नक्षत्र साहित्य और नक्षत्र साहित्यकार

नक्षत्र साहित्य और नक्षत्र साहित्यकार

हिंदी में ऐसे लेखक-आलोचक रहे हैं, और आज भी हैं, जो कभी सत्ता की जनविरोधी नीतियों और जुल्म के खिलाफ नहीं बोलते हैं और नही लिखते हैं। इनमें से अधिकतर पुरस्कार पाते  रहे हैं। इनको हिंदी लेखकों की दुनिया में सबसे बड़े ओहदे पर रखा जाता है। इस तरह के लेखकों की देश में पूरी पीढ़ी तैयार हुई है।

इस तरह के लेखकों की सैकड़ों सालों में परंपरा विकसित हुई है। संस्कृत साहित्य तो इस तरह के लेखक-आलोचकों से भरा पड़ा है। यही परंपरा हिंदी में भी विकसित हुई है।ये ही हिंदी में साहित्य के सितारे हैं। संस्कृत वाले श्रृंगार रस में डूबे रहते थे आधुनिक लेखक साहित्य में डूबे रहते हैं। इस तरह का साहित्य पहली परंपरा, दूसरी परंपरा, तीसरी-चौथी परंपरा आदि में इफरात में मिल जाएगा। इस तरह के लेखन को 'नक्षत्र साहित्य' और लेखक को 'नक्षत्र साहित्यकार' कहना समीचीन  होगा।

'नक्षत्र' का अर्थ

'नक्षत्र' माने जिसका कभी क्षय नहीं होता। हिंदी का यही 'नक्षत्र साहित्य' इन दिनों साहित्यिक वर्चस्व बनाए हुए है।

हमें 'गोदी साहित्यकार' नजर क्यों नहीं आता

मीडिया जब समाज और सच की अनदेखी करता है तो आप उसे तरह -तरह की गालियां देते हैं। लेकिन कभी आप 'नक्षत्र साहित्यकार' की आलोचना क्यों नहीं करते ? दिलचस्प है 'गोदी मीडिया' नजर आता है लेकिन 'गोदी साहित्यकार' नजर नहीं आता। 'गोदी साहित्यकार' में अचानक महान गुणों की खोज कर लेते हैं और वैसे ही प्रशंसा करते हैं जैसी संस्कृत काव्यशास्त्री करते थे। यही बुनियादी वजह है हमारे यहां शिक्षितों में 'नक्षत्र बुद्धिजीवी' इफरात में मिलते हैं।

लेखक के नजरिए की कसौटी क्या है

लेखक के नजरिए की कसौटी न तो पुरस्कार हैं और और नहीं मरने पर गाए जाने वाले गीत-प्रशंसा लेख हैं। बल्कि सम-सामयिक समस्याओं पर उसके नजरिए की अभिव्यक्ति ही कसौटी है।

सवाल करो हिंदी के तथाकथित महान लेखक समसामयिक समस्याओं पर चुप क्यों रहते हैं ? जनता की तकलीफें उनको विचलित या बोलने के लिए उद्वेलित क्यों नहीं करतीं ?

यह सवाल बार-बार पूछो कि साहित्य अकादमी पुरस्कार-ज्ञानपीठ पुरस्कार-व्यास सम्मान आदि पुरस्कार प्राप्त लेखकों ने सरकारों की किस नीति की आलोचना की? किस नीति पर, खासकर नव्य-आर्थिक उदारीकरण की नीति पर कितना आलोचनात्मक लिखा ?

नीतियों से कन्नी काटना, आंखों के सामने हो रहे जुल्मों की अनदेखी करना हिंदी के अधिकांश लेखकों-आलोचकों की आदत है। इसने हिंदी में शिक्षितों का 'नक्षत्र समाज' निर्मित किया है। 'नक्षत्र समाज' माने अपरिवर्तित समाज।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

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