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रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मिला फ़िल्म ‘आरआरआर’ के गीत ‘नाटू नाटू’ को ऑस्कर पुरस्कार?

Natu Natu Oscars and the politics of cultural hegemony. ऑस्कर का लक्ष्य है अमरीका की सांस्कृतिक शक्ति और वर्चस्व को बरकरार रखना। उसकी सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का परचम लहराना।

रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मिला फ़िल्म ‘आरआरआर’ के गीत ‘नाटू नाटू’ को ऑस्कर पुरस्कार?

natu natu oscars and the politics of cultural hegemony

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नाटू नाटू ऑस्कर और सांस्कृतिक वर्चस्व की राजनीति

 

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इस बार फ़िल्म ‘आरआरआर’ के गीत ‘नाटू नाटू’ को सन् 2023 के मौलिक गीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिला है। भारतीय सिनेमा जगत और ख़ासकर तेलुगू फ़िल्म उद्योग को इससे बल मिला है।

 

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रविवार को डॉल्बी थियेटर (Dolby Theatre) के मंच पर जब संगीतकार एम एम कीरावानी (Composer M.M. Keeravani) ने इस गीत को पेश किया तो दर्शक समूह में आनंद की लहर दौड़ गई।

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मंच पर पुरस्कार लेते हुए संगीतकार कीरावानी ने कहा कि वह बचपन से मज़दूरों के गाने सुनकर बड़ा हुआ है और आज इस मंच पर ऑस्कर उनके ही कारण ग्रहण कर रहा हूँ। ऑस्कर के अलावा इस गीत को गोल्डन ग्लोब और क्रिटिक चॉयज पुरस्कार भी मिला है।

 

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जब यह गीत मंच पर पेश किया गया तो राहुल सिप्लीगुंज और के. भैरव ने अद्भुत नृत्य कला का प्रदर्शन किया। उनके नृत्य में ऊर्जा और पैरों के विलक्षण कलात्मक प्रदर्शन ने सभी दर्शकों का मन मोह लिया। जबकि फ़िल्म ‘आरआरआर’ में नृत्य किया है जूनियर एनटीआर और रामशरण ने। इन दोनों ने ऑस्कर के मंच पर गाने के साथ नाचने से इंकार कर दिया, और कहा कि उनके पास अभ्यास के लिए बहुत ही कम समय है और वे ऑस्कर के मंच पर सहज महसूस नहीं कर पाएँगे। ‘नाटू नाटू’ गीत को लिखा है चन्द्रबोस ने।  इसे स्वर दिया है काल भैरव और राहुल सिप्लीगुंज ने।

 

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‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के गीत ‘जय हो’ को मिला था पहला अकादमी पुरस्कार

 

यहाँ उल्लेखनीय है कि हिन्दी फ़िल्म डैनी बॉटल निर्देशित ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के गीत ‘जय हो’ ('Jai Ho' song from 'Slumdog Millionaire') को पहला अकादमी पुरस्कार मिला था। इस गीत को गुलज़ार ने लिखा था और संगीत ए. आर. रहमान का था।

 

कितने समय में बना नाटू नाटू’ गाना

 

‘नाटू नाटू’ गाने को बनाने में (Natu Natu Song Making) उन्नीस महीने लगे। इसमें विभिन्न क़िस्म की धुनों का सम्मिश्रण है। यह गाना एक ही संगीत धुन की प्रस्तुति नहीं है।

 

‘नाटू नाटू’ गीत की मुख्य अंतर्वस्तु व्यक्ति की निजी शक्ति, संघर्ष को तो अभिव्यंजित करती है साथ ही एक अन्य चीज को व्यक्त करती है वह है तुमको जो करना है करो, दूसरों की आलोचना मत करो। सघन ऊर्जा के बहाने 274 सैकेण्ड का यह गीत दर्शकों-श्रोताओं को बांधता है, साथ ही यह संदेश देता है कि गाना सुनो आनंद लो, समर्पण करो, विश्वास करो और सिर्फ़ नृत्य करो, सोचना बाद में। यही इस गाने में अप्रत्यक्ष ढंग से संप्रेषित होने वाली राजनीति भी है जो बेहद चिन्ताजनक है। संदेश यह है सोचो मत आनंद लो।

 

‘समर्पण करो, विश्वास करो और सोचो मत’ यह संदेश ही है जिसने इस दौर में स्थानीय और भूमंडलीय स्तर पर चल रहे ‘सूचना-मीडिया प्रवाह’ के साथ अपनी संगति बिठाकर इस गीत ने व्यापक जनप्रियता हासिल की है।

 

