Advertisment

भैंस की उन्नत प्रजातियों के विकास में मददगार हो सकता है नया आनुवंशिक अध्ययन

author-image
hastakshep
26 Sep 2020
भैंस की उन्नत प्रजातियों के विकास में मददगार हो सकता है नया आनुवंशिक अध्ययन

Advertisment

New genetic studies may be helpful in the development of advanced species of buffalo

Advertisment

नई दिल्ली, 25 सितंबर (इंडिया साइंस वायर):भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन की भूमिका (Role of Animal Husbandry in Indian Economy) अहम मानी जाती है और पालतू पशुओं में भैंस का महत्व सबसे अधिक है। देश में होने वाले कुल दूध उत्पादन में भैंस से मिलने वाली दूध की हिस्सेदारी (Buffalo milk contributes to the total milk production in the country) लगभग 55 प्रतिशत है। इसके अलावा, मांस उत्पादन और बोझा ढोने के लिए भी भैंस का उपयोग बड़े पैमाने पर होता है। भैंस के महत्व (Importance of Buffalo) को देखते हुए वैज्ञानिक इसकी उन्नत किस्मों के विकास के लिए निरंतर शोध में जुटे हुए हैं।

Advertisment

Effects of genetic improvements in various species of buffalo

Advertisment

भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में भैंस की विभिन्न प्रजातियों में आनुवंशिक सुधारों के प्रभाव की तुलना दुनिया की अन्य मवेशी प्रजातियों के साथ की गई है।

Advertisment

इस अध्ययन से पता चलता है कि दोनों प्रजातियों के जीनोम के हिस्से नस्ल सुधार के बाद समान रूप से विकसित होते हैं। आनुवंशिक रूप से अनुकूलन स्थापित करने के इस क्रम में वे जीन भी शामिल हैं, जो भैंसों में दूध उत्पादन, रोग प्रतिरोध, आकार और जन्म के समय वजन से जुड़े होते हैं।

Advertisment

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने पालतू भैंस के जीनोम का अध्ययन करने के लिए उपकरण विकसित किए हैं। इन उपकरणों के उपयोग से सीसीएमबी के वैज्ञानिक (वर्तमान में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय) प्रोफेसर सतीश कुमार और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के शोधकर्ताओं के संयुक्त अध्ययन में ये तथ्य सामने आए हैं।

Advertisment

सबसे अच्छी भैंस कौन सी होती है

इस अध्ययन के नतीजों के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि इन मवेशियों के जीनोम में पायी जाने वाली समानताएं बताती हैं कि अलग-अलग पशु आनुवंशिक सुधार के बाद अनुकूलन स्थापित करने में एक समान सक्षम हैं। इस अध्ययन में ऐसी मवेशी प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिनमें वांछनीय गुण प्राप्त करने के लिए उनमें चयनात्मक आनुवंशिक सुधार किए गए थे। उल्लेखनीय है कि सीसीएमबी के शोधकर्ता एक दशक से भी अधिक समय से भैंस के आनुवंशिक गुणों से संबंधित अध्ययन कर रहे हैं।

इस अध्ययन में, भारत और यूरोप के अलग-अलग स्थानों से सात प्रजातियों की उन्यासी भारतीय भैंसों के जीनोम को अनुक्रमित किया गया है। अध्ययन में भारत की बन्नी, भदावरी, जाफराबादी, मुर्रा, पंढरपुरी और सुरती भैंस प्रजातियां शामिल हैं। भैंस की ये प्रजातियां पूरे भारत में भौगोलिक क्षेत्रों की एक श्रृंखला को कवर करती हैं और अपने भौतिक लक्षणों, दूध उत्पादन एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों के मुताबिक अनुकूलन के संदर्भ में विविधता को दर्शाती हैं।

सीसीएमबी के निदेशक डॉ राकेश मिश्रा ने कहा है कि

“भारत एवं अन्य एशियाई देशों के कृषि एवं डेयरी कारोबार से जुड़े लाखों किसान भैंस और अन्य मवेशियों पर आश्रित हैं। बढ़ती आबादी के साथ भोजन की मांग भी निरंतर बढ़ रही है। ऐसे में, यह महत्वपूर्ण है कि भैंसों तथा अन्य पालतू पशुओं के प्रबंधन के लिए स्वस्थ तरीके खोजे जाएं। जीन-संपादन अथवा पारंपरिक चयनात्मक प्रजनन के जरिये उपयुक्त जीन का चयन - दोनों ही उन्नत नस्लों के विकास लिए बहुत प्रभावी तरीके हैं।”

प्रोफेसर सतीश कुमार कहते हैं कि

“यह अध्ययन जानवरों की विभिन्न प्रजातियों में लाभकारी लक्षणों के साथ जुड़े जीन्स का पता लगाने के तरीके खोजने का मार्ग प्रशस्त करता है। जीनोम-संपादन तकनीक ऐसे जीन्स की चुनिंदा रूप से वृद्धि करने और पालतू पशुओं की उत्पादकता एवं सेहत में सुधार को सुनिश्चित करने में मददगार हो सकती है।”

शोध पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित यह अध्ययन भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुदान पर आधारित है। (इंडिया साइंस वायर)

Advertisment
Advertisment
Subscribe