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Muslim women and sports
भारत एक विकासशील राष्ट्र है एवं किसी भी देश के लिए लोकशक्ति व समानता का विशेष महत्व रहता है, इसमें स्त्री एवं पुरुष दोनों सम्मिलित हैं क्योंकि ये दोनों समाज के अपरिहार्य अंग हैं। यदि किसी भी देश को विकसित करना है तो सबसे पहले महिलाओं का विकास करना होगा, क्योंकि महिला ही समाज की जननी होती है। भारतीय संविधान में बिना लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों की व्यवस्था की गयी है। आधुनिक युग में विश्व में महिलाएँ राजनीति, प्रशासन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिक, खेल हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।
बात विशेष रूप से खेल की हो तो इसकी प्रकृति ही सार्वभौमिक है। यह जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। इस्लाम अच्छे स्वास्थ्य एवं क्रियाशीलता को प्रोत्साहित करता है तथा स्त्री व पुरुष दोनों को ही स्वस्थ जीवन जीने के लिए शारीरिक क्रियाकलापों व व्यायाम अपनाने को बढ़ावा देता है। हालांकि धर्म के कुछ पहलू हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि खेलों को कैसे खेला जाए। उदाहरण के लिए इस्लाम का पालन करते हुए स्त्री व पुरुष के एक साथ खेलने पर पाबन्दी है तथा उन्हें वातावरण व पहनावे का भी ध्यान में रखना होता है।
इस्लाम कहता है कि ऐसे लिबास न पहनो जिससे शरीर का कोई भाग नज़र आए। अर्थात पहनावे से अश्लीलता नहीं टपकनी चाहिए।
कई मुस्लिम देश ऐसे हैं, जहां महिलाएं हर क्षेत्र में सक्रिय हैं, लेकिन विश्व की दूसरी सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले, धर्म निरपेक्ष तथा गणतन्त्र भारत में उनकी स्थिति पिंजड़े में बन्द परिन्दे की क्यों?
देश भर में मुस्लिम महिलाओं को बेहद गहराई तक जड़ें जमाए बैठी असमानता और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। इससे न केवल महिलाओं के अधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है, बल्कि इस्लाम धर्म के बुनियादी सिद्धान्त और मूल्य भी इसमें दफन हो रहे हैं। सच्चाई यह है कि किसी दूर-दराज़ मुल्क में एक आदमी की तकलीफ़ या बेइज़्ज़ती क़ौम के दिल को हिला देती है, मगर अपने ही देश में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति पर ज़रा भी दिल नहीं पसीजता? एक-दो ज़ख़्म हों तो दिखाया जाए, यहां तो सारा वजूद ही छलनी है।
विश्व भर में स्त्रियों की खेलों में भागीदारी को लेकर विरोधी दृष्टिकोण तथा असहमति का सामना करना पड़ता है।
पवित्र कुरान में, सूरा-अन-नूर में कहा गया है कि एक औरत को उन पुरुष सम्बन्धियों के साथ बातचीत करने, साथ रहने की अनुमति है जिन्हें उससे विवाह करने की अनुमति न हा। निःसन्देह, इस्लाम में पुरुषों व स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त हैं। खेल वैज्ञानिकों ने यह जोर दिया है कि स्वास्थ्य व क्रियाशीलता स्त्रियों एवं पुरुषों दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है और इसे खेल-गतिविधियों के द्वारा ही प्रोत्साहित किया जा सकता है।
Main reasons for disappointing Muslim women's participation in sports
खेलों में सक्रिय भागीदारी के लिए, मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक व सांस्कृतिक प्रतिबन्धों के कारण कई कठिनाइयों व बाधाओं का सामना करना पड़ता है और व्यापक रूप से देखा जाए तो इन प्रतिबन्धों का न केवल मुस्लिम महिलाओं बल्कि अन्य सम्प्रदायों व वर्गों की महिलाओं को भी सामना करना पड़ता है। मुस्लिम महिलाओं के सम्बन्ध में स्थिति अधिक गम्भीर है।
खेलों में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी निराशाजनक होने के मुख्य कारण हैं -खेलों के लिए टीमों तथा क्लबों के द्वारा मर्यादित वेशभूषा की कोई व्यवस्था नहीं होती। महिलाओं के परिवार के सदस्य उनकी सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं। समाज भी महिलाओं के खेल-कूद में प्रतिभाग केा महत्व नहीं देता। परम्परागत सोच अभी भी व्यक्तियों के मन-मस्तिष्क पर हावी हैं। आर्थिक पाबन्दियाँ भी इस उद्देश्य में बाधा उत्पन्न करती हैं। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण भी बालिकाओं के खेल को एक कैरियर विकल्प के रूप में चुनने में सन्देह बना रहता है व खेलों में प्रतिभाग को लेकर बालिकाओं के मन में एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी बना रहता है। आत्म विश्वास की कमी, अत्यधिक चिन्ता, प्रोत्साहन की कमी आदि ऐसे कारण हैं जो उनके सफल खिलाड़ी बनने के मार्ग को बाधित करते हैं।
आवश्यकता इस बात की है कि खेल व शारीरिक शिक्षादाताओं को धार्मिक विभिन्नता का आदर करना चाहिए। यह एक चिन्ताजनक बात है कि मुस्लिम महिलाओं को प्रशिक्षकों तथा चयनकर्ताओं द्वारा प्रायः नजरन्दाज किया जाता है तथा भेदभाव किया जाता है।
धार्मिक व सांस्कृतिक बन्धन मुस्लिम महिलाओं के खेलों में प्रतिभाग को और भी कठिन बना देता है। इस स्थिति के लिए मुस्लिम धार्मिक विश्वास को दोष नहीं दिया जा सकता। इस्लाम स्वास्थ्य को पुरुष व स्त्री दोनों के लिए प्रोत्साहित करता है। आवश्यकता है लोगों की मानसिकता को बदला जाए।
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Assistant Professor
Deptt. of Physical Education
Khwaja Moinuddin Chishti Urdu Arabi- Farsi University, Lucknow.
मुस्लिम महिलाओं के लिए खेल के लिए मर्यादित वेशभूषा, सुरक्षा की भावना तथा आर्थिक सहयोग कुछ ऐसे कदम हैं जो उनके खेलों में प्रतिभाग को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। सानिया मिर्जा, लैला अली, हसीबा बुलमर्का, रानिया-अल-वानी आदि अनेक मुस्लिम महिला खिलाड़ी हैं जो अन्य मुस्लिम महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। स्त्री-पुरूष के आधार पर भेदभाव किया जाना कुदरती नियमों के विरूद्ध है। तभी तो शायर राम मेश्राम कहते हैं कि -
‘‘क़ुदरत के तराज़ू में बराबर हैं सभी लोग,
महसूस अलग से कोई हस्ती नहीं होती।’’
डॉ. मो. शारिक,
असिस्टेंट प्रोफेसर, शारीरिक शिक्षा विभाग,
ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय, लखनऊ।