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झारखंड के 24 वर्षीय तबरेज अंसारी को एक भीड़ ने घेर लिया और उस पर आरोप लगाया कि उसने एक मोटरसाईकिल चोरी की है। भीड़ की मांग पर उसने ‘जय श्रीराम‘ के नारे भी लगाए। परंतु फिर भी उसे बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। 25 साल का मोहम्मद बरकत आलम जब नमाज़ पढ़कर अपने घर लौट रहा था तब उसे घेरकर ‘जय श्रीराम‘ के नारे लगाने के लिए मजबूर किया गया। कारण सिर्फ यह था कि वह ऐसी टोपी पहने हुए था जिसे सामान्यतः मुसलमानों से जोड़ा जाता है।
Incidents of mob lynching in india in 2019
ये दो उदाहरण सन् 2019 में भारत में मॉब लिंचिंग की घटनाओं का खाका खींचते हैं। देश में बेखौफ भीड़ द्वारा निर्दोष लोगों की पीट-पीटकर हत्या की जा रही है।
सन् 2018 में देश में मॉब लिंचिंग की 84 घटनाएं (Incidents of mob lynching in india in 2018) हुईं थीं जो 2019 में बढ़कर 107 हो गईं। इन घटनाओं में 68 लोग मारे गए और 120 घायल हुए। इन 68 मृतकों में से 38 हिन्दू और 8 मुसलमान बताए जाते हैं। शेष 22 लोगों का धर्म ज्ञात नहीं है। इन 107 घटनाओं में से 18 गाय और गौमांस से संबंधित मुद्दों पर हुईं, दो अंतर्धार्मिक रिश्तों को लेकर, 41 बच्चा चोरी के आरोप में और 14 चोरी के संदेह में। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 16 घटनाएं ‘जय श्रीराम‘ के नारे को लेकर हुईं। इससे यह पता चलता है कि मॉब लिंचिंग श्रेष्ठतावादी विचारधारा के अपना वर्चस्व स्थापित करने के प्रयास का नतीजा हैं।
ये आंकड़े सेंटर फार स्टडी आफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज्म (सीएसएसएस) द्वारा द इंडियन एक्सप्रेस, द टाईम्स ऑफ़ इंडिया और द हिन्दू के मुंबई संस्करणों में प्रकाशित रपटों से संकलित किए गए हैं।
Now the slogan of 'Jai Shri Ram' has become the test of nationalism.
सन् 2018 में गौवध, गौमांस का सेवन या उसका परिवहन करने के आरोप या संदेह में मॉब लिंचिंग की कई लोमहर्षक घटनाएं हुईं थीं। परंतु 2019 में इन घटनाओं की प्रकृति में एक गुणात्मक परिवर्तन आया। वह यह कि अब दक्षिणपंथी श्रेष्ठतावादियों को किसी को मौत के घाट उतारने के लिए लव जिहाद और गौवध जैसे बहानों की आवश्यकता भी नहीं रही। अब तो ‘जय श्रीराम’ का नारा राष्ट्रवाद की कसौटी बन गया है। जो ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने से इंकार करता है वह देशद्रोही है और उसकी जान लेने में कुछ भी गलत नहीं है। ‘जय श्रीराम’ एक युद्धघोष बन गया है जिसका इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ हिंसा करने के लिए किया जा रहा है। उन्हें निशाना बनाने का एकमात्र आधार उनकी धार्मिक पहचान है।
मॉब लिंचिंग का भूगोल
देश में मॉब लिंचिंग की सबसे ज्यादा घटनाएं (Highest incidence of mob lynching in the country) उत्तर भारत में हुईं। कुल 107 में से 40 घटनाएं उत्तर भारतीय राज्यों में हुईं और इनमें से 20 केवल उत्तरप्रदेश में हुईं। देश के किसी अन्य राज्य में मॉब लिंचिंग की उतनी घटनाएं नहीं हुईं जितनी उत्तरप्रदेश में हुईं। उत्तरप्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल (14), झारखंड व बिहार (12-12) और महाराष्ट्र (11) का नंबर था। उत्तरप्रदेश के उस्मानपुर में 18 वर्षीय मोहम्मद ताज मदरसे में पढ़ाई कर जब अपने घर लौट रहा था तब उसे कुछ लोगों ने रोका, उसकी पिटाई की और उसे ‘जय श्रीराम‘ का नारा लगाने पर मजबूर किया। जिन युवकों ने उसे घेरा था उन्होंने सबसे पहले उसकी टोपी जमीन पर फेंक दी।
इसी राज्य में एक अन्य घटना में कुछ युवकों ने उन्नाव के शासकीय इंटर कालेज के खेल मैदान में घुसकर एक मदरसे के चार विद्यार्थियों की क्रिकेट के बल्ले से जमकर पिटाई की। आरोपियों में से एक, क्रांति सिंह, भाजपा की युवा शाखा, भारतीय जनता युवा मोर्चा, का महामंत्री था।
एक अन्य घटना में बागपत जिले में मेरठ-करनाल हाईवे पर स्थित सरोरा गांव में एक तीस वर्षीय मौलवी को पीटा गया और उससे ‘जय श्रीराम‘ के नारे लगवाए गए।
North India has always been the center of communal riots.