यूक्रेन के राष्ट्रपति भवन में हुई थी फ़िल्म ‘आरआरआर’ शूटिंग

 

एक अन्य ग्लोबल संदर्भ है यूक्रेन का। यूक्रेन में फ़िल्म ‘आरआरआर’ और इस गीत की फ़ाइनल शूटिंग अगस्त 2021 में हुई थी। इस फ़िल्म के गीत का चयन करते समय निर्णायक मंडल के दिमाग़ में यूक्रेन-रूस युद्ध का संदर्भ जरूर रहा होगा। क्योंकि इस फ़िल्म की शूटिंग ख़त्म होने के कुछ ही महीने बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। जो लोग सोच रहे हैं कि ऑस्कर ने सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत के कारण पुरस्कार दिया है वे ग़लतफ़हमी के शिकार हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध संदर्भ सबसे बड़ा कारक है। संदेश एक ही है सोचो मत, चुप रहो, आनंद लो।

 

जानिए क्यों दिए जाते हैं ऑस्कर पुरस्कार?

 

सवाल यह उठता है ऑस्कर पुरस्कार क्यों दिए जाते हैं ? वह चाहते हैं आधुनिक परंपरागत कला रूपों का फ़िल्म उद्योग अधिकतम उपयोग करे। अमरीका के प्रति वफ़ादारी बनी रहे। कला का व्यापार के लिए जमकर उपयोग हो। जिससे फ़िल्में करोड़ों का व्यापार करें।

 

ऑस्कर की प्रतिस्पर्धा में सांस्कृतिक शक्तियाँ शामिल हैं। उनकी जटिल और संश्लिष्ट प्रतिस्पर्धा के गर्भ से ही पुरस्कार के लिए चयन किया जाता है, यह संभव है कि ऑस्कर की दौड़ में शामिल लोग सांस्कृतिक शक्तियों की भूमिका से अनभिज्ञ हों। लेकिन असल में पुरस्कार की प्रक्रिया में किस तरह का सांस्कृतिक संघर्ष चला, उसे जानने में कई साल लग जाते हैं।

 

इसके अलावा ऑस्कर पुरस्कार फ़िल्म के आने वाले सौंदर्य मानकों को भी निर्धारित करता है। आमतौर पर ऑस्कर में वे ही फ़िल्में चुनी जाती है जिनमें पीढ़ियों का संघर्ष अभिव्यंजित हो। उसमें नया तत्व पुराने को अपदस्थ करता नज़र आता है। इसमें नए स्टार सामने आते हैं और कुछ दशकों के बाद वे ही बड़े स्टार के रूप में फ़िल्म जगत में प्रतिष्ठा अर्जित करते हैं।

 

ऑस्कर का लक्ष्य क्या है

 

ऑस्कर पर श्वेत नस्लवादी राजनीति लंबे समय से वर्चस्व बनाए हुए है। बार-बार ऑस्कर से पुरस्कृत फ़िल्मों के प्रसंग में नस्लवादी नज़रिए के सवाल उठे हैं।

 

उल्लेखनीय है ऑस्कर में समय-समय पर केन्द्रीय मसले बदलते रहे हैं। सन् 1930 के दशक में जब सारी दुनिया भयानक मंदी से गुजर रही थी, ऑस्कर के केन्द्र में मज़दूर आंदोलन था और उस आंदोलन को बदनाम करने में ऑस्कर ने सक्रिय भूमिका निभायी। उस ज़माने में मज़दूरों ने ऑस्कर समारोह के बहिष्कार के लिए आंदोलन किए।

 

असल में ऑस्कर पुरस्कार का बुनियादी अर्थ है कि सांस्कृतिक शक्ति किसके पास है ? यह शक्ति किनके पास रहनी चाहिए ? इन दो सवालों पर ऑस्कर बार- बार नए तरीक़े, नए मसले और नए रुपों का इस्तेमाल करता रहा है। ऑस्कर का लक्ष्य है अमरीका की सांस्कृतिक शक्ति और वर्चस्व को बरकरार रखना। उसकी सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का परचम लहराना।

 

कलाओं में क्रम नहीं होता। रैंक नहीं होती। छोटे-बड़े का भेद नहीं होता। लेकिन हॉलीवुड यह चाहता है कि उसका सांस्कृतिक वर्चस्व और प्रतिष्ठा सबसे ऊपर हो। उसके लिए ऑस्कर हर बार नई लक्ष्मण रेखा खींचता है। नए मानक पेश करता है।

 

जगदीश्वर चतुर्वेदी

 

Natu Natu Oscars and the politics of cultural hegemony

 

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