Modi government is under pressure due to farmer movement
किसान आंदोलन और मोदी सरकार के हठ पर स्वतंत्र पत्रकार हरे राम मिश्र का विश्लेषण
देश में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में जानी मानी विदेशी हस्तियों के शरीक होने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार काफी दबाव में है.
जिस तरह से टूलकिट के बहाने भारत में गिरफ्तारियां हो रही हैं, उसे देखते हुए संदेह नहीं रह जाता कि किसान आंदोलन के कारण मोदी सरकार पर दबाव है.
अगर यह दबाव और लंबा चला तब कई मामलों में सरकार पॉलिसी पैरालिसिस का शिकार हो जाएगी और कोई परिवर्तनकारी फैसला लेने की हिम्मत नहीं कर पायेगी.
हालांकि यह बात भी साफ हो गई है कि नरेंद्र मोदी सरकार कृषि कानूनों पर पीछे हटने की मूड में नहीं है.
मोदी सरकार को नहीं लगता कि इन कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन से उसे बहुत ज्यादा चुनावी नुकसान हो जायेगा.
आप देख सकते हैं कि किसानों के इतने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन के बावजूद सरकार तेल का दाम बेतहाशा बढ़ा रही है, एलपीजी का दाम बेतहाशा बढ़ाती जा रही है.
महंगाई बढ़ती जा रही है, जबकि आम आदमी की आय में कोई इजाफा नहीं हो रहा है. नौकरी का पता नहीं है, वेतन घट गया है, लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. वह राम मंदिर निर्माण को ही अपनी उपलब्धि बता रही है.
कहने का मतलब यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार यह मानकर चल रही है कि इन प्रदर्शनों से उसे कोई बहुत नुकसान होने की संभावना नहीं है. या फिर सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि इन विरोध प्रदर्शनों से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि जिन मुद्दों पर उसने चुनाव जीता है या जो वोटर उन्हें वोट करता है उसके लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है.
मेरी समझ में यदि प्रदर्शनरत किसानों का मुद्दा आम आदमी तक पहुंच पाया या फिर Electroral सब्जेक्ट बन पाया तब बीजेपी को लॉस होगा, अन्यथा बहुत ज्यादा लॉस नहीं होगा.
हालांकि बीजेपी ने छोटे और मझोले किसानों के बीच इस भ्रम को बहुत सफलता से फैलाया है कि प्रदर्शन कर रहे किसान वास्तव में किसान नहीं है बल्कि किसानों से लाभ कमाने वाले बिचौलिए हैं. जब यह किसान है ही नहीं तो फिर इन्हें क्या सुनना?
यदि विपक्षी दल मोदी सरकार द्वारा फैलाए गए इस भ्रम का काउंटर कर पाए तब नरेंद्र मोदी सरकार को बहुत ज्यादा नुकसान हो जाएगा.
हालांकि जातियों को जोड़ने- गांठने से सत्ता में पहुंचने का सपना देखने वालों से बहुत ज्यादा उम्मीद करना खुद को धोखा देना है. उनके पास तो किसानों के लिए किसान प्रकोष्ठ तक नहीं है.
हाँ, कांग्रेस पार्टी इस प्रयास में है कि किसानों के इस मुद्दे पर किसानों के साथ खड़ा होकर इन तीन कानूनों का नुकसान गांव-गांव तक जनता के बीच पहुंचाया जाए.
हालांकि वह कितनी कामयाब होगी और Electroral लेवल पर कितना फायदा होगा यह सब भविष्य के गर्त में है, लेकिन यह प्रयास बहुत आशा देने वाला है.
जब उत्तर प्रदेश में विपक्ष चुप बैठ गया है तब कांग्रेस का सक्रिय होना लोकतंत्र को मजबूत करेगा.
आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रियंका जी की चुनावी सभा ने इस दिशा में बहुत आशा जगाई है.
जिस तरह से सभा स्थल पर लोगों का जमावड़ा था और भीड़ इकट्ठा हुई थी उससे यह संदेश साफ जा रहा है कि बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में साफ हो रही है.