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Mental health of adolescents impaired in the pandemic; How will the world deal?
पिछले सप्ताह यूनिसेफ ने अपनी एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट 'The State of the World's Children 2021' सार्वजनिक की। रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि कोविड-19 के कारण बड़ी संख्या में बच्चों और किशोरों की एक बड़ी आबादी का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ गया है (The mental health of children and adolescents has deteriorated due to COVID-19), जिसका प्रभाव आगामी कई वर्षों तक रहेगा।
बच्चों और किशोरों में मानसिक विकारों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (युनिसेफ) के नए विश्लेषण से संकेत मिलता है कि बच्चों और किशोरों में मानसिक विकारों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना लगभग 390 मिलियन डॉलर का नुकसान होता है।
पिछले सप्ताह यूनिसेफ ने अपनी एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट सार्वजनिक की। रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि कोविड-19 के कारण बड़ी संख्या में बच्चों और किशोरों की एक बड़ी आबादी का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ गया है, जिसका प्रभाव आगामी कई वर्षों तक रहेगा।
'दी स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2021' यूनिसेफ द्वारा तैयार की गई हालिया रिपोर्ट है, जिसके मुताबिक कोविड-19 के पहले भी 21वीं सदी बच्चों और युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है। नवीनतम सर्वेक्षणों के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 10-19 आयु वर्ग के किशोरों के बीच सात में से एक से अधिक किशोर मानसिक विकार के साथ जीने के लिए अभिशप्त हैं।
46,000 किशोर कर रहे आत्महत्या (46,000 teens committing suicide) | मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को हल करने में बजट कम खर्च किया जा रहा
हर साल इस आयु वर्ग के लगभग 46,000 किशोर आत्महत्या कर रहे हैं, जिनके पीछे मानसिक प्रताड़ना (mental harassment) एक बड़ा कारक सामने आया है। वहीं, विश्लेषण में यह स्पष्ट हुआ है कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थितियों की तुलना में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं (mental health problems) को हल करने में काफी कम बजट खर्च किया जा रहा है। रिपोर्ट में पाया गया है कि वैश्विक स्तर पर सरकारी स्वास्थ्य बजट का महज 2 प्रतिशत ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च के लिए आवंटित होता है।
बच्चों के लिए लॉकडाउन और महामारी परेशानियों से भरी रही
वहीं, इस बारे में यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोर मानती हैं कि हम सभी खासकर बच्चों के लिए लॉकडाउन और महामारी (lockdown and pandemic) से संबंधित 18 महीने की अवधि परेशानियों से भरी रही। इस दौरान बच्चों को अपने जीवन का अहम समय दोस्तों, कक्षाओं, खेलों से दूर बिताना पड़ा, जिससे उनका बचपन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
गौर करने वाली बात यह है कि कोविड-19 महामारी से पहले दुनिया भर के बहुत सारे बच्चे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बोझ तले दबे हुए थे, जबकि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों (mental health needs) को पूरा करने के लिए सरकारों को पर्याप्त निवेश करना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया। अब वैश्विक महामारी के कारण यह संकट पहले की अपेक्षा कई गुना गहराकर सतह पर आ रहा है, तो मानसिक स्वास्थ्य और भविष्य के जीवन के परिणामों के बीच संबंधों पर पर्याप्त महत्त्व देने की आवश्यकता जताई जा रही है।
कोविड-19 के दौरान क्या बोले किशोर? (What did teenager say during COVID-19?) | हर पांचवें बच्चे ने जाहिर की अपनी मानसिक हताशा
दरअसल, कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर के लोगों को कई तरह से प्रभावित किया है। वहीं, यूनिसेफ द्वारा 21 देशों में किए गए अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण (international survey) के दौरान हर पांचवें बच्चे ने अपनी मानसिक हताशा जाहिर की है (Every fifth child expresses his mental frustration)। 15-24 आयु वर्ग के 20 प्रतिशत किशोरों ने बताया कि वे अक्सर उदास महसूस करते हैं, काम करने में उनकी दिलचस्पी बहुत कम रहती है।
भारत-बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों में मानसिक स्वास्थ्य समस्या
दरअसल, भारत और बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों में इस समस्या के पीछे सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यहां मानसिक स्वास्थ्य की जरूरतों पर सामान्यतः किसी का ध्यान नहीं जाता है, हम समय रहते अक्सर इस तरह के विकारों को पहचान नहीं पाते हैं, इस मामले में अमीर देश कहीं अधिक संवेदनशील हैं, जो किशोरों के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करने वाले कारकों को लेकर कहीं अधिक जागरूक हैं।
