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करते हो मोदी से प्यार, तो तिरंगे से क्यों इंकार?

डोनाल्ड ट्रंप ने सेना से लेकर सिविलियन तक ध्वजारोहण की जो राजनीति छेड़ रखी थी, उसका सकारात्मक परिणाम दोबारा से सत्ता में वापसी के माइल हो नहीं सका। क्या भारत में भी ट्रंप की राजनीति कारगर होगी?

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देशबन्धु
13 Aug 2022 एडिट 30 Mar 2023
मुंह मत मोड़िए अफगानों की आर्थिक हालत से, जानिए तालिबान नेतृत्व के मानवाधिकारवादी मुखौटे की असल वजह

पुष्परंजन

डोनाल्ड ट्रंप से प्रेरित है मोदी का तिरंगे से प्यार

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आप उस कालखंड की ख़बरें पढ़िये, जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में थे। डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति का ब्रह्मास्त्र था, अमेरिकी ध्वज। आर्मी वेटरन से लेकर स्कूली बच्चों तक, अमेरिकी ध्वज वाहक। अमेरिकी वैभव, राष्ट्राभिमान को कुछ ऐसी चालाकी से ट्रंप के रणनीतिकारों ने चिपकाया, उसे ना करने का मतलब देश के प्रति आपकी निष्ठा संदेहास्पद। नये-नवेले अनिवासी, जो अमेरिका में रहने के आकांक्षी थे, उनकी विवशता थी कि अधिक से अधिक अमेरिकी ध्वज के इस्तेमाल को दिखायें। टोपी में, टीशर्ट में, अपने घरों की छत-बाल्कनी में, या फिर कार में, यहां तक कि शरीर पर उकेरे टैटू में, अमेरिकी ध्वज दिखना चाहिए। रोज़गार नहीं है, कारोबार चौपट है, मगर अमेरिकी ध्वज दिखाओ। अमेरिकी राष्ट्रवाद जपो, और बोलो कि ट्रंप की नीतियां सही हैं।

ट्रंप शासन के दसेक साल पहले 17 सितंबर 2008 को यमन की राजधानी सना में अमेरिकी दूतावास पर हमले हुए। अमेरिकी ध्वज को गोलियों से हमलावरों ने छलनी कर दी। यमन में दूतावास बचाने के क्रम में अमेरिकी मरीन ने जो गोलाबारी की उसमें 18 मौतें हुईं, 16 लोग बुरी तरह से घायल हुए। कोर्ट मार्शल हुआ, मगर अमेरिकी ध्वज के अपमान (disgrace of the american flag) के हवाले से वो सैनिक कमांडर बचा लिये गये, जिन्होंने आम नागरिकों, औरतों-बच्चों पर फायरिंग का आदेश दिया था।

यह ट्रंप शासन काल से पहले और बाद की बात है जब यमन की राजधानी सना में 13 सितंबर 2012, 10 नवंबर 2021 को अमेरिकी दूतावास को घेरकर तोड़फोड़ व हिंसा हुई थी।

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हजरत मोहम्मद पर फिल्म की वजह से हुआ अमेरिकी ध्वज का अपमान

तीन तारीख़ों को ग़ौर से देखें, तो हमलावरों ने जान-माल की क्षति के साथ-साथ अमेरिकी ध्वज का अपमान भी किया था। वजह, हज़रत मोहम्मद पर फ़िल्म थी। (American flag was insulted because of the film on Hazrat Mohammad)

मघ्यपूर्व में अमेरिकी ध्वज का अपमान होता, और उसकी राजनीति रिपब्लिकन पार्टी अपने देश में करती। ट्रंप से करते हो प्यार, तो झंडे से क्यों इंकार? यहां तक राजनीति का स्तर पहुंचा दिया था रिपब्लिकन पार्टी ने।

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डोनाल्ड ट्रंप ने सेना से लेकर सिविलियन तक ध्वजारोहण की जो राजनीति छेड़ रखी थी, उसका सकारात्मक परिणाम दोबारा से सत्ता में वापसी के माइल हो नहीं सका।

क्या भारत में भी ट्रंप की राजनीति कारगर होगी?

मगर, ज़रूरी नहीं कि भारत में भी ट्रंप की राजनीति जैसा अवसान देखने को मिले। अमेरिकी वोटर के तेवर, वहां की चुनावी पारदर्शिता, अदालती आज़ादी से भारत की तुलना नहीं की जा सकती।

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आज़ादी के अमृत काल में 20 करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य रखा गया है। 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा कार्यक्रम के तहत यह मान लिया गया है कि इससे मोदी समर्थक निर्धारित हो जाएंगे।

शहर, गांव, मलीन बस्तियों के 20 करोड़ घरों पर तिरंगे का तसव्वुर कर लीजिए, मगर उसका मतलब यह नहीं होता कि ये सारे आपके वोट बैंक हैं। कुछ भय से, तो कुछ प्रीत से झंडे लहराने वाले मिलेंगे। सभी दल-जमात के लोग भी इनमें शामिल होंगे। वो भी होंगे, जो डूबते सूरज से मुंह मोड़ते हैं, और शाहे वक़्त को सलाम करते हैं।

