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एमसीसी के बहाने अमेरिका का सैन्य अड्डा बनता नेपाल | Nepal becomes a military base of America
वामपंथी वैचारिक जगत (Leftist ideological world) में आमतौर पर अब यह बात मानी जाने लगी है कि पूँजीवाद के नव उदारवादी समय में दुनिया एक नए साम्राज्यवादी युग में प्रवेश कर गयी है. पूँजीवाद (Capitalism) की तरह साम्राज्यवाद (Imperialism) भी लगातार अपने कलेवर, रूप-रंग में बदलाव ला रहा है. लगभग एक शताब्दी पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में पहले की तरह उपनिवेश बनाकर राज करने से अलग अब मौजूदा दौर में दुनिया का सामना एक ऐसे यथार्थ से हो रहा है, जिसे फासीवादी अमेरिका “एमसीसी अर्थात मिलेनियम चैलेंज कॉम्पैक्ट” (MCC ie Millennium Challenge Compact) के रूप में परिभाषित करता है. जैसे-जैसे पूँजीवाद के टिके रहने का संकट बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे कहीं विकास के नाम पर तो कहीं आतंकवाद से लड़ने के नाम पर अमेरिकी साम्राज्यवाद (American imperialism) अपने नए-नए मोहरे खड़ा कर इस रणनीति पर आगे बढ़ रहा है.
इसी की कड़ी में अब नेपाल का एक नया नाम भी जुड़ गया है. और इस पूरी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम किया है, सिंह दरबार पर काबिज कैश माओवादियों ने. ये उसी कम्युनिस्ट पार्टी की शाखाओं-प्रशाखाओं से निकलकर नेपाल की राज्यसत्ता पर वर्चस्व जमाने में सफल हुए हैं, जिसका जनाधार व आख्यान उन्होंने अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ ७० के दशक के झापा सशस्त्र विद्रोह व एक दशक तक चले माओवादी जनयुद्ध (१९९६-२००६) के दौरान इसके खिलाफ लगातार विषवमन करके खड़ा किया था.
नेपाल को शाश्वत काल से ही स्विटजरलैंड बनाने के लिए भूमिगत काल में जनमानस के बीच अपनी साम्राज्यवाद विरोधी जो छवि नेपाल के माले-एमाले से लेकर माओवादी-माओवादी एकता केंद्र उर्फ़ बन्दूकवादी पार्टियों ने बनायी थी, वह कब की कैश माओवादी विमर्श में विकसित होते हुए पतित हो चुकी है.
US imperialist intervention in Nepal
वैसे तो नेपाल में अमेरिका का साम्राज्यवादी हस्तक्षेप नया नहीं है. सन १९५० के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन के जमाने से ही विकास के नाम पर लाखों रुपयों के अनुदान देने की शुरुआत से लेकर फॉरेन ऐड के नाम पर अब तक मिल रहा अरबों खरबों डॉलर का सालाना बजट या दूसरे स्तरों में नेपाली माओवादी विद्रोह का दमन (Suppression of Nepalese Maoist insurgency) करने के लिए तत्कालीन शाही नेपाली सेना को ट्रेनिंग व गोला बारूद से लैस करने तक. परन्तु एमसीसी के बहाने नेपाल में अभी जो प्रस्तावित है, यदि वह लागू हो गया तो उसका असर दूरगामी रूप से अभूतपूर्व होगा. यह नेपाल को समूचे तौर पर एक राष्ट्र-राज्य व समाज के रूप में नेस्तनाबूद कर देने वाला होगा.
मिलेनियम चैलेंज कॉम्पैक्ट अर्थात एमसीसी के बारे में जानिए | Know about Millennium Challenge Compact ie MCC
वैसे तो एमसीसी का जन्म २००२ में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (US National Security Council) की देखरेख में वाशिंगटन डीसी में हुआ था.
२००३ में अमेरिकी संसद में इस विषय से सम्बंधित कानून पास करते समय व २००४ में इसे विधिवत लागू करते हुए उस समय इसके लक्ष्य निर्धारित करते हुए कहा गया था कि इसका मूल उद्देश्य संसार के गरीब, अर्द्धविकसित व अल्प विकसित मुल्कों में विकास निर्माण (दुर्गम स्थानों में सड़क-रेल निर्माण करने व यातायात के नेटवर्क बनाने तथा उर्जा के स्रोतों यथा पानी से बिजली उत्पादन करने व न्यूक्लियर स्रोतों का दोहन इत्यादि) करना है.
उत्तरोत्तर आगामी सालों में इसके उद्देश्यों में आतंकवाद को ख़त्म करना भी हो गया.
नेपाल में इसका आगमन एक ऐसे दौर में हुआ, जबकि सत्ता में नेपाली कांग्रेस के वर्तमान मुखिया शेरबहादुर देउबा काबिज थे, जो नेपाल में अमेरिकन दलाल के रूप में विख्यात हैं. वैसे भी नेपाली कांग्रेस को सदा से ही पूँजीवादी नवउदारवाद की प्रबल समर्थक माना जाता रहा है.
