Advertisment

उदयपुर कांड के लिए नूपुर शर्मा से अधिक कौन जिम्मेदार?

author-image
Guest writer
03 Jul 2022
New Update
अन्ततः गृहयुद्ध की ओर ले जाएगा बढ़ती धार्मिक कट्टरता का हिंसक आह्वान

retired senior ips officer vijay shankar singh

Advertisment

उदयपुर कांड के लिए नूपुर शर्मा से अधिक समाज में फैलाया गया जहर जिम्मेदार

Advertisment

नूपुर शर्मा मामले में यदि पूरे घटनाक्रम का अवलोकन करें तो सबसे पहले दोष टाइम्स नाउ चैनल का है, जिसने डिबेट के लिए ज्ञानवापी से जुड़े विवाद को विषय के रूप में चुना। लेकिन मीडिया का एक हिस्सा ऐसे विषयों को जानबूझकर चुनता है, उस पर बहस कराता है और देश तथा समाज का वातावरण जहरीला बनाता है।

Advertisment

क्या क्रिमिनल केस में माफी मांगने का कोई प्राविधान होता है?

Advertisment

नूपुर शर्मा के बयान (Nupur Sharma's statement) से दुनिया भर में सरकार की किरकिरी हुई, भाजपा ने फ्रिंज एलिमेंट कह कर जान छुड़ाई, सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि, उदयपुर हत्याकांड उसी बयान का परिणाम है।

Advertisment

इसी बीच शीर्ष अदालत ने नूपुर शर्मा से टीवी चैनल पर आकर माफी मांगने के लिए कहा है। लेकिन माफी मांगने का कोई प्राविधान क्रिमिनल केस में नहीं होता है, उसकी तफ्तीश की जाती है, गिरफ्तारी होती है, और सुबूत पाए जाने पर न्यायालय में चार्जशीट दी जाती है। सुबूत न मिलने पर केस बंद हो जाता है। नूपुर शर्मा के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय कानूनी कार्यवाही करने का निर्देश दे।

Advertisment

अब चर्चा करते हैं घटना की पृष्ठभूमि की...

Advertisment

ज्ञानवापी प्रकरण में मुख्य बिंदु था कि अदालत की आदेश से हुए उस मस्जिद के सर्वेक्षण में क्या मिला। एक पत्थर मिला जिसे एक पक्ष शिवलिंग बताता है और एक पक्ष वुजुखाने का फव्वारा।

अदालत ने सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है और वीडियो सहित रिपोर्ट को अपने पास रखा है। अदालत को भी मामले की संवेदनशीलता का अंदाज है। अभी मामला न्यायालय में विचाराधीन है। लेकिन एक उन्मादित उत्साह के साथ यह वीडियो न केवल टीवी चैनलों पर दिखाया सुनाया जाने लगा, बल्कि इस पर बहस भी कराई जाने लगी। उसी क्रम में टाइम्स नाउ की एंकर नाविका कुमार (Times Now anchor Navika Kumar) ने इस पर डिबेट आयोजित किया और उसी डिबेट में हिस्सा लेने के लिए भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा और एक मौलाना रहमानी टाइम्स नाउ की डिबेट (Times Now debate) में शामिल हुए। जब सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं है और अदालत में इस मुकदमे की सुनवाई चल रही है, तब ऐसे विचाराधीन मामले पर जिसका असर समाज की धार्मिक भावनाओं पर भी पड़ सकता है, को डिबेट के लिए क्यों चुना गया।

सर्वे में मिला क्या है, कोई शिवलिंग है या वुजूखाने का कोई हिस्सा, इसे लेकर देश भर में और सोशल मीडिया पर लगातार अनुकूल-प्रतिकूल दावे हिंदू और मुस्लिम पक्ष की तरफ से किए जा रहे थे। ऐसे उत्तेजित माहौल के बीच किसी भी न्यूज चैनल को इस पर डिबेट कराने से बचना चाहिए था। क्योंकि डिबेट में भी मुस्लिम पक्ष यदि उसे वुजुखाने का फव्वारा (wuzukhana fountain) बताता तो हिंदुओं की भावनाओं आहत होती और हिंदू पक्ष उसे शिवलिंग कह कर पूजा की बात करता तो मुस्लिम पक्ष को भी इस पर ऐतराज होता। जबकि वह वास्तव में है क्या यह अभी तक स्पष्ट नहीं है क्योंकि सर्वे रिपोर्ट अदालत ने सार्वजनिक नहीं की है। फिलहाल तो जिसे जो मन कर रहा है, वह कह रहा है।