ध्वजारोहण के साथ-साथ ध्वज के अपमान की ख़बरें भी तेज़ी से वायरल हो रही हैं। लेकिन ये ख़बरें अलग-अलग चश्मे के साथ देखी-दिखाई जा रही हैं। बिहार के औराई में अशोक चक्र की जगह चांद-सितारे प्रिंट किये तिरंगे को फहराये जाने को लेकर नीतीश-तेजस्वी सरकार पर हमले तेज़ हो गये हैं। औराई पुलिस ने झंडे को उतरवाया, और प्राथमिकी दर्ज़ की है। कानपुर में किसी धार्मिक कार्यक्रम के दौरान तिरंगे से छेड़छाड़ कर उसमें भारत का नक्शा दिखाने के विरूद्ध बजरंग दल ने प्राथमिकी दर्ज़ कराई। इस कांड के हवाले से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धमकाया है कि जिसने भी तिरंगे का अपमान किया, उसकी ख़ैर नहीं।

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इसके बरक्स यूपी कांग्रेस, उन भाजपा नेताओं की तस्वीरें ढूंढ-ढूंढ कर वायरल कर रही है, जो उल्टे-पुल्टे तरीक़े से तिरंगे फहरा रहे हैं। 11 अगस्त 2022 को यूपी कांग्रेस के ट्विटर अकाउंट से सैदपुर से भाजपा के सांसद विनोद कुमार सोनकर की तस्वीर वायरल हुई है, जिसमें उन्होंने अपने साथियों के साथ राष्ट्रध्वज उल्टा पकड़ रखा है। मगर, इसके लिए प्रदेश शासन क्या कार्रवाई करता है? यह सवाल भी महत्वपूर्ण है।

राष्ट्रध्वज फहराने की तमीज़ भी होनी चाहिए?

आप बिल्कुल मनाइये तीन दिवसीय तिरंगा दिवस, मगर क्या उस वास्ते लोगों को राष्ट्रध्वज फहराने की तमीज़ नहीं होनी चाहिए? राष्ट्रध्वज के सम्मान को लेकर बने 'द प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट-1970' ('The Prevention of Insults to National Honour Act-1970') से कितने लोग वाकिफ हैं? नेहरू काल में जो हुआ सो हुआ, पिछले आठ वर्षों में मंत्री-सांसदों ने तिरंगे का कितनी बार जाने-अनजाने अपमान किया, विस्तार से बताएं, तो उसकी सूची काफी लंबी हो जाएगी। ऐसे महानुभावों में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, सचिन तेंदुलकर, सानिया मिर्ज़ा, तिरंगे की प्रिंट वाली साड़ी धारण करने वाली मंदिरा बेदी तक के नाम शामिल हैं।

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5 अगस्त 2022 को हिमाचल सरकार ने केंद्र से शिकायत की, कि साढ़े सत्रह लाख तिरंगे की सप्लाई होनी थी, उसके बदले 10 लाख तिरंगे आये, उनमें भी केसरिया के बदले लाल रंग और अंडाकार अशोक चक्र छपे हुए। राष्ट्रध्वज के कपड़े आड़े-तिरछे कटे हुए। कला-संस्कृति विभाग के सचिव ने केंद्र को भेजे पत्र में लिखा कि 25 रुपये के ये झंडे कोई दो रुपये में भी ख़रीदने को तैयार नहीं है। अधिकांश तिरंगे सूरत में प्रिंट हुए हैं। साउथ गुजरात प्रोसेसिंग हाउस यूनिट एसोसिएशन के अध्यक्ष जीतू वाखड़िया ने 6 जुलाई 2022 को बयान दिया था कि केंद्र सरकार 72 करोड़ तिरंगे सूरत से प्रिंट कराना चाह रही थी, जिसमें से 10 करोड़ झंडे सूरत टेक्सटाइल इंडस्ट्री वालों ने तैयार कर भेज दिये। हिमाचल में जो ख़राब प्रिंट वाले आड़े-तिरछे कटे झंडे भेजे गये, उससे आप दूसरे प्रांतों में भी तिरंगा सप्लाई में हुई गड़बड़ियों का तसव्वुर कर सकते हैं।

कब बनी राष्ट्रध्वज आचार संहिता?

आज से 20 साल पहले 2002 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 'राष्ट्रध्वज आचार संहिता' (भारतीय झंडा संहिता, 2002) तय किया था। 25 पेज के उस दस्तावेज़ को कोई ध्यान से पढ़े, तो उसका उल्लंघन साफ़ नज़र आयेगा। विभिन्न आकार के नौ तिरंगे के बारे में विस्तार से उस दस्तावेज़ में लिखा गया है। अधिकतम 6300 ग— 4200 मिलीमीटर (पौने तीस फीट ग —पौने चौदह फीट) और सबसे छोटा तिरंगा 150 ग —100 एमएम (5.90 इंच —ग 3.93 इंच)। आठ वर्षों में क्या सचमुच इसी साइज़ के झंडे बनने लगे? अब तो जंबो साइज वाले तिरंगों में प्रतिस्पर्धा है। इसके लिए 'राष्ट्रध्वज आचार संहिता-2002' में संशोधन कहीं नज़र नहीं आया।

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पॉलिएस्टर वाले राष्ट्रध्वज का विरोध क्यों हुआ?