उत्तर भारत तो हमेशा से साम्प्रदायिक दंगों का केन्द्र रहा है। मॉब लिंचिंग की सर्वाधिक घटनाएं भी वहीं हुईं। परंतु जहां साम्प्रदायिक दंगों के मामले में उत्तर के बाद पश्चिमी भारत का नंबर आता है वहीं मॉब लिंचिंग के मामले में दूसरे नंबर पर पूर्वी भारत है। पूर्वी भारत, जिसमें बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा शामिल हैं, में मॉब लिंचिंग की 38 घटनाएं हुईं। इनमें से 12 घटनाएं केवल झारखंड में घटीं। पश्चिम बंगाल में 14 घटनाएं हुईं जिनमें से 11 बच्चा चोरी से संबंधित थीं। कोलकाता में तीन लोगों को तब चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया जब उन्होंने ‘जय श्रीराम‘ का नारा लगाने से इंकार कर दिया।
उत्तर पूर्वी भारत, जिसमें सात राज्य शामिल हैं, में मॉब लिंचिंग की आठ घटनाएं हुईं जिनमें से तीन गौमांस/मवेशियों से संबंधित थीं। त्रिपुरा में 36 वर्षीय आदिवासी बुद्धिराम को इस आरोप में जान से मार दिया गया कि वह मवेशी चुराने का प्रयास कर रहा था।
असम के विश्वनाथ सरायली में 68 वर्षीय शौकत अली पर हमला कर उसकी पिटाई की गई। कारण यह था कि वह अपने रेस्टोरेंट में गौमांस परोसता था। कुछ युवकों ने उससे पूछा कि क्या उसके रेस्टोरेंट में गौमांस उपलब्ध है। उसने हां में जवाब दिया। इसके कुछ घंटे बाद वे युवक अपने और साथियों के साथ उसके रेस्टोरेंट में पहुंचे। उन्होंने उसकी पिटाई की व रेस्टोरेंट में तोड़फोड़ भी की। उससे पूछा गया कि क्या वह बांग्लादेशी है और उसका नाम एनआरसी में है या नहीं। ज्ञातव्य है कि असम में गौमांस पर प्रतिबंध नहीं है।
असम के ही बारपेटा में मुस्लिम पुरूषों के एक समूह को ‘जय श्रीराम, ‘भारत माता की जय‘ और ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद‘ के नारे लगाने को मजबूर किया गया।
एक आरोपी 30 वर्षीय देबजीत डेका, दक्षिणपंथी श्रीराम सेना का सदस्य था। इन घटनाओं से ऐसा लगता है कि उत्तर-पूर्वी भारत, जहां अब तक मुख्यतः नस्लीय हिंसा होती थी, में भी साम्प्रदायिक हिंसा अपनी जड़ें जमा रही है। इससे भी विंडबनापूर्ण यह है कि इन इलाकों में गौमांस लोगों के सामान्य खानपान का हिस्सा होने के बावजूद वहां भी गौमांस और गौहत्या के संदेह और आरोप में हत्याएं की जा रही हैं।
मॉब लिंचिंग के बहाने
सन् 2018 की तरह 2019 में भी मॉब लिंचिंग की सर्वाधिक घटनाएं बच्चा चोरी के संदेह में हुईं। ऐसी घटनाओं की कुल संख्या 41 थी। सोलह घटनाएं लोगों को ‘जय श्रीराम‘ आदि जैसे नारे लगाने पर मजबूर किए जाने के कारण हुईं। ये नारे लगवाने का उद्देश्य श्रेष्ठतावादी विचारधारा के प्रभुत्व को स्थापित करना रहता है। यह अत्यंत चिंताजनक है क्योंकि इसके पीछे समाज पर एक विशेष धर्म या विचारधारा को लादने का इरादा साफ दिखलाई देता है। कुल मिलाकर 13 घटनाएं गौवध और 11 चोरी के संदेह में हुईं। इनमें तबरेज अंसारी की हत्या शामिल है। सन् 2018 में 41 घटनाएं बच्चा चोरी, 16 गौवध, 9 अंतर्धार्मिक प्रेम और 8 चोरी के संदेह या आरोप से जुड़ी हुईं थीं।
इस वर्ष हुई घटनाओं में से केवल दो का संबंध अंतर्धार्मिक प्रेम के मामलों से था।
उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले में एक मुस्लिम युवक की इसलिए पीट-पीटकर हत्या कर दी गई क्योंकि उसके कथित रूप से एक अन्य समुदाय की महिला से संबंध थे।
इस मुद्दे से जुड़ी दूसरी घटना गुजरात के भडू़च जिले में हुई जहां एक मुस्लिम युवक को एक आदिवासी महिला के साथ उसके कथित संबंधों के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
