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अगर मजबूत हो मन तो पास नहीं आते मानसिक अवसाद

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hastakshep
23 Aug 2020
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Mental depression does not come close if the mind is strong

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मानसिक आघात की स्थिति (Trauma) से हर उस व्यक्ति को गुजरना पड़ता है, जिसके रिश्ते या तो असमय मौत के मुंह में समा जाते हैं या किसी कारणवश अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हैं। कोई व्यक्ति दु:ख से अपने आप को कितनी जल्दी बाहर ला पाता है यह तो उसकी विल पावर' पर ही निर्भर करता है।

Women undergo more trauma.

मानसिक आघात की बात की जाए तो देखने में आता है कि अकसर महिलाओं को ही इससे ज्यादा गुजरना पड़ता है।

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सपनों का आशियाना जब ढहता है तो इसका सदमा बहुत गहरा लगता है। इस वेदना को वही समझ सकता है, जो इसे महसूस कर चुका हो। पुरुष तो फिर भी किसी तरह सदमा सहन कर जाते हैं लेकिन महिलाओं का इसे सहन करते हुए जीना बड़ा दूभर हो जाता है।

कैसे पनपता है मानसिक अवसाद | How mental depression thrives 

कई बार दुर्घटनावश युवा दंपत्ति में किसी एक की अकस्मात मृत्यु हो जाने पर महिला या पुरूष घोर मानसिक तनाव में आ जाते हैं। उन्हें लगता है जैसे उनका सारा जीवन ही उजड़ ग़या हो। जीवन के प्रति उनका नजरिया बेहद उदासीन हो जाता है। ऐसे में पनपता है मानसिक अवसाद।

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हर व्यक्ति की जीवन में अपनी अलग-अलग प्राथमिकताएं हैं। कोई प्रेम को महत्व देता है तो कोई जिंदगी में कुछ बन जाना ही ध्येय बना कर चलता है। सपने देखने में कोई हर्ज नहीं है। मगर साथ ही व्यावहारिक सोच को बनाए रखना भी बहुत जरूरी है। सपनों को अपने ऊपर कभी भी हावी नहीं होने देना चाहिए। क्योंकि जब सपने टूटते हैं तो बहुत तकलीफ होती है। लेकिन किसी भी परिस्थिति में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और मंजिल तक पहुंचने के लिए हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए।

देखने में आया है कि पुरूषों की तुलना में महिलाओं में मानसिक अवसाद की समस्या अधिक होती है। कभी-कभी महिलाएं जब किसी ध्येय को पाने में असफल हो जाती हैं तो टूट जाती हैं और डिप्रेशन से घिर जाती हैं। उन्हें यह जान लेना चाहिए कि यदि वह फिर प्रयास करें तो उन्हें सफलता मिल भी सकती है। असफलता आपके आत्मविश्वास को डांवाडोल तो करती है लेकिन आपको हिम्मत बनाए रखनी चाहिए।

आपकी हिम्मत बनी रहे इसके लिए निम्न सुझावों को अपनाएं :- Follow the following tips to stay strong | Ways To Avoid Depression,
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जब भी असफलता मिले तो सबसे पहले अपने आपको भावनात्मक रूप से कमजोर न पड़ने दें। अपने आपको किस्मत के सहारे ही न छोड़ें। हर इंसान सपने देखता है, मगर यह जरूरी नहीं कि वे पूरे हों। सपनों का आशियाना अगर तिनका-तिनका कर बिखर जाता है तो भी उसे फिर से बनाया जा सकता है बशर्ते आप हिम्मत न हारें। अपना ध्यान रचनात्मक कार्यों में अधिक लगाएं। जैसे कुछ लिखने का प्रयास करें। लेखन सर्वश्रेष्ठ माध्यम है अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का।

प्रयास करें कि घर में कभी अकेली न रहें। ऐसे में घबराहट बढ़ जाती है। अगर कोई और विकल्प नहीं हो तो घर के छुटपुट कार्य करती रहें या फोन पर किसी सहेली से बातचीत करें। नहीं तो शॉपिंग के लिए ही निकल लें इससे मन हल्का होगा।

अगर आप जरा भी पक्के व मजबूत हृदय की हैं तो जल्द ही इस सदमे से उबर जाएंगी। समय सारे घाव भर देता है। इसलिए संयम से काम लें। स्वयं पर विश्वास रखें। एक सपना अगर टूट भी गया तो इसका मतलब यह हरगिज नहीं कि आप सपने देखना ही छोड़ दें। आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है।

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तनाव को कैसे करें दूर - How to relieve stress

आज की भागदौड़ की जिदगी में सुकून के पल मुश्किल से भी नहीं मिल पाते हैं। ऐसे में हर किसी को तनाव, कुंठा और अवसाद पूरी तरह घेर लेता है। जो नौकरी कर रहे हैं, वह प्रमोशन और सैलरी को लेकर परेशान है। जो बेरोजगार है, वह अपने रोजी रोटी की चिंता कर रहे हैं। ऐसे में कैसे टेंशन को करें बाय, जानिए कैसे-

जहां तक संभव हो प्रत्येक दिन योगा और एक्सरसाइज करें।

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पूरी डाइट लें।

खाने में सलाद, हरी सब्जी की अच्छी मात्रा शामिल करें। तरल पदार्थ यादा शामिल करें।

न्यूक्लियर फैमिली वालों को थोड़ी सोशल लाइफ भी व्यतीत करनी चाहिए।

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सुबह शाम, दोनों टाइम वॉकिग पर जरूर जाएं।

किताब और टीवी के अलावा कुछ रचनात्मक कार्य भी जरूर करें।

सामाजिक कार्य करने वाले भी टेंशन से दूर रहते हैं। इसलिए सामाजिक कार्य में रूचि लें। लाइट और हवादार कमरे में रहें।

टेंशन होने पर सुगर और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज्यादा लें।

जहां तक हो अपने व्यवहार को बदलें। वातावरण का भी नेचर पर काफी असर पड़ता है।

मनोरंजन पर भी विशेष ध्यान दें।

स्ट्रेस आउट होने के लिए कभी-कभी बाहर घूमने जरूर जाएं।

किसी तरह की मानसिक परेशानी होने पर उसे डॉक्टर से जरूर कंसल्ट करें।

मानसिक बीमारी शारीरिक बीमारी से ज्यादा घातक होती है (Mental illness is more fatal than physical illness.)।

फैमिली के सदस्य एक दूसरे को खास टाइम जरूर दें ताकि एक दूसरे की समस्याओं को जान समझ सकें।

अजय डोगरा

(कंसल्टेंट मनोचिकित्सक (Consultant Psychiatrist) मेट्रो अस्पताल नोएडा)

नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह समाचारों में उपलब्ध सामग्री के अध्ययन के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)

स्रोत – मूलतः यह लेख देशबन्धु पर 2009-02-13 को प्रकाशित हुआ था, उसका संपादित रूप साभार
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