इस मामले में तीन बिंदु हैं। एक, न्यूज चैनल का गैर जिम्मेदाराना डिबेट कराना, दूसरा, एक पैनलिस्ट द्वारा शिव के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करना और तीसरे भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा पैगम्बर के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करना। यदि तत्काल दूसरे ही दिन दिल्ली पुलिस ने इन तीनो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के कार्यवाही शुरू कर दी होती तो शायद इतनी बड़ी बात आगे नहीं बढती। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और जब ट्वीट दुनिया भर में पढ़ा जाने लगा तो, उसका अर्थ भी अपनी अपनी तरह से लोगों ने निकालना शुरू कर दिया।

इसी बीच, जब कुवैत ने आपत्ति की तो एक कूटनीतिक चुनौती खड़ी हो गई। हालांकि विदेश मंत्रालय ने, नूपुर शर्मा को फ्रिंज एलीमेंट कह कर इसे संभाला और भाजपा ने अपने ही प्रवक्ता को निलंबित कर दिया और मामले को ठंडा करने की कोशिश की। लेकिन यह मामला देश की आंतरिक राजनीति में गर्म बना रहा।

फिर तो इस सारे की विवाद की जड़ नूपुर शर्मा हो गई। उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए। और अब जैसा कि बताया जा रहा है नूपुर के खिलाफ कुल आठ एफआईआर दर्ज हुईं, जो देश के विभिन्न भागों में है। बाद में जब दबाव पड़ा तो दिल्ली पुलिस ने भी मुकदमे दर्ज कराए और उस मुकदमे में अन्य कुछ लोगों को भी मुल्जिम बनाया गया, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई।

नूपुर शर्मा ने एक माफी का ट्वीट भी किया और खुद के लिए सुरक्षा की मांग की। सरकार ने सुरक्षा दे भी दी। नूपुर शर्मा ने इन्हीं आठों मुकदमों को दिल्ली स्थानांतरित करने के लिए एक याचिका दायर की थी और जब बेंच का रुख विपरीत देखा तो उन्होंने याचिका वापस ले ली।

अलग-अलग राज्यों में नूपुर शर्मा के खिलाफ दर्ज मुकदमों को दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग वाली उनकी याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया है और अब नूपुर शर्मा को संबंधित राज्यों में मुकदमा लड़ना होगा। नूपुर शर्मा के वकील  ने जब उनकी क्षमा याचना और पैगंबर मुहम्मद पर की गई टिप्पणियों को विनम्रता के साथ वापस लेने की बात कही तो  जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि 'यह कदम बहुत देर से उठाया गया है और अब बहुत देर हो चुकी है।'

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि 'उनकी शिकायत पर एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन कई मुकदमों के दर्ज होने के बावजूद उन्हें अभी तक दिल्ली पुलिस ने छुआ तक नहीं है।'

सर्वोच्च न्यायालय की अवकाश पीठ (vacation bench of supreme court) ने नूपुर शर्मा के बयानों को उदयपुर में हुई दुर्भाग्यपूर्ण वारदात के लिए भी 'ज़िम्मेदार' बताया। अब यह अंश पीठ का मौखिक ओब्जार्वेशन है या उनके आदेश का अंग, यह पता नहीं, पर यदि यह टिप्पणी, पीठ के आदेश का अंग होती है तो सर्वोच्च न्यायालय की इस टिपण्णी के बाद नूपुर शर्मा को उदयपुर केस में भी मुल्जिम बनाया जा सकता है। क्योंकि अभी हाल ही में गुजरात के जाकिया जाफरी केस में अदालत की एक टिप्पणी पर तीस्ता सीतलवाड और पूर्व डीजी आरबी श्रीकुमार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है और वे पुलिस कस्टडी रिमांड पर हैं।

शीर्ष अदालत ने कुछ और महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी की हैं। धर्म विशेष पर नूपुर शर्मा के बयानों पर शीर्ष अदालत ने कहा,

'इससे उनके जिद्दी घमंडी चरित्र का पता चलता है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि वे एक पार्टी की प्रवक्ता हैं। वे सोचती हैं कि उनके पास सत्ता की ताकत है और वे कानून के खिलाफ जाकर कुछ भी बोल सकती हैं।'

कोर्ट ने विवादित बहस को दिखाने वाले टीवी चैनल और दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा,