स्पष्टतः, मॉब लिंचिंग के बहाने बदल रहे हैं यद्यपि बच्चा चोरी का संदेह अब भी एक बड़ा ‘ट्रिगर‘ बना हुआ है। बल्कि अब तो श्रेष्ठतावादियों को किसी बहाने की जरूरत ही नहीं रह गई है। अब उन्हें किसी व्यक्ति को लिंच करने के लिए उस पर गौवंध करने, बच्चों का अपहरण करने या दूसरे समुदाय की महिला के साथ प्रेम संबंध रखने का आरोप लगाने की जरूरत ही नहीं रह गई है। अब तो किसी भी व्यक्ति को पकड़कर उससे ‘जय श्रीराम‘ या ‘भारत माता की जय‘ का नारा लगाने को कहा जा सकता है और अगर वह इसमें ना-नुकुर करता है तो उसे देशद्रोही घोषित कर बेरहमी से मार डालने का लाईसेंस भीड़ को मिल जाता है।
राज्य की भूमिका
राज्य, हिन्दू श्रेष्ठतावादियों को संरक्षण देता आ रहा है। उन्हें उनका विघटनकारी एजेंडा लागू करने की पूरी छूट दे दी गई है। राज्य इस तथ्य पर ध्यान नहीं दे रहा है कि मॉब लिंचिंग कोई सामान्य अपराध नहीं है। यह सत्ताधारियों की विचारधारा की सर्वोच्चता स्थापित करने का उपकरण है। यह मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों को यह संदेश देने का माध्यम है कि वे देश के दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। मॉब लिंचिंग के मामलों में राज्य की भूमिका का अध्ययन निम्न शीर्षों में किया जा सकता हैः
संरक्षणः दक्षिणपंथी संगठनों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही न करके राज्य उनका दुःसाहस बढ़ा रहा है। श्रेष्ठतावादी संगठन मंत्रियों और शासक दल के अन्य शीर्ष पदाधिकारियों द्वारा दिए जा रहे भाषणों और वक्तव्यों से भी प्रेरित हो रहे हैं। बड़े नेता नफरत फैलाने वाले भाषण देते हैं और इससे उनके कार्यकर्ता उत्तेजित हो जाते हैं। महाराष्ट्र के यवतमाल में एक कालेज के दो कश्मीरी विद्यार्थियों पर युवकों के एक समूह ने हमला किया। उन्हें ‘वंदे मातरम्‘ और ‘भारत माता की जय‘ के नारे लगाने पर मजबूर किया गया। युवकों का नेतृत्व जिला युवा सेना के उपाध्यक्ष अजिंक्य मोटके कर रहे थे। मोटके ने स्वयं दोनों विद्यार्थियों को कई तमाचे मारे। आरोपियों ने पूरे घटनाक्रम का वीडियो भी बनाया और मोटके ने उसे अपने फेसबुक पेज पर अपलोड किया। यह घटना पुलवामा हमले के बाद हुई, जिस दौरान कश्मीरियों पर राष्ट्रद्रोही होने का लेबिल चस्पा किया जा रहा था।
मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में एक महिला सहित, तीन व्यक्तियों की इस संदेह में जबरदस्त पिटाई की गई कि वे बीफ ले जा रहे हैं। पीड़ितों को ‘जय श्रीराम’ का नारा बुलंद करने के लिए मजबूर किया गया। आरोपियों में से एक स्वयं को श्रीराम सेना का सदस्य बताता था। एक अन्य घटना में, मुंबई के कल्याण में वाहन सुधारने की एक दुकान के मालिक को चाकू की नोंक पर ‘जय श्रीराम’ और ‘जय बजरंगबली’ का नारा लगाने को कहा गया। जब उसने ऐसा करने से इंकार किया तो उसे राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया गया। आरोपी बजरंग दल से सम्बद्ध थे।
पुलिस द्वारा अपराधियों की मददः लिंचिंग के अधिकांश मामलों में पुलिस की कार्यवाही पक्षपातपूर्ण और एकतरफा रही है। इसके दो ज्वलंत उदाहरण हैं। पहला है तबरेज अंसारी का मामला। अंसारी को एक खम्बे से बाँध कर लगभग 12 घंटों तक जुनूनी भीड़ ने पीटा। इस दौरान भीड़ के सदस्य हँस रहे थे। पुलिस ने उसे भीड़ के चंगुल से छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया। उसे तुरंत चिकित्सीय सहायता उपलब्ध करवाने की बजाय पुलिस उसे दो दिन बाद डॉक्टर के पास ले गई। इस देरी के कारण तबरेज को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। शुरूआत में पुलिस ने इसे दिल के दौरे का मामला बताया और आरोपियों के विरूद्ध हत्या का मामला दर्ज नहीं किया। बाद में नई फोरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद एफआईआर में हत्या की धाराएं जोड़ी गईं क्योंकि इस रपट से यह साबित हो गया कि अंसारी की मौत उसे लगी चोटों के कारण हुई थी।