'राष्ट्रध्वज आचार संहिता-2002' में बहुत साफ बताया गया था कि तिरंगा बुल, कॉटन, सिल्क अथवा खादी के हों, और हस्तकरघा पर बुने गये हों। मोदी सरकार ने आचार संहिता में बदलाव कर 30 दिसंबर 2021 को आदेश जारी किया कि मशीन मेड पॉलिएस्टर धागे से तिरंगे बनाये जाएंगे। 20 जुलाई 2022 को एक बार फिर केंद्र से आदेश हुआ कि तिरंगा अब दिन-रात फहराया जा सकेगा।

पॉलिएस्टर वाले राष्ट्रध्वज का विरोध (protest against the polyester national flag) सबसे पहले कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ ने किया, जिसे चुप करा दिया गया। सरकार की तरफ़ से यह भी तर्क दिया गया कि कताई वाली सूती खादी झंडे की क़ीमत 2832 रुपये है। खादी भंडार में तिरंगे की यह क़ीमत सचमुच चकित कर देने वाली थी। सूती तिरंगे की अनियंत्रित क़ीमत ने समूचे राष्ट्र को पॉलिएस्टर मेड कृत्रिम झंडे की तरफ मोड़ दिया, यह दास्तां सचमुच दुख देने वाली है।

खादी त्यागिये, पॉलिएस्टर के झंडे पोस्ट ऑफिस में बेचिए। रेल व केंद्रीय कर्मचारी झंडे की मनमानी क़ीमत वसूली से गु़स्से में हैं, मगर परवाह किसे है? कॉरपोरेट के लिए तिरंगा सप्ताह, मालामाल वीकली में बदल दिया। मस्त रहिए।

कई बार मन में सवाल उठता है कि राष्ट्रवाद को प्रज्ज्वलित करने में फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन नवीन जिंदल ने क्या सही भूमिका अदा की थी? रायगढ़ की फैक्ट्री में झंडा फहराने से रोके जाने के विरोध में नवीन जिंदल सर्वोच्च न्यायालय तक गये, और 23 जनवरी 2004 को यह आदेश हुआ कि देश का आम आदमी राष्ट्रीय झंडा फ हरा सकता है। इस घटना के 18 साल से अधिक हो चुके। एक बार इसकी समीक्षा होनी चाहिए कि इस देश में तिरंगे का सम्मान और अपमान, सदुपयोग और दुरूपयोग कितना हुआ है?

अब राज्यों में दावेदारी शुरू है कि सबसे ऊंचा राष्ट्रध्वज उसके पास है, चुनांचे टूरिस्ट यहां आयें। 23 जनवरी 2016 को रांची को 293 फीट तिरंगा फहराने का गौरव प्राप्त हुआ है। तब इसे देश का सबसे बड़ा राष्ट्रध्वज बताया गया था। 2018 में बेलगावी (बेलगांव, कर्नाटक) में 361 फीट का तिरंगा फहराकर झारखंड की लकीर छोटी कर दी गई। इन्हें कौन समझाये कि अति सर्वत्र वर्जयेत।

2 जून 2016 को हैदराबाद के हुसैन सागर तट पर 88 मीटर (291 फीट) का तिरंगा लगा। दिल्ली में 207 फीट का राष्ट्रध्वज लहरा रहा है।

आप देश को बुनियादी समस्याओं से भटकाकर, तेरा झंडा-मेरा झंडा खेल रहे हैं। मगर यही झंडा संभाले नहीं संभल रहा है। दिल्ली में 207 फीट का तिरंगा 11 बार फट चुका है। हैदराबाद के हुसैन सागर तट पर 291 फीट का राष्ट्रध्वज तेज़ हवाओं की वजह से तीन बार फट चुका है। रांची में राष्ट्रध्वज का वही हाल हुआ। बेलगाम, रायपुर, लखनऊ, पुणे, गुवाहाटी, फरीदाबाद, विशालकाय तिरंगे लगा दिये, जो तूफानी मौसम में संभाले नहीं संभल रहे। मार्च 2017 में अटारी में 80 गुणा 120 फीट का तिरंगा गिरकर फट गया, उसे अमृतसर के एक टेंट वाले से सिलवाया और दोबारा से फहरा दिया। 14 अगस्त 2017 को बडोदरा में 67 मीटर का राष्ट्रध्वज धराशायी होकर फट गया। यह ध्वज तत्कालीन सीएम विजय रूपाणी को फहराना था। सोचिये, कितनी फजीहत हुई होगी?

आप इन फटे तिरंगों की मरम्मत करते हो, फिर फहराते हो। क्या यह अपमान नहीं है?

राष्ट्रध्वज के प्रति इतना ही समर्पण भाव था, तो चेन्नई के फोर्ट सेंट जार्ज में पड़े देश के सबसे पुराने राष्ट्रध्वज की मरम्मत के बारे में फैसला लेने में बरसों क्यों लगे?

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