'दिल्ली पुलिस ने क्या किया? हमें मुंह खोलने पर मजबूर मत कीजिए। टीवी डिबेट किस बारे में थी? इससे केवल एक एजेंडा सेट किया जा रहा था। उन्होंने ऐसा मुद्दा क्यों चुना, जिस पर अदालत में केस चल रहा है।'

अदालत में नूपुर का पक्ष रखते हुए उनके वकील ने कहा कि, 'वह जांच में शामिल हो रही हैं। वह कहीं भाग नहीं रहीं।'

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, 'क्या आपके लिए यहां रेड कारपेट होना चाहिए। जब आप किसी के खिलाफ शिकायत करती हैं, तो उस व्यक्ति को अरेस्ट कर लिया जाता है। आपके दबदबे की वजह से कोई भी आपको छूने की हिम्मत नहीं करता।

नूपुर के वकील ने कहा, 'नूपुर को धमकियां मिल रही हैं। उनके लिए इस समय यात्रा करना सुरक्षित नहीं है।'

इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, 'नूपुर को धमकियां मिल रही हैं या, वे खुद सुरक्षा के लिए खतरा हैं? देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए वही जिम्मेदार हैं।'

सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा, 'पैगंबर के खिलाफ नूपुर शर्मा की टिप्पणी या तो सस्ते प्रचार, राजनीतिक एजेंडे या कुछ नापाक गतिविधियों के लिए की गई थी। ये धार्मिक लोग नहीं हैं और भड़काने के लिए ही बयान देते हैं। ऐसे लोग दूसरे धर्म की इज्जत नहीं करते।'

अदालत ने नूपुर शर्मा पर क्या-क्या कहा, यह मैं पत्रकार पंकज चतुर्वेदी की फेसबुक पेज से लेकर, उद्धरित कर रहा हूं।

1. यह पूरा विवाद टीवी से ही शुरु हुआ है और वहीं पर जाकर आप पूरे देश से माफी मांगें। आपने माफी मांगने में देरी कर दी, यह अंहकार भरा रवैया दिखाता है।

2. अदालत ने कहा कि उदयपुर जैसी घटना के लिए उनका बयान ही जिम्मेदार है। उनके बयान के चलते पूरे देश में हालात बिगड़ गए हैं।

3. नुपुर शर्मा ने पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी या तो सस्ता प्रचार पाने के लिए या किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत या किसी घृणित गतिविधि के तहत की।

4. ये लोग दूसरे धर्मों का सम्मान नहीं करते। अभिव्यक्ति की आजादी का यह अर्थ नहीं है कि कुछ भी बोला जाए।

5. न्यायालय ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणी को लेकर नुपुर शर्मा की माफी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह बहुत देर से मांगी गई और उनकी टिप्पणी के कारण दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं।

जज साहब का यह कहना, उदयपुर की घटना के लिए नूपुर शर्मा जिम्मेदार हैं, की बात से मैं सहमत नहीं हूं। नूपुर शर्मा एक एडवोकेट हैं और वे कानून जानती हैं कि उनकी किस बात का कितना असर हो सकता है। अब वे कह रही है कि न्यूज चैनल पर बहसाबहसी यानी जिसे अंग्रेजी में हीट ऑफ द मोमेंट कहते हैं, यह बात कह दी गई। इसे भड़ास का स्वाभाविक रूप से निकलना भी कहा जा सकता है। पर दूसरे ही क्षण, इस पर यह कह कर के मामले को ठंडा किया जा सकता था कि, यह कथन दुर्भाग्यपूर्ण था और इसे यही समाप्त किया जाय। तभी एंकर को प्रोग्राम रोक कर दोनो से खेद व्यक्त करा दिया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका कारण है कुछ टीवी चैनलों और धर्म की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों का बहस के केंद्र के धार्मिक एजेंडे को बराबर जिंदा बनाए रखना रखना है।

नूपुर शर्मा से अधिक जिम्मेदार सत्तारूढ़ दल के वे लोग जिम्मेदार हैं जिन्होंने कपड़ो से पहचान करने, 80/20 की बात करने, गौरक्षा के नाम पर भीड़ हिंसा के खिलाफ शातिराना खामोशी ओढ़ लेने, मॉब लिंचिंग के अभियुक्तों का अभिनंदन करने, सेक्युलर मूल्यों का मजाक उड़ाने, आदि आदि की लगातार बात करते रहे हैं। नूपुर ने तो इसी एजेंडे के अनुसार ही बात की थी। जब यह सब तमाशा दुनियाभर में हो गया तो सरकार को लिखित सफाई देनी पड़ी कि, 'हम सर्वधर्म समभाव में यकीन करते हैं।' सेक्युलर को सिकुलर या शेखुलर कह कर मजाक उड़ाने वाले लोगों के लिए यह एक कठिन काल था।

