocoa)
कसरत में चाय और काफी को लोकप्रिय बनाने का काम मूलत: औपनिवेशिक इतिहास ने किया। हमारे देश में ये दोनों बाहर से आए हैं किंतु अब हम इन्हें बड़ी मात्रा में पैदा करते हैं। आज दार्जिलिंग चाय (Darjeeling tea) और कुर्ग कॉफी (coorg coffee) विश्व प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित हैं, लेकिन कोको इनके जैसा इतना लोकप्रिय नहीं बन पाया है। हम सब कोको को ठोस रूप में यानी चॉकलेट के रूप में खाना पसंद करते हैं लेकिन प्यालियों में भरकर पीते नहीं हैं।
औपनिवेशिक इतिहास ने कोको को भी लोकप्रिय बनाया लेकिन कहीं और।
कोको की खोज
पहली बार कोको मध्य अमेरिका के माया सभ्यता के दौरान खोजा गया था और प्रतिष्ठित हुआ। माया सभ्यता के लोगों ने इस पौधे (और इसके बीज) को नाम दिया कोको (या ककाओ) जिसका मतलब होता है देवताओं का भोजन।
कोको के बीज का प्रयोग
कोको के बीज का इस्तेमाल (use of cocoa seeds) पारिवारिक और सामुदायिक उत्सवों में किया जाता था। इसका इस्तेमाल मुद्रा के रूप में भी किया जाता था। एजटेक इंडियन्स (Aztec Indians) कोको चूर्ण, मिर्ची, कस्तूरी और शहद को मिलाकर एक पेय बनाते थे जिसे चोकोलेटल या फेंटा हुआ पेय कहते थे। शायद इसी से चॉकलेट नाम आया होगा।
स्पैनिश लोगों ने जब अमेरिका में उपनिवेश स्थापित किया तब कोको को लोकप्रिय बनाया और इस पर अपना एकाधिकार रखा। जब वे इसे यूरोप लाए तो इसके उत्पादन के तरीके को सतर्कता पूर्वक गोपनीय रखा। कोको अमीरों का पेय बन गया। यह रोमांस और स्टेटस से कई तरह से जुड़ गया।
यूरोप और अमेरिका में कोको पर प्रणय गीत, प्रणय निवेदन लिखे गए और आज भी लिखे जाते हैं। (उदाहरण के लिए, आप यूट्यूब पर डोरिस डे को यह गीत गाते देख सकते हैं -ए चॉकलेट संडे ऑन ए सेटरडे नाइट Doris Day - A Chocolate Sundae On A Saturday Night।) लेकिन औद्योगिक क्रांति के साथ जब मशीनें लोकप्रिय हुईं, तो कोको बीज को पीसकर बड़ी मात्रा में सभी के लिए उपलब्ध बना दिया। इसके साथ ही कोको या गर्मागरम चाकलेट पेय हर ऐरे-गैरे के लिए उपलब्ध हो गया और उच्च वर्ग में कोको का मोह खत्म हो गया।
आज जहां दुनिया भर में कॉफी का उत्पादन (coffee production) एक करोड़ टन और चाय का उत्पादन 50 लाख टन है वहीं कोको का उत्पादन मात्र 30 लाख टन ही है। लेकिन तीसरे नंबर का यह पेय स्वास्थ्य लाभों में शेष दोनों से ऊपर है।
दरअसल कई दक्षिण भारतीय लोगों को यह जानकर अज्छा नहीं लगेगा, किंतु यह बताना जरूरी है कि कॉफी दुर्बल ही सही किंतु एक दवा है क्योंकि उसमें कैफीन उपस्थित होता है। इस वजह से बहुत-से लोग कैफीन रहित डीकैफ कॉफी/ decaffeinated coffee (जो न कॉफी है, न दवा) पीने लगे हैं।
दूसरी तरफ चाय को अब एक स्वास्थ्य पेय माना जाता है क्योंकि इसमें फ्लेवोनाइड समूह के अणु उपस्थित होते हैं जो ऑक्सीकरण-रोधी और कोशिका-रक्षक अणुओं के रूप में काम करते हैं। (यह सही है चाय में भी कैफीन और थियोब्रोमीन होते हैं लेकिन काफी से कम मात्रा में)।
कॉफी और चाय के मुकाबले स्वास्थ्यवर्धक पेय है कोको
अलबत्ता, स्वास्थ्यवर्धक पेय के रूप में कोको सूची में इन दोनों से ऊपर है। फिर भी यह चाय और कॉफी के समान लोकप्रिय नहीं हो पाया। यह इतिहास की एक विचित्रता है जिसका सम्बंध इस बात से है कि हमारा औपनिवेशिकरण किसने किया था।
