Advertisment

नोटबंदी पर पचास दिन माँगकर चौराहे पर आने को कहा था, प्रवंचक ने अब इक्कीस दिन में कोरोना के प्रभाव को ख़त्म करने की बात कही है

नोटबंदी पर पचास दिन माँगकर चौराहे पर आने को कहा था, प्रवंचक ने अब इक्कीस दिन में कोरोना के प्रभाव को ख़त्म करने की बात कही है

नोटबंदी पर पचास दिन माँगने वाले प्रवंचक ने अब इक्कीस दिन में कोरोना के प्रभाव को ख़त्म करने की बात कही है।

Advertisment

इनकी बात पर कभी कोई यक़ीन न करें, पर लॉक डाउन (#CoronavirusLockdown) का यथासंभव सख़्ती से पालन जरूर करे।

सोशल डिस्टेंसिंग छूत की ऐसी बीमारी से लड़ने के लिए सबसे ज़रूरी है। | Social distancing is most important to fight such contagious disease.

मोदी को नहीं, इस घातक बीमारी से बचने के उपाय को ज़रूर अपना समय दीजिए।

Advertisment

यह कोई महाभारत का युद्ध (War of mahabharata) नहीं है। न कोई और धर्मयुद्ध। तेज़ी से फैलने वाली एक वैश्विक महामारी (Global epidemic) है। इसीलिये ढोल-नगाड़े बजाने वालों और तलवारों को चमकाने वालों को दूर रखिए।

मोदी का सच यह है कि इन्होंने अब तक भारत को दुखों के सिवाय कुछ नहीं दिया है। कल ही जारी हुए विश्व ख़ुशहाली के सूचकांक में इन्होंने दुनिया के 156 देशों में 144 वें स्थान पर उतार दिया है।

हिटलर ने अपने जर्मनी के करोड़ों लोगों को युद्ध में उतार दिया था। बहुत बड़ा भाषणबाज था। बोलता था तो लोगों में आग की लपटें उठने लगती थी।

Advertisment

मुसोलिनी इस मामले में हिटलर से भी दो कदम आगे था। भाषणबाज़ी में तब उसकी बराबरी का कोई नहीं था।

पर इन दोनों के ही व्यक्तिगत जीवन में किसी भी प्रकार की सादगी के आदर्श का कोई स्थान नहीं था। हिटलर दुनिया की सबसे बेहतरीन शराब और शबाब का शौक़ीन था। मुसोलिनी भी वैसा ही था।

इनकी तुलना में न रूस के लेनिन भाषणबाज थे और न स्तालिन ही। अपनी बातों को तार्किक ढंग से रखते थे, लेकिन उनकी बातों में कोई झूठ और आडंबर नहीं होता था। वे दोनों ही अत्यंत सादा और आदर्श जीवन जीते थे।

Advertisment

भारत में को सिर्फ़ गांधी और नेहरू ही नहीं, राष्ट्रीय आंदोलन के पूरे नेतृत्व की एक ही पूँजी हुआ करती थी — ‘सादा जीवन उच्च विचार’। इनके जीवन में आडंबर और प्रदर्शन की कोई जगह नहीं थी। गांधी जी, नेहरू जी आदि में कोई भी कभी भुजाएँ फड़काते हुए गर्जन-तर्जन के साथ भाषणबाज़ी नहीं करते थे। फ़िज़ूलख़र्ची और नैतिक स्खलन उनमें लेश मात्र भी नहीं दिखती थी।

इनकी तुलना में जब आप नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, भाजपा के समूचे नेतृत्व निजी चरित्र पर गौर करेंगे तो इन सबको हिटलर-मुसोलिनी की श्रेणी में रख कर देखने में आपको जरा भी कष्ट नहीं होगा।

Arun Maheshwari - अरुण माहेश्वरी, लेखक सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-आर्थिक विषयों के टिप्पणीकार एवं पत्रकार हैं। छात्र जीवन से ही मार्क्सवादी राजनीति और साहित्य-आन्दोलन से जुड़ाव और सी.पी.आई.(एम.) के मुखपत्र ‘स्वाधीनता’ से सम्बद्ध। साहित्यिक पत्रिका ‘कलम’ का सम्पादन। जनवादी लेखक संघ के केन्द्रीय सचिव एवं पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव। वह हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं। Arun Maheshwari - अरुण माहेश्वरी, लेखक सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-आर्थिक विषयों के टिप्पणीकार एवं पत्रकार हैं। छात्र जीवन से ही मार्क्सवादी राजनीति और साहित्य-आन्दोलन से जुड़ाव और सी.पी.आई.(एम.) के मुखपत्र ‘स्वाधीनता’ से सम्बद्ध। साहित्यिक पत्रिका ‘कलम’ का सम्पादन। जनवादी लेखक संघ के केन्द्रीय सचिव एवं पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव। वह हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

Advertisment

इनके नीचे के भी तमाम नेता शानदार और चमकदार भोगी जीवन से कोई परहेज़ नहीं करते। इनके नेताओं पर बलात्कार का आरोप सबसे आम पाया जाता है।

अभी कोरोना के इस काल में ही इन सबके आचरण को देखिए। राहुल गांधी अपनी संपत्ति का एक तिहाई, पाँच करोड़ रुपया कोरोना से लड़ने के लिए सरकार को दे चुके हैं। प्रियंका गांधी आम लोगों को हाथ धोने के बारे में समझाती घूम रही है।

भाजपा का एक भी नेता आज के समय में कोई आदर्श पेश करता हुआ दिखाई नहीं देगा।

Advertisment

दरअसल, आरएसएस सैद्धांतिक तौर पर ऐसे निजी आदर्शों का विरोधी है। वे निजी जीवन में ज़िम्मेदारियों से पलायन का सुख भोगते हैं और आम लोगों को अपने कठपुतलों की तरह नचाने पर यक़ीन रखते हैं।

हमारा दुर्भाग्य है कि शक्तिशालियों के सामने आत्म-समर्पण की मानसिकता में आज भी फँसा हुआ भारत का गरीब और मध्यवर्गीय आदमी कुछ हद तक आज भी इनकी गिरफ़्त में है।

-अरुण माहेश्वरी

Advertisment
सदस्यता लें