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Movement in support and against of CAA leading the country towards civil war?
सीएए के विरोध और समर्थन में चल रहे आंदोलन ने देश में विकट स्थिति पैदा कर दी है। भले ही इस आंदोलन में विद्यार्थी, आम आदमी और सामाजिक संगठन बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हों पर यह आंदोलन सत्तापक्ष बनाम विपक्ष का बनता जा रहा है। राजनीतिक दलों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि जैसे विपक्ष सीएए का विरोध कर रहा हो और सत्ता पक्ष समर्थन। पूर्वोत्तर के बाद देश की राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश में जिस तरह से इस आंदोलन ने आक्रामक रूप लिया और सरकारों ने पुलिस बल का प्रयोग किया इससे स्थिति और बिगड़ी है। जहां केंद्र सरकार को आंदोलन को शांत करने के लिए उपाय ढूंढने चाहिए थे वहीं वह इसे संसद का अपमान बताकर सीएए के समर्थन में आंदोलन करवाने लगी है।
स्थिति यह हो गई है कि विपक्ष में कांग्रेस, सपा, बसपा, तृमूंका, एनसीपी, शिवसेना, झामुमो, राजद समेत सभी विपक्ष दल सीएए के विरोध में खड़ हो गये हैं तो सरकार में मुख्य पार्टी भाजपा ने संगठन के अलावा अपने समर्थकों को सीएए के समर्थन में लगा दिया है।
सीएए के विरोध में यदि कहीं पर कोई धरना-प्रदर्शन हो रहा होता है तो समर्थन में सरकार के समर्थक सड़कों पर उतर जा रहे हैं।
हाल ही में सीएए के विरोध में चल रहे आंदोलन पर दबाव बनाने के लिए भाजपा ने सीएए के समर्थन में असम में बूथ स्तरीय के सम्मेलन में अपनी ताकत दिखाने के लिए 50000 से अधिक लोग इकट्ठे कर लिये। अब भाजपा गांव-देहात के अलावा शहरों में भी जाकर सीएए के समर्थन में जनजागरण अभियान चला रही है।
भाजपा की सभी जिला मुख्यालयों पर रैली के अलावा 250 प्रेस कांफ्रेंस करने की योजना है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार तो आंदोलनकारियों के साथ आंतकियों जैसा व्यवहार कर रही है। आंदोलन के नाम पर किसी को भी घर से उठा लिया जा रहा है। सरकार ने आंदोलनकारियों के पोस्टर दिवारों पर ऐसे चिपकाए हैं जैसे अंग्रेजी हुकूमत क्रांतिकारियों को आतंकवादी बताकर चिपकाया करती थी। जिन लोगों ने कभी कानून को माना ही नहीं वे लोग आज लोगों का कानून का पाठ पढ़ाने में लग गए हैं, जिन लोगों का देशभक्ति से दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा है वे ही लोग आज देश के सबसे देशभक्त बने घूम रहे हैं।
जिन लोगों पर तिरंगा को जलाने का आरोप है वे ही लोग आज तिरंगे के सबसे बड़े दीवाने बनाने का दावा कर रहे हैं। देश के लोगों से उनकी नागरिकता सिद्ध कराने की तैयारी मोदी सरकार कर रही है।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जहां देश पर रोजी-रोटी का बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है वहीं इस अराजकता के माहौल ने देश के भाईचारे का कबाड़ा कर दिया है। जो नौजवान अपने भविष्य को लेकर प्रयासरत होना चाहिए था उसे राजनीतिक दलों ने सीएए के विरोध और समर्थन में उलझा दिया है।
दरअसल सीएए का मुस्लिमों द्वारा विरोध तो अब कहने के लिए रह गया है। अब इस मुद्दे ने पूरी तरह से राजनीतिक रूप ले लिया है। अब जो भी हो रहा है यह राजनीतिक दलों की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। जहां कांग्रेस, सपा, बसा, राजद समेत दूसरे विपक्ष के दल सीएए का विरोध कर मुस्लिमों के साथ ही दलित व पिछड़ों की सहानूभूति बटोरने में लगे हैं, वहीं भाजपा सीएए को मुस्लिमों से जोड़ते हुए देश में बढ़ती जनसंख्या के लिए इस समुदाय को जिम्मेदार ठहरा रही है।
भाजपा का यह प्रयास है कि सीएए के माध्यम से हिन्दू वर्ग में यह संदेश दे दिया जाए कि देश में जितनी भी समस्याएं हैं उनके लिए मुस्लिम जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) में भाजपा ने दूसरे देशों से आए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्धों को तो लिया पर मुस्लिमों को नहीं लिया।
Police lathicharge on students agitating at Jamia Millia Islamia University
दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में आंदोलनरत विद्यार्थियों पर जिस तरह से पुलिस ने लाठीचार्ज किया, उनके बाथरूम में घुसने पर भी नहीं छोड़ा। छात्राओं पर लाठीचार्ज करने के साथ ही उनके साथ अभद्रता की गई है यह न केवल सत्ता पक्ष बल्कि देश के जिम्मेदार तंत्रों के लिए भी शर्मनाक है।
रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएए के विरोध में हुई हिंसा में पुलिस का बचाव कर अपनी एकतरफा नीति को उजागर कर दिया। उन्होंने आंदोलन में हुए लाठीचार्च के बारे में तो कुछ नहीं किया, बल्कि पुलिसकर्मियों का जांबाज बताते हुए उनके पक्ष में नारे लगवाए।
मोदी की यह नीति अंग्रेजी हुकूमत जैसी है। This policy of Modi is like English rule.