पिछले कुछ सालों से यह बात साफ तौर पर सामने आई है कि कोको और चॉकलेट केवल स्वाद में ही अच्छे नहीं है बल्कि संज्ञान के लिए भी फायदेमंद हैं।
वेलेन्टिना सोक्की और उनके साथियों का एक शोध पत्र फ्रन्टियर्स इन न्यूट्रिशियन पत्रिका के 16 मई 2017 के अंक में प्रकाशित हुआ है। इसमें लेखकों ने बताया है कि कोको में मौजूद फ्लेवोनाइड परिवार के यौगिक न केवल ऑक्सीकरण-रोधी और कोशिका रक्षक के रूप में कार्य करते हैं, जैसा कि चाय करती है, बल्कि ये मनुष्यों के संज्ञान की रक्षा भी करते हैं, और संज्ञानात्मक ह्रास और स्मृतिलोप को भी रोकते हैं। दूसरे शब्दों में वे शरीर के तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क पर सीधे तौर पर काम करते हैं।
सोक्की के उपरोक्त पर्चे में स्वास्थ्य और संज्ञान में सुधार में फ्लेवोनाइड के बुनियादी जीव विज्ञान सम्बंधी पूर्व शोध के बारे में तो बताया ही गया है, साथ में वालंटियर्स पर किए गए दर्जनों ट्रायलों के परिणामों का भी किया गया है जिनमें स्मृति में सुधार के अलावा रक्तचाप और इंसुलिन प्रतिरोध भी देखा गया था।
डा. जी. डेसिडेरी के नेतृत्व में एक इतालवी समूह द्वारा किए गए एक तुलनात्मक परीक्षण में संज्ञान, रक्तचाप और उम्र के साथ चयापचय और स्मृति हानि में कोको को फायदेमंद पाया गया।
सीखने और याददाश्त की क्रियाविधि का आणविक आधार क्या है?
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इससे पहले भी इस विषय पर प्रोसीडिंग्स ऑफ न्यट्रिशन सोसायटी में डा. जे.पी.ई. स्पेन्सर द्वारा एक पर्चा प्रकाशित किया गया था। उन्होंने लंबे समय तक तंत्रिका क्षमता और याददाश्त में प्रोटीन और एंजाइम श्रृंखला की सूची बनाई थी कि कैसे पौधे के फ्लेवोनाइड्स सारी बाधाएं पार करते हुए मनुष्य मस्तिष्क तक पहुंचते हैं और उसकी क्रियाविधि को प्रभावित करते हैं। हालांकि इस क्रियाविधि को स्पष्ट नहीं किया गया है किंतु लगता है कि ये तंत्रिकाओं को क्षति से बचाते हैं, सूजन को कम करते हैं, और तंत्रिका कोशिकाओं के बीच कड़ियों को बढ़ावा देते हैं और यहां तक कि नई कड़ियां भी बना सकते हैं।
2015 के अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन के संपादकीय में स्मृति शक्ति और वृद्धि पर कोको के सकारात्मक प्रभावों (Positive Effects of Cocoa on Memory Power and Enhancement) का निष्कर्ष प्रकाशित हुआ था। और यह भी बताया गया था कि बिना मिठास और असंसाधित डार्क कोको पाउडर सबसे उपयुक्त होगा, जबकि क्षार के साथ संसाधित करने पर (कैंडी-बार में इस्तेमाल होने वाला) यह कम प्रभावी हो जाता है।
अनुमान के तौर पर 100 ग्राम सामान्य डार्क चॉकलेट में 100 मिग्रा फ्लेवोनाइडस पाया जाता है जबकि 100 ग्राम बिना मिठास और असंसाधित कोको पाउडर में यह 250 मिग्रा तक हो सकता है।
जानिए क्या सुबह की कॉफी छोड़कर डार्क कोको पाउडर लेना चाहिए?
मेरे एक दोस्त ने बताया था कि वे सुबह की कॉफी और दोपहर की चाय के साथ-साथ एक कप कोको पावडर जरूर पीते हैं, और शायद शाम को एक गिलास रेड वाइन भी ताकि अधिक फायदा मिले। शायद सलाह ठीक है।
डॉ डी. बालसुब्रमण्यन
मूलतः देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार