Advertisment

फिल्म और कलम ख्वाजा अहमद अब्बास के लिए क्रांति के औजार थे

author-image
hastakshep
04 Jul 2021
New Update

Advertisment
publive-image

Advertisment

Film and pen were tools of revolution for Khwaja Ahmed Abbas

Advertisment

ख्वाजा अहमद अब्बास की रचनात्मकता और सामाजिक चिंताएं

Advertisment

इंदौर से विनीत तिवारी

Advertisment

महान फिल्म निर्देशक, फिल्म-लेखक, कहानीकार-उपन्यासकार, पत्रकार और भी न जाने कितनी ही प्रतिभाओं के धनी ख्वाजा अहमद अब्बास की रचनात्मकता और सामाजिक चिंताओं को उनकी फ़िल्मों के माध्यम से समझने के लिए भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की केन्द्रीय इकाई ने 3 जुलाई 2021 को ज़ूम के माध्यम से एक कार्यक्रम श्रृंखला की शुरुआत की।

Advertisment

कार्यक्रम में सीएसडीएस, दिल्ली के प्रोफ़ेसर रविकांत ने अब्बास की फिल्म "राही" बताया कि उनकी निर्देशकीय दृष्टि ग़रीब, मजलूम और मज़दूरों की ज़िंदगी की परतें खोलती थी। देवानंद और नलिनी जयवंत अभिनीत इस फ़िल्म के केन्द्र में आसाम के चाय बागानों में काम करने वालों की ज़िंदगी, उनके दुःख-सुख को गजब तरह से अभिव्यक्त किया गया है। उन्होंने आसाम के "बिहू लोकनृत्य और बिहार के "बिदेसिया" लोकनाट्य शैलियों का भी बहुत ही आकर्षक इस्तेमाल फिल्म में किया है।

Advertisment

उन्होंने अब्बास साहब की बनाई हुई एक अन्य फिल्म "ग्यारह हज़ार लड़कियाँ" का एक दृश्य दिखाकर बताया कि यह फिल्म विषय के रूप में भी बहुत महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि यह तत्कालीन समाज में कामकाजी महिलाओं की ज़िंदगियों, दुश्वारियों और सपनों को अभिव्यक्त करती थी। उनका कैमरे का एंगल भी नायक के क्लोज़अप कम लेता था बल्कि लॉन्ग शॉट्स में सामूहिक मज़दूरों के दृश्य अधिक पकड़ता था।

ख्वाजा अहमद अब्बास की भतीजी, योजना आयोग की पूर्व सदस्य, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और डॉ. ज़ाकिर हुसैन की जीवनीकार, सूफीवाद और उर्दू साहित्य की मर्मज्ञ लेखिका और सामाजिक आंदोलनकारी डॉ. सईदा हमीद ने अब्बास साहब के किस्से सुनाते हुए कहा कि हम बच्चे थे तो चाहते थे कि हम पर भी अब्बास चाचा की नज़र पड़ जाये तो वो हमें भी किसी फिल्म में कोई किरदार दे दें।

उन्होंने कहा कि राजकपूर साहब की सभी कामयाब फिल्मों के लेखक ख्वाज़ा अहमद अब्बास थे लेकिन ख़ुद उनकी बनाई फ़िल्में कभी कामयाब नहीं हुईं। अब्बास साहब राज कपूर साहब के शराब पीने की आदत से नाराज़ भी रहते थे लेकिन बहुत घनिष्ठता भी थी। अब्बास साहब राज साहब की संगीत की समझ को और शोमैनशिप को मानते थे और कहते थे कि फिल्म के प्रस्तुतिकरण में राजकपूर कुछ समझौते भले करते रहे लेकिन "आवारा" लेकिन खुद जब फिल्म बनाते थे तो वो उसमें कोई समझौता नहीं करते थे क्योंकि उनकी ज़िंदगी के तीन अहम लफ्ज़ थे रोटी, खूबसूरती और इंक़लाब। अब्बास साहब की आत्मकथा "आय एम नॉट एन आइलैंड (मैं द्वीप नहीं हूँ)" में उन्होंने आख़िरी इच्छा जताई थी कि मेरे जनाज़े में सभी धर्मों के लोग शामिल हों।

सभा की शुरुआत करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश कुमार (लखनऊ) ने कहा कि अब्बास साहब की प्रतिभा का एक बड़ा क्षेत्र उनकी पत्रकारिता भी थी। "ब्लिट्ज" में छपने वाला उनका स्तम्भ "लास्ट पेज" इतना लोकप्रिय था कि हमारे जैसे अनेक पाठक अखबार को आख़िरी पन्ने से पढ़ना शुरू करते थे। इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना से लेकर अपने जीवन की आख़िरी साँस तक उनकी रचनाओं में समाजवाद के मूल्य सर्वोच्च रहे।

सभा का सञ्चालन करते हुए प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी (इंदौर) ने कहा कि 73 बरस की उम्र में 74 किताबें लिखने वाले ख्वाजा अहमद अब्बास ने 20 फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया जो अपने वक़्त में भले आर्थिक नुक्सान देने वाली साबित हुई हों लेकिन अब उन फिल्मों का ऐतिहासिक महत्त्व प्रमाणित हो गया है। अब्बास साहब ने दुनिया के बाकी देशों के सामने भारत की फिल्मों को सर्वोच्च सम्मान दिलवाये। मैक्सिम गोर्की के नाटक पर बानी फिल्म "नीचा नगर" को गोल्डन पाम सम्मान हासिल हुआ था जो आज तक फिर किसी दूसरी भारतीय फिल्म को नहीं मिला।

इस ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रलेस के राष्रीय महासचिव प्रोफ़ेसर सुखदेव सिंह (चंडीगढ़), इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तनवीर अख़्तर (पटना), इप्टा की राष्ट्रीय सचिव उषा आठले (मुंबई), अर्पिता (जमशेदपुर), अर्थशास्त्री और फिल्मकार-नाटककार डॉ. जया मेहता (दिल्ली), सविता (दिल्ली), फिल्म और टीवी कलाकार बलकार सिद्धू (पंजाब), अरविन्द पोरवाल, प्रमोद बागड़ी, अनूपा, सुरेश उपाध्याय, सारिका श्रीवास्तव, अधिवक्ता अमित श्रीवास्तवआदि के साथ ही इप्टा और प्रलेस के देशभर के पदाधिकारी और फिल्मों में रूचि रखने वाले दर्शक और श्रोता शामिल हुए।

श्रृंखला की अगली कड़ी में "दो बूँद पानी" फिल्म के ज़रिये "ख्वाजा अहमद अब्बास की सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि और कलात्मकता पर चर्चा करेंगी ख़ुद डॉ. सईदा हमीद और सौम्या (दिल्ली) 10 जुलाई 2021 की शाम 6 बजे से 7.30 बजे तक ज़ूम मीटिंग के ज़रिये।

Advertisment
सदस्यता लें