भारतीय शिक्षा के तहत बाल मनोविज्ञान क्षेत्र (child psychology field) में कार्यरत श्रीराम शर्मा बताते हैं कि हमारे यहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हाल के वर्षों में नीतिगत स्तर पर काफी ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य रणनीतिक योजना (National Mental Health Strategic Plan) विकसित करने की जरूरत बताई जा रही है। लेकिन, ऐसी किसी भी योजना में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वह महज औपचारिक न होकर जमीन पर अच्छी तरह से संचालित होती रहे।
साथ ही, यह भी देखना होगा कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली (primary health care system) के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य की जरूरतों को लगातार संबोधित किया जा रहा है या नहीं, क्योंकि हर बच्चे और किशोर को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार है, इस अधिकार के प्रति हमें जागृत होने की जरूरत है, इसलिए महामारी के बाद हमारा कर्तव्य है कि इस अधिकार को लेकर एक बड़े स्तर पर मुहिम चलाई जाए।
कहीं भारी न पड़ जाए महामारी का तीसरा वर्ष
कोविड-19 अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इसे देखते हुए बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य व कल्याण को लेकर चिंताएं (Concerns about the mental health and well-being of children and adolescents) जताई जा रही हैं। यूनिसेफ के नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 1.6 बिलियन से अधिक बच्चों को शिक्षा संबंधी नुकसान हुआ है। यही वजह है कि कोविड-19 से प्रभावित दिनचर्या, शिक्षा, मनोरंजन के साथ-साथ पारिवारिक आय और स्वास्थ्य की चिंता के कारण कई किशोर अपने भविष्य को लेकर भयभीत, क्रोधित तथा चिंतित महसूस कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, पिछले दिनों चीन में हुए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण के दौरान लगभग एक तिहाई किशोर उत्तरदाताओं ने अपना डर या अपनी चिंता जाहिर की है।
ये चिंताएं आत्मकेंद्रित, द्विध्रुवी विकार, आचरण विकार, अवसाद, भोजन संबंधी विकार और बौद्धिक अक्षमताओं से जुड़ी हुई हैं, जो शिक्षा, जीवन के परिणामों और आमदनी की क्षमता को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कई किशोर मानसिक विकारों के कारण विकलांगता या मौत के हो रहे शिकार
इन मानसिक विकारों के कारण किशोरों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की गणना नहीं की जा सकती है। लेकिन, 'लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स' के एक नए विश्लेषण (A new analysis from the 'London School of Economics') से यह संकेत मिलता है कि मानसिक विकारों के कारण कई किशोर विकलांगता या मौत के शिकार हो रहे हैं। कोविड-19 ने किशोरों के पालन-पोषण और स्कूली शिक्षा के अभाव, संबंधों में अलगाव, हिंसा के कारण उपजे भेदभाव, गरीबी और स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा दिया है, जिनसे कई तरह मनोविकार फैल रहे हैं। वहीं, इसके चलते परोक्ष तौर पर अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है।
किशोर मानसिक स्वास्थ्य में तत्काल निवेश (Immediate investment in adolescent mental health)
कोविड-19 महामारी से जुड़ी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए किशोरों के प्रति प्रोत्साहन और देखभाल का दृष्टिकोण तैयार करने की जरूरत है। इसके अंतर्गत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किशोर मानसिक स्वास्थ्य में तत्काल निवेश की मांग भी की जा रही है।
दूसरा, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा क्षेत्रों में साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों को एकीकृत करने वाले उन कार्यक्रमों को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है, जिनमें किशोरों के परिजनों को भी शामिल किया जा सके। इसी तरह, उस दृष्टिकोण को हतोत्साहित करने पर भी जोर दिया जा रहा है, जिसमें मानसिक बीमारी को कलंक की तरह देखा जाता है। इसके तहत मानसिक बीमारी के बारे में चुप्पी तोड़ने और मानसिक स्वास्थ्य पर बेहतर समझ बनाने जैसी बातों को गंभीरता से लिया जा रहा है।
शारीरिक स्वास्थ्य का ही एक हिस्सा है मानसिक स्वास्थ्य
दरअसल, मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य का ही एक हिस्सा है (Mental health is a part of physical health), जिसे अब तक अलग से देखा जाता रहा है, लेकिन वैश्विक महामारी के कारण अब अमीर देशों की तरह की गरीब देशों में भी इसे गंभीरतापूर्वक लिए जाने की पहल हो रही है। इस क्रम में एक अच्छी बात यह है कि अब भारत जैसे देशों में भी खास तौर से किशोरों को ध्यान में रखते हुए मानसिक स्वास्थ्य पर निवेश बढ़ाने की वकालत हो रही है।
शिरीष खरे
(लेखक पुणे स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
Topics : COVID-19, Coronavirus, Pandemic Coronavirus, Mental health, Mental Health COVID, UNICEF,
(न्यूज़क्लिक में प्रकाशित समाचार का किंचित् संपादित रूप साभार)
Web title - Mental health of youth during Corona pandemic : UNICEF