अनुसंधान जहाजों के रखरखाव लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने किया नया करार

hastakshep
02 Jun 2022
अनुसंधान जहाजों के रखरखाव लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने किया नया करार अनुसंधान जहाजों के रखरखाव लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने किया नया करार

New agreement of the Ministry of Earth Sciences for the maintenance of research ships

नई दिल्ली, 02 जून 2022: भविष्य की जरूरतों एवं अर्थव्यवस्था में समुद्री संसाधनों की भागीदारी (participation of marine resources in the economy) बढ़ाने के लिए भारत सरकार का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ब्लू इकोनॉमी नीति ('Blue Economy' policy) पर कार्य कर रहा है।

ब्लू इकोनॉमी की संकल्पना क्या है? What is the concept of Blue Economy?

‘ब्लू इकोनॉमी’ की संकल्पना सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के लिए महासागरीय संसाधनों की खोज एवं उनके समुचित उपयोग के लिए आवश्यक अनुसंधान एवं विकास से जुड़े प्रयासों पर आधारित है। समुद्री अनुंसधान में अत्याधुनिक तकनीक से लैस जहाजों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और इन जहाजों के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए इनके विशिष्ट रखरखाव (Vessel Management) की आवश्यकता होती है।

एक नयी पहल के अंतर्गत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने अपने सभी छह अनुसंधान जहाजों के संचालन, रखरखाव, कार्मिक आवश्यकता, खानपान और साफ-सफाई के लिए मैसर्स एबीएस मरीन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, चेन्नई (M/s ABS Marine Services Private Limited, Chennai) के साथ करार किया है। इससे संबंधित अनुबंध पर हस्ताक्षर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन और मंत्रालय तथा एबीएस मरीन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में किए गए हैं।

यह कदम सरकार की कारोबारी सुगमता पहल और सरकारी अनुबंधों में निजी क्षेत्र की भागीदारी के अनुरूप बताया जा रहा है।

इस करार के अंतर्गत छह अनुसंधान जहाजों का रखरखाव शामिल है, जिनमें ‘सागर-निधि’ (Sagar-Nidhi), ‘सागर-मंजूषा’ (Sagar-Manjusha), ‘सागर-अन्वेषिका’ (Sagar-Anveshika) और ‘सागर-तारा’ का प्रबंधन (Sagar-Tara) राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई करता है। जबकि, सागर-कन्याअनुसंधान जहाज का प्रबंधन (Management of 'Sagar-Kanya' research ship) नेशनल सेंटर फॉर पोलर ऐंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर), गोवा और ‘सागर-संपदा’ जहाज का प्रबंधन सेंटर फॉर मरीन लिविंग रिसोर्सेज ऐंड इकोलॉजी (सीएमएलआरई), कोच्चि द्वारा किया जाता है।

इस संबंध में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी बयान में अनुंसधान जहाजों को देश में प्रौद्योगिकी प्रदर्शन, समुद्री अनुसंधान तथा अवलोकन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया गया है।

मंत्रालय ने कहा है कि अनुंसधान जहाजों ने हमारे महासागरों और इसके संसाधनों के बारे में ज्ञान बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय इसरो, पीआरएल, एनजीआरआई, और अन्ना विश्वविद्यालय जैसे अन्य अनुसंधान संस्थानो के लिए राष्ट्रीय सुविधा के रूप में अनुसंधान जहाजों का विस्तार कर रहा है।

नई जहाज प्रबंधन सेवाओं की मदद से, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का लक्ष्य लागत बचाने के साथ-साथ नवीन, विश्वसनीय और लागत प्रभावी तरीकों के माध्यम से समुद्री बेड़े की उपयोगिता में वृद्धि करना है।

इस अनुबंध पर हस्ताक्षर तीन साल की अवधि में लगभग 142 करोड़ रुपये की राशि के लिए किए गए हैं। इस अनुबंध के अंतर्गत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसंधान जहाजों और उन पर लगी उच्च प्रौद्योगिकी से लैस वैज्ञानिक उपकरणों एवं प्रयोगशालाओं का संचालन और रखरखाव किया जाएगा।

मंत्रालय के वक्तव्य में बताया गया है कि मैसर्स एबीएस मरीन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी विभिन्न एजेंसियों के साथ पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से  संबंधित सभी तौर- तरीकों के लिए संपर्क का एकल बिंदु होगी। इसका दुनिया भर में समान सेवा प्रदाताओं और शिपिंग एजेंटों के साथ बेहतर समन्वय है, जो इसे जहाज उपयोग और इसके कुशल संचालन के क्षेत्र में अत्यधिक प्रभावशाली बनाता है।

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