झारखंड के जयरागी गांव में साहू समुदाय के सदस्यों ने प्रकाश लकड़ा और तीन अन्यों की गाय को मारकर उसकी खाल उतारने के संदेह में पूरी शाम निर्ममता से पिटाई की। भीड़ ने बाद में लकड़ा और अन्य घायलों को थाने के बाहर स्थित एक शेड में लाकर पटक दिया। पुलिस, घायलों को सुबह चार बजे अस्पताल लेकर गई जबकि अस्पताल, थाने से मात्र दो किलोमीटर दूर था। प्रकाश लकड़ा को सभी घायलों के बाद अस्पताल ले जाया गया और उसे डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। प्रकरण के आरोपी जहां खुलेआम घूम रहे हैं वहीं बचे हुए पीड़ितों पर कठोर गौवध निषेध कानून के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया गया है।
Criminal justice system.
आपराधिक न्याय प्रणालीः हमारे देश की अदालतें मॉब लिंचिंग के आरोपियों को समुचित सजा देने में असफल सिद्ध हुई हैं। सबसे पहले तो आरोपियों पर गंभीर धाराओं के अंतर्गत मुकदमा ही कायम नहीं किया जाता। इसके अलावा पुलिस उनके विरूद्ध समुचित प्रमाण अदालत में प्रस्तुत नहीं करती जिसके कारण पहले उन्हें आसानी से जमानत मिल जाती है और बाद में वे बरी भी हो जाते हैं। चूंकि बच्चों के अपहरण से जुड़ी लिंचिंग की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है और हिन्दू भी उसके शिकार बन रहे हैं इसलिए राजनैतिक नेतृत्व इस तरह की घटनाओं को रोकने का इच्छुक है। परंतु जहां तक गौवध से जुड़ी लिंचिंग का सवाल है उनके मामले में अब तक कुल 18 गिरफ्तारियां हुई हैं जिनमें वे पीड़ित भी शामिल हैं जिन्हें गौवध निषेध कानूनों के उल्लंघन का दोषी ठहराया गया है।
यह दिलचस्प है कि जिन मामलों में पीड़ितों को ‘जय श्रीराम‘ आदि जैसे नारे लगाने पर मजबूर किया गया उनमें पुलिस ने इन्हें साम्प्रदायिक अपराध की श्रेणी में रखने की बजाए सामान्य झगड़े के रूप में दर्ज किया। इस तरह पुलिस यह मानने से ही इंकार कर रही है कि इस तरह के प्रकरण एक विशिष्ट विचारधारा का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास हैं।
निष्कर्ष - Lynching is also a kind of communal violence
सीएसएसएस का यह निष्कर्ष है कि लिंचिंग भी एक तरह की साम्प्रदायिक हिंसा है। जहां देश में साम्प्रदायिक दंगों में कमी आई है वहीं लिंचिंग के रूप में साम्प्रदायिकता का दानव और शक्तिशाली हुआ है। इस अमानवीय और क्रूर अपराध के संबंध में उच्चतम न्यायालय के मार्गनिर्देशों को नजरअंदाज करने के कारण इस तरह की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। लिंचिंग का उपयोग मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों का दमन करने और उन्हें हाशिए पर धकेलने के लिए किया जा रहा है। मॉब लिंचिंग न केवल उसके पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए एक दर्दनाक अनुभव है बल्कि इस तरह की घटनाएं देश की अंतरात्मा को झकझोरने वाली हैं। या कम से कम हमारी यह अपेक्षा है कि निर्दोष लोगों को क्रूरतापूर्वक पीट-पीटकर जान से मारने की घटनाओं ने आम भारतीयों की अंतरात्मा को झकझोरा होगा।
- इरफान इंजिनियर, नेहा दाभाड़े, सूरज नायर
(अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)