पुलिस और प्रशासन में रहे मेरे मित्र, इस बात से सहमत होंगे कि, कुछ मामले ऐसे भी होते हैं, जिनमे यदि पुलिस की तरफ से देरी से कार्यवाही की जाती है तो कुछ और बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। अब उदाहरण के लिए उदयपुर के कन्हैया दर्जी की हत्या का ही मामला देख लें। एक हफ्ते से कन्हैया ने अपनी दुकान नहीं खोली थी और यह शिकायत की थी कि उसे जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। कारण उनके बेटे ने नूपुर शर्मा की फोटो अपने प्रोफाइल में लगा रही थी और कुछ पोस्ट किया था। पुलिस ने सुरक्षा तो थोड़ी बहुत दी पर धमकी देने वालो के खिलाफ कोई जानकारी नहीं जुटाई। अंत में यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट गई। यदि तभी धड़ पकड़ होने लगती तो हो सकता है यह घटना नहीं घटती। लेकिन अब, यह पता चल रहा है कि यह सामान्य अपराध नहीं बल्कि एक आतंकी साजिश है जिसके तार पाकिस्तान से जुड़े है। सरकार की यह उपलब्धि जरूर रही कि सभी हत्यारे जेल में हैं और इनका ट्रायल फास्ट ट्रैक कोर्ट से कराने का उनका वादा है।

इसी प्रकार, जब डिबेट हुआ और दूसरे ही दिन उस आपत्तिजनक बयान पर चर्चा होने लगी तभी पुलिस को इस बारे में मुकदमा दर्ज करके कार्यवाही कर देनी चाहिए थी। लेकिन इस मामले को क्यों लम्बित रखा गया, यह तो पुलिस ही बता सकती है। पर बाद में, मुकदमा भी दर्ज हुआ और आगे भी कोई न कोई कानूनी कार्यवाही करनी ही पड़ेगी, पर तब तक दुनियाभर में देश की किरकिरी हो चुकी थी। पुलिस की असल समस्या है उसके साख और जनता के मन में उसके भरोसे के अभाव की। समान अपराध में जब कुछ गिरफ्तार होते हैं और कुछ निर्द्वंद्व होकर घूमते रहते हैं तो सबसे पहले सवाल पुलिस की नीति और नीयत पर उठता है। जब पुलिस चौतरफा घिरती है तब, पुलिस के बचाव में, न तो कोई राजनीतिक दल सामने आता है और न ही कोई प्रेशर ग्रुप। यहां तक कि सीनियर अफसर भी हवा का रुख पहचान कर सामने आते हैं। सरकार भी जब बहुत ही असहज स्थिति में आने लगती है तो वह भी पुलिस पर ही उस खीज को निकालती है। अदालत तो जो कहती है वह तो कहती ही है। अंततोगत्वा सारा ठीकरा पुलिस पर ही फूटता है।

नूपुर शर्मा के मामले में, सरकार ने जो बात, दुनिया भर में कही है कि वह सेक्युलरिज्म और सर्वधर्म समभाव में यकीन करती है, को व्यावहारिक रूप से अपने समर्थको और अपने दल और थिंक टैंक के कैडर को समझाना होगा। धर्मांधता का कोई भी मामला हो, चाहे वह हिंदू धर्म से जुड़ा हो या मुस्लिम या खालिस्तान से प्रभावित हो, के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। धर्मांधता और कट्टरता के प्रति सरकार और सभी राजनैतिक दलों को जीरो टॉलरेंस की नीति सख्ती से लागू करनी पड़ेगी अन्यथा देश एक पगलाए धर्मांधता की गिरफ्त में जकड़ जायेगा और देश का सारा विकास तो प्रभावित होगा ही, हम एक ऐसे भारत की ओर बढ़ जायेंगे जहां केवल विनाश ही होगा। सरकार को इस बिंदु पर गंभीरता से सोचना होगा।

विजय शंकर सिंह

More than Nupur Sharma, the poison spread in the society is responsible for the Udaipur incident: Vijay Shankar Singh

Advertisment
सदस्यता लें