देउबा सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री ज्ञानेन्द्र बहादुर कार्की ने २०१७ के मध्य में नेपाल की तरफ से राजधानी वाशिंगटन डीसी में इस समझौते में बाकायदा हस्ताक्षर किया था. इसके कुछ महीने बाद ही नेपाल में आम चुनाव होने वाले थे और बिलकुल इसी समय कैश माओवादी अपनी संसदीय यात्रा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अपने बिखरे हुए संस्करणों को (झापाली उर्फ़ माले-एमाले और माओवादी-एकता केंद्र को) एक जगह इकट्ठा करके सितम्बर-अक्टूबर, २०१७ में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) में सुसंगठित कर रहे थे.
गौरतलब है कि नेपाल में इस नयी बनी सरकारी कम्युनिस्ट पार्टी (और डबल नेकपा भी क्यूंकि नेपाल के चुनाव आयोग में १९४९ में अस्तित्व में आई नेपाल की पहली कम्युनिस्ट पार्टी अर्थात नेकपा जो आज तक उसमे रजिस्टर्ड है) के चुनाव में बहुमत पाने के बाद इसने नेपाली कांग्रेस द्वारा विरासत में हासिल एमसीसी समझौते के विरोध में तब एक शब्द भी नहीं कहा था.
एमसीसी अब अपने पाँव पसारने को तैयार है.
भारत में नरेन्द्र मोदी के दोबारा सत्ता में आगमन के बाद से ही वह नेपाल को लॉचिंग पैड बनाकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने करने को प्रयासरत है. नेपाली संसद में अगले कुछ हफ़्तों में इसको पेश किया जाना है. और यह सब कुछ किया जा रहा है नेपाल को गरीबी से मुक्ति दिलाने और समृद्धि के रास्ते पर ले जाने के नाम पर, जो कि कैश माओवाद का बहुप्रचारित स्लोगन है.
तथाकथित कम्युनिस्टों की यह समृद्धि की ही व्याख्या तो है, जो देश भर में इसके खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों को फौजी बूटों तले कुचलकर जनता पर बलात लादी जा रही है.
प्रधानमंत्री केपी ओली फरमातें है कि एमसीसी के संसद में पास हो जाने के बाद नेपाल विकास के एक नए युग में प्रवेश कर जाएगा, जबकि उनको बखूबी पता है कि उनकी गुटों में विभाजित और कहने को कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर व्यापक जनदबाव के कारण तीव्र विरोध के स्वर मौजूद हैं. वहीँ दूसरी ओर जहाँ कैश माओवाद के प्रणेता प्रचंड एक तरफ तो वेनेजुएला में २०१९ में हुए अमेरिकी तख्तापलट का विरोध करने का प्रहसन करते हैं, पर एमसीसी के मामले पर खामोशी अख्तियार कर लेते हैं.
It will become a constitutional unit after the MCC passes the Nepali Parliament.
एमसीसी के नेपाल पर पड़ने वाले दुष्परिणामों (The consequences of MCC on Nepal) के बहुत सारे आयाम हैं, जिस पर चर्चा फिर कभी. यहाँ पर इसके जो सबसे महत्वपूर्ण पक्ष हैं, उनसे से पहला यह कि एमसीसी के नेपाली संसद में पास हो जाने के बाद यह एक संविधानिक ईकाई हो जायेगी. इसका अर्थ यह है कि एमसीसी नेपाली संसद और सरकार के नियंत्रण में नहीं रहेगी और न ही इस पर नेपाली कानून लागू होगा. एमसीसी पूरी तरह से अमेरिकी कानून के अधीन होगी और अमेरिकन सरकार के फैसले से बंधी होगी. भबिष्य में यदि इसके विरोध में नेपाल में आवाजें उठती हैं, तो नेपाली सुरक्षाबल इसको सुरक्षित करने को लेकर कृतसंकल्प होंगे.
दूसरी जरुरी यह है कि एमसीसी प्रोजेक्ट पर नेपाल की संसद को अनुमोदन मात्र करना है. भारत को इस समझौते में बराबर का एक पार्टनर बनाया गया है. इसलिए इसे इंडो पैसिफिक रीजन (Indo pacific region) के अधीन रखा गया है, जिसके तहत नेपाल, इंडोनेशिया व नेपाल आदि देश आते हैं (गौरतलब है कि श्रीलंका पहले ही एमसीसी समझौते से पैर वापस खींच चुका है.) वैसे भी यह बात जगजाहिर है कि नेपाल के ‘बड़े भाई’ भारत ने दक्षिण एशिया में अपने पूर्वजों ब्रिटिश इम्पीरियल इंडियन स्टेट की औपनिवेशिक विरासत अपना रखी है. गौरतलब है कि १९४७ के पहले तक नेपाल दिल्ली का संरक्षित राज्य (प्रोटेक्टरेट स्टेट) हुआ करता था. इसीलिए भारत का एमसीसी को लेकर नेपाल पर इतना दबाव बढ़ा रहा है. (देखें, पवन पटेल (२०१९), द मेकिंग ऑफ़ ‘’कैश माओइज्म’ इन नेपाल: ए थबांगी पर्सपेक्टिव, आदर्श बुक्स: नई दिल्ली, पेज न. ६०).