जैसे अंग्रेज पुलिस के बल पर देश राज कर रहे थे, वैसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पुलिस के बल पर जनता को डराने का काम कर रहे हैं (Narendra Modi is working to intimidate people on the strength of police)। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। यह बात खुद राजनेता भी कहते हैं। चुनाव में सभी दलों को जनता जर्नादन कहते हुए सुना जाता है। खुद मोदी भी चुनावी मंचों से इस तरह की भाषा बोलते हैं।
इधर सीएए का विरोध और समर्थन उधर पाकिस्तान में ननकाना साहेब गुरुद्वारे पर हमले के बाद बिगड़ा माहौल देश को सांप्रदायिकता तनाव की ओर ले जा रहा है। देश कहां जा रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिन संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्रों व बुद्धिजीवियों को देश और समाज की चिंता करते हुए नए भारत के निर्माण में लगना चाहिए था वे सब मिलकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में बंटकर देश को बर्बाद करने में लग गए हैं। स्थिति यह हो है गई कि देश के जिम्मेदार लोग जनता को जमीनी मुद्दों से भटकाकर भावनात्मक मुद्दों में उलझा दे रहे हैं। आए दिन किसान, बेरोजगार युवा और गृह ग्लेश के चलते पूरे परिवार तक के आत्महत्या करने की खबरें सुनने को मिल रही हैं। जाति-धर्म और वर्ग के आधार पर नफरत का जहर हमारे समाज में पूरी तरह से घोल दिया गया है।
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पूंजीपतियों के साथ ही संपन्न वर्ग ने एक रणनीति के तहत समाज में पैसे की इतनी अहमियत बढ़ा दी है कि समाज में रिश्ते-नाते, जिम्मेदारी, देश और समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य का एहसास लोगों में कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। लोग दौड़े जा रहे हैं उन्हें खुद ही नहीं पता है कि वे कहां जा रहे हैं ? देश के पूरे संसाधन और ऊर्जा बेकार के काम में लग रही है। देश में इस तरह का माहौल बन चुका है कि हर किसी को सत्ता चाहिए भले ही वह किसी भी रूप में हो। किसी भी कीमत पर मिली हो। कितना स्तर गिरकर भी मिली हो। त्याग, बलिदान और समर्थन देश के जिम्मेदार लोगों में दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है। हर कोई एक दूसरे को उपदेश देता घूम रहा है। जो लोग देश व समाज की चिंता करते वाले हैं वे यह समझ लें न केवल सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष में बैठे नेता भी देश व समाज के भले की सोचने का तैयार नहीं। सबको सत्ता दे दो और फिर वे जनता के खून पसीने की कमाई पर अय्याशी करते रहे। लगभग सभी राजनीतिक दलों में आर्थिक अपराधी बैठे हैं, जिनमें गलत को गलत और सही सही कहने का दम नहीं है।
सत्ता पक्ष अपनी सरकार बचाने और आने के लिए सब कुछ करने के लिए हर हथकंडा अपनाए हुए है तो विपक्ष अपना गला बचाने के साथ ही किसी भी तरह से फिर से सत्ता में आने के लिए बेचैन है। देश समाज और युवाओं के बारे में सोचने के लिए किसी के पास समय नहीं है।
देश में जो भी चल रहा है वह दिखावा प्रतीत हो रहा है। दिखाने और कहने को तो हर राजनीतिक दल के साथ ही नौकरशाह, सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग और आम आदमी भी अपने को देशभक्त दिखाने का प्रयास कर रहा है पर जमीनी हकीकत यह है कि देश में देशभक्ति और कर्त्तव्य नाम की कोई चीज रह नहीं गई है।
चरण सिंह राजपूत