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आज पूरी दुनिया के देश अपने नागरिकों को बचाने के लिए हर संभव राहत देकर हर कोशिश कर रहे हैं, वहीं भारत में जमाखोरी को बढ़ावा दिया जा रहा है उसका उदाहरण सरकार खुद पैट्रोल पर 18 और डीजल पर 12 रु. एक्साइज शुल्क बढ़ा देती है। जबकि तेल के दाम गिरते हुए 1990 के दौर में चले गये हैं।
Modi ji's aimless government continued to export masks till 19 March Why?
टाइम्स ग्रुप ने खुलासा किया है कि जब देश में आम आदमी की जान के आगे भयानक मौत खड़ी है, तब मोदी जी की उद्देश्यहीन सरकार 19 मार्च तक मास्क का निर्यात करती रही थी क्यों ?
देश में बाजारों तक में तो क्या उत्तर प्रदेश के अस्पतालों तक में मास्क उपलब्ध नहीं हैं। ऊपर से इस बीच वेन्टीलेटर की खरीद और निर्माण की आड़ में एसैम्बल करने के धंधे के लिए गुजरात की एक कुख्यात कंम्पनी को रातों-रात अनुबंधित कर दिया गया है। यह वही कंपनी है जिस के ऊपर कारगिल युद्ध में ताबूत घोटाला करने के आरोप लगे थे। करोड़ों के इस वारे-न्यारे का क्या समय चुना है देश के पालनहार ने!
भारत में पहला कोराना केस आने के बाद 31 जनवरी से राहुल गांधी, जिसे पप्पू, ट्यूबलाइट जैसे अलंकरण दिये हैं, वह 31 जनवरी से लगातार कोरोना और उसकी गंभीरता पर अब तक तीन प्रेस कांफ्रेस सहित 9 बार मामले को उठा चुके हैं कि सरकार कोरोना की भयावहता को नजरअंदाज कर रही है।
12 फरवरी को जब राहुल ने तीखा बयान दिया तो उस पर भाजपा के लोगों और सरकार के कारिंदों ने चुटकुले बनाये। मीम बनाये। तब ऐसे भयावह दौर में 19 फरवरी को प्रधानमंत्री ट्वीट करते हैं कि गरम चाय के साथ लिट्टी-चोखा खाया, आनंद आया।
भारत का स्वास्थ्य मंत्री कहता है लोग मास्क लगाकर भय फैला रहे हैं, हमने कोरोना को पहले ही पैक कर दिया है।
उसके बाद मोदी ट्रम्प की सेवा में लमलेट हो गये। 120 करोड़ रुपये स्वाहा कर दिये। फिर सरकार गिराने और उसे बनवाने के खेल में लगे रहे। हजारों लाख के इस खेल में कोरोना पसरता चला गया।
इस बीच जब समस्या विकराल हो गई तो देश को ताली-थाली बजाने का नुस्खा दे दिया। तब जाकर मास्क के निर्यात पर रोक लगी। अब वह वैन्टीलेटर का खेल भी चालू है।
इस बीच असुरक्षा के वातारण में उत्तर प्रदेश के 700 डॉक्टरों ने काम करने से हाथ खड़े कर दिये हैं। एम्स प्रशासन ने बाकायदा लिखित गुहार लगा कर संसाधन मुहैय्या कराने की प्रार्थना की है।
अब तो एम्स के डॉक्टरों ने भी कह दिया है, हमारे पास जरूरी सुरक्षा उपकरण नहीं है
लेकिन अब देश की जनता को देखना है कि उन्हें समझदारी से काम लेना है आगे आप समझ लो थाली पीटना है या छाती ?
लॉक डाउन तभी सफल हो पाएगा जब इस पीरियड में ही सभी बाहर से आये संभावित रोगियों को पहचान कर आइसोलेट कर लिया जाएगा।
सबसे लंबी दूरी तक मार करने वाली न्यूक्लियर वॉरहेड युक्त इंटर कांटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल भी कोरोना वायरस का कुछ नहीं बिगाड़ सकती है।
कोरोना का वायरस दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी बनने को बेताब चीन से निकलकर फर्स्ट वर्ल्ड में गया है और वहाँ से घूमकर भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में आ गया है।
`अमेरिका फर्स्ट’ और `हम विश्वगुरू’ की थाली पीटती दुनिया को एक वायरस ने बता दिया है कि मुल्क सिर्फ एक राजनीतिक इकाई है और उससे ज्यादा कुछ नहीं और इंसानों के असली सवाल कहीं ज्यादा बड़े हैं।
पूरी दुनिया में सरकारें अपने मेडिकल स्टाफ को बेहिसाब साधन और प्रोत्साहन दे रही हैं। हमारे देश में डॉक्टर मोदी के आगे हाथ फैलाकर भीख मांग रहे हैं कि जान हम बचायेंगे हमें साधन तो दे दो। लेकिन साधन आयेंगे कहां से? साधन पैदा करने के जो साधन थे, वे तो मालिक बेच खा चुका और देश मोदी के पीछे अडिग खड़ा होकर ताली, थाली, कनस्तर बजाने के फायदे तक गिनाने लग गया है।
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देश के स्वपोषित व्हाट्सएप बुद्धजीवियों में जागरूकता इतनी है कि ताली-थाली से कोरोना के मरने की पुष्टि नासा से भी करवा ली है। नासा और विश्व स्वास्थ्य संगठन के नाम से समाचारों का रेला है जिसमें मोदी ने कोरोना को पेला है।
मेडिकल और हैल्थ केयरिंग में दुनिया के दूसरे नंम्बर का देश इटली कोरोना के आगे हाथ खड़े कर चुका है। इटली का प्रधानमंत्री 20 मिनट के संबोधन में 40 बार फफक कर रो गया और हैल्थ केयरिंग में हमारा महान भारत का नंबर अब 140 वां है!
मतलब साफ है कि हमें कोई बचा सकता तो वो जागरूकता ही है।
प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध फौजी जवानों ने लड़े थे। वर्तमान में ये जो जैविक विश्वयुद्ध हुआ उसको विश्व के हर डाक्टरों, नर्सों एवं स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा लड़ा जा रहा है। हमें इससे लड़ने में उनकी मद्दत करनी चाहिए। दिल से सलाम है, इनको !!!
अमित सिंह शिवभक्त नंदी