यह अनायास नहीं है कि इसी समय लिपुलेक, लिम्पियाधुरा व कालापानी को लेकर भारत द्वारा आधिकारिक नक्शा जारी किया गया और बिलकुल उसी समय एमसीसी समझौते को संसद से पास कराने के लिए जनता के देशव्यापी विरोध के बावजूद इसके पक्ष में वकालत की जा रही है.
इसके अलावा एमसीसी के कामकाज में नेपाली सरकार का कोई दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. यदि भविष्य में नेपाली सरकार को कोई प्रश्न भी करना हो तो उसे काठमांडू स्थित अमेरिकी दूतावास में अर्जी देनी होगी. साथ ही नेपाल को समृद्धिशाली बनाने वाली इस परियोजना में सभी कर्मचारी अमेरिका नियुक्त करेगा और ये सभी अमेरिकी मूल के होंगे या अमेरिका से प्रशिक्षित हुए होंगे. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इसके नेपाल में लागू हो जाने के बाद यहाँ तात्कालिक तौर पर ५००० से लेकर १०,००० अमेरिकी सेना तैनात हो जायेगी. अमेरिकी सेना की ये टुकड़ियां नेपाल के तीन जिलों में यथा भारतीय सीमा से सटे चितवन, पाल्पा जिलों और चीन से सटे मुस्तांग जिले में तैनात रहेंगी. यहाँ से वे नेपाल में सड़क-रेल निर्माण व उर्जा दोहन के रूप में बिजली उत्पादन करने व न्यूक्लियर उर्जा के लिए यूरेनियम प्रशोधित करने के लिए आवश्यक कामकाज में सहयोग करेंगी. साथ ही अमेरिकी सेना के खर्च का जिम्मा भी नेपाली सरकार को उठाना पड़ेगा. चीन के तिब्बत से सटे मुगू जिले में अवस्थित रारा झील के किनारे हथियारों के भंडारण का एक बड़ा गोदाम बनाया जाएगा.
नेपाल में एमसीसी की परियोजना पूरी करने की वैसे तो अवधि पाँच साल की रखी गयी है. लेकिन एक बार परियोजना संपन्न हो जाने के बाद भी अमेरिकी सेना नेपाल में यथावत बनी रहेगी.
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लेखक स्वयं भूकवि हैं, परन्तु इलाहाबाद व जेएनयू से उनकी ट्रेनिंग एक राजनैतिक समाजशास्त्री के रूप में हुई है. नेपाल पर उनकी दो किताबें यथा “द मेकिंग ऑफ़ ‘कैश माओइज्म’ इन नेपाल: ए थबांगी पर्सपेक्टिव” (२०१९) और “एक स्वयं भू कवि की नेपाल डायरी” (२०२०) प्रकाशित हैं. लेख में व्यक्त किए गए विचार, अन्य लेखों की तरह लेखक के निजी विचार हैं।
नेपाली अखबारों को पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि गरीबी भुखमरी से मुक्ति दिलाने, आंतकवाद से लड़ने व अपनी प्रभुता को एशिया में फिर से स्थापित करने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवाद एमसीसी के कलेवर में पेश हुआ है. चीन को घेरना उसके मुख्य एजेंडे में है और यह नेपाल में अमेरिकी सेना का बेस स्थापित करके ही संभव है.
वैसे भी संसार में जहाँ कहीं भी भूतपूर्व वाम बन्दूकवादी ही अमेरिकी रणनीति के चारे हुआ करते हैं. नेपाल के कैश माओवादी भी उसी कड़ी के आवश्यक हिस्से हैं. वह दिन दूर नहीं जबकि नेपाल की स्थिति भी सीरिया या रूवान्डा सरीखी हो जायेगी, जहाँ अमेरिकी साम्राज्यवाद का कहर बरसों से जारी है. साथ ही यह समझौता नेपाल की बची खुची सम्प्रभुता व अखंडता भी ख़त्म कर देगा.
डॉ. पवन पटेल
लेखक कवि व राजनैतिक समाजशास्त्री हैं. नेपाल पर उनकी दो किताबें “द मेकिंग ऑफ़ ‘कैश माओइज्म’ इन नेपाल: ए थबांगी पर्सपेक्टिव” (२०१९) और “एक स्वयं भू कवि की नेपाल डायरी” (२०२०) प्रकाशित हैं. लेख में व्यक्त विचार अन्य लेखकों की तरह लेखक के ही निजी विचार हैं।