नदियों में लहू घुल चुका है/ ज़हर हवा में नहीं/ अबकी ज़हर लहू में घुल चुका है

hastakshep
07 Mar 2021
नदियों में लहू घुल चुका है/ ज़हर हवा में नहीं/ अबकी ज़हर लहू में घुल चुका है नदियों में लहू घुल चुका है/ ज़हर हवा में नहीं/ अबकी ज़हर लहू में घुल चुका है

नित्यानंद गायेन

पुलिस ने दंगाइयों को नहीं

एक बूढ़ी औरत को मार दिया

वो केवल बूढ़ी औरत नहीं थी

पुलिस वालों ने उसे एक मुसलमान की माँ पहचान कर मारा था

गलती उन सिपाहियों की नहीं थी

उन्होंने सत्ता के आदेश का पालन किया

उन्हें आदेश था

कपड़े देखकर पहचान करो दुश्मनों की

किंतु बूढ़ी माँ के कपड़े से कैसे पहचान लिया

सरकारी सिपाहियों ने उसका मज़हब ?

ज़हर हवा में नहीं

अबकी ज़हर लहू में घुल चुका है

सत्ता का धंधा का सेंसेक्स शिखर पर है

नफ़रत का मुनाफ़ा सत्ता को मजबूती देता है

नफ़रत की खेती करने वालें नहीं समझते

आत्महत्या करने वाले किसान का दर्द

दंगों के सौदागर इंसान की पीड़ा नहीं समझते

पर सवाल हम पर है

हम तो समझदार मान रहे थे खुद को

हम क्यों फंस गए इनकी चाल में ?

एक कवि ने कहा मुझसे -

एक वक्त था जब मैंने तुम सबको

अपना मान लिया था

इस मुल्क को धरती का सबसे सुंदर बगीचा मान लिया था

पर अब वक्त आ गया है

कह दूं कि

दो अजनबी कभी साथ नहीं चल सकते

यहां की धूप में अब नमी नहीं बची है

हवा में मानव मांस की दुर्गंध फैल चुकी है ।

नदियों में लहू घुल चुका है

नित्यानन्द गायेन Nityanand Gayen
नित्यानन्द गायेन Nityanand Gayen



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