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जानिए मनमौजी मानसून के बारे में

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hastakshep
29 Jun 2021

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मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार मानसून क्या है... What is monsoon according to meteorologists

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मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार मानसून (monsoon in Hindi) ऐसी सामयिक हवाएँ हैं जिनकी दिशाओं में प्रत्येक वर्ष दो बार उलट-पटल होती है। उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम में मानसूनी हवाओं की दिशाओं में बदलाव वैज्ञानिक भाषा में कोरिओलिक बल के चलते होता है। यह बल गतिशील पिंडों पर असर डालता है।

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फेरल का नियम क्या है बताइए… what is ferrel's law in hindi… फेरल Ka Niyam Kya Hai,

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हमारी पृथ्वी भी गतिशील पिंड है जिसकी दो गतियाँ हैं- दैनिक गति और वार्षिक गति। नतीजन, उत्तरी गोलार्द्ध में मानसूनी हवाएँ दाईं ओर मुड़ जाती हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर। वायुगति के इस परिवर्तन की खोज फेरल नामक वैज्ञानिक ने की थी। इसीलिये इस नियम को 'फेरल का नियम’ कहते हैं।

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वायुमण्डलीय ताप और दबाव से गति उत्पन्न होती है। द्रव की तरह वायु का भी व्यवहार होता है। यानी उच्च भार से निम्न भार की ओर बहना प्रकृति के इस नियम को 'वाइस वैल्ट्स लॉ’ कहते हैं।

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धरती पर वायु भार की कई पेटियों में ग्लोब के 80 डिग्री से 85 डिग्री उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों में अधिक वायु भार होने के कारण विषुवत रेखा की ओर हवा बहने लगती है।

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मानसून कहां पैदा होता है... where does the monsoon originate

मानसून का जन्म विशुद्ध जलवायु वैज्ञानिक घटना है। यह सात समुद्रों के उस पार से नहीं आता बल्कि हिन्द महासागर से इसका जन्म होता है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से भी ये मानसूनी हवाएँ नमी ग्रहण करती हैं।

मानसून का तात्पर्य क्या है | what is the meaning of monsoon

मानसून का तात्पर्य वर्षा ऋतु से है यानी जिन प्रदेशों में ऋतु बदलते ही हवा की प्रकृति और दिशा बदल जाती है, वे सारे प्रदेश मानसूनी जलवायु के प्रदेश कहे जाते हैं।

अब प्रश्न है कि हवा की दिशा और प्रवृत्ति का बदलाव कैसे होता है?

देश में जाड़े में स्थल से जल की ओर यानी भारत से हिन्द महासागर की ओर हवाएँ चलती हैं और गर्मियों में ठीक इसके विपरीत यानी हिन्द महासागर से भारत की ओर इस प्रकार ये हवाएँ ऋतु के अनुसार बदल गईं। इसीलिये ये मानसूनी हवाएँ कहलाईं।

मानसून शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई

झाड़-झंखाड़ को उखाड़ती-पछाड़ती पहले आती है 'बुढ़िया आँधी’ यानी काल बैशाखी। इसके बाद ही आती है बरखा बहार। कभी थमकर बरसता है तो कभी जमकर। यह 'मानसून’ शब्द अरबी भाषा के 'मौसिन’ और मलय भाषा के 'मोनसिन’ शब्द से बना है। जिसका मतलब होता है हवाओं के नियमित व स्थायी मार्ग में अस्थायी परिवर्तन।

प्राचीन काल से जारी है मानसून का अध्ययन | The study of monsoon continues since ancient times

सिकन्दर महान, अरस्तु, वास्कोडिगामा और एडमंड हेली समेत कई अनुसन्धानकर्ताओं ने मानसूनी हवाओं के बारे में विस्तार से लिखा है। अब तो अत्याधुनिक कृत्रिम उपग्रह भी मानसून का अध्ययन कर रहे हैं। जिन्हें हम अक्सर टी.वी. पर देखते हैं।

मानसून के बारे में अब तक के सभी अध्ययनों को ऐतिहासिक सन्दर्भ में रखने पर तीन विचारधाराएँ उभरती हैं। ये विचारधाराएँ बताती हैं कि मानसून की उत्पत्ति कहाँ से और कैसे होती है

पुराने जमाने में न तो अच्छे किस्म के अत्याधुनिक यंत्रों का आविष्कार हुआ था और न ही विज्ञान इतना विकसित था। अतीत के अध्ययन और अनुभव के नतीजों के आधार पर मानसून को ताप रहित हवाएँ माना गया। जब सूर्य दक्षिणायन में लम्बवत चमकता है, तब देश में जाड़े का मौसम रहता है। उस समय दक्षिण भारत का तापमान अधिक रहता है और हिन्द महासागर में स्थूल दबाव का केन्द्र बन जाता है। इसके विपरीत उत्तर भारत में कम तापमान की वजह से अधिक दबाव का क्षेत्र बन जाता है।

हम जान चुके हैं कि प्रकृति का कठोर नियम है कि अधिक दबाव से हवाएँ कम दबाव की ओर चलती हैं। ये स्थानीय होती हैं और इन्हें व्यापारिक हवाएँ भी कहते हैं।

लेकिन जून-जुलाई यानी गर्मियों में इसका उल्टा होता है। इन दिनों सूर्य उत्तरायण यानी कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है। यही कारण है कि उत्तरी भारत समेत उत्तर-पश्चिमी भारत तपने लगता है और कम दबाव के क्षेत्र में तब्दील हो जाता है। उधर दक्षिण में हिन्द महासागर में कम तापमान के कारण उच्च दबाव का क्षेत्र बन जाता है।

हिन्द महासागर से भारत की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। महासागर से होकर आने के कारण ये हवाएँ नम हो जाती हैं। नमीयुक्त होने के कारण ये हवाएँ भारत व दक्षिण पूर्व एशिया में खूब खुलकर वर्षा करती हैं। यही है मानसून की प्राचीनतम विचारधारा।

दूसरी मान्यता के अनुसार, पृथ्वी पर सूर्य की किरणें साल भर एक ही स्थान पर लम्बवत नहीं रहती हैं। कर्क रेखा पर उत्तरायन में सूर्य के लम्बवत चमकने पर वायु दबाव की सभी पेटियाँ पाँच अंश या अधिक उत्तर की ओर व मकर रेखा पर दक्षिणायन में सूर्य के चमकने पर पेटियाँ दक्षिणी गोलार्द्ध में खिसक जाती हैं। इसके चलते जून-जुलाई के महीनों में सूर्य भारत के मध्य भाग से गुजरता कटिबन्धीय सीमान्त (इंटरटॉपिकल कन्वरवेंस) तक खिसककर उत्तरी भारत के ऊपर आ जाता है। नतीजन इस सीमान्त के मध्य भाग में चलने वाली भूमध्यरेखीय पछुवा हवाएँ भी भारत तक पहुँचने लगती हैं। चूँकि ये हवाएँ समुद्र से आती हैं, अत: नमीयुक्त होने के कारण भारत में पहुँचकर वर्षा करती हैं।

Himalaya has saved India from being a desert

हिमालय के ऊपर वायुमण्डल की ऊपरी पर्तों में यह वायुधारा बहती है। पर्वतराज हिमालय ने ही भारत को रेगिस्तान होने से बचा लिया है। यदि वे अडिग-अचल नहीं रहते तो मानसून की भरपूर वर्षा नहीं हो पाती। हिमालय भौतिक अवरोध की दीवार ही नहीं खड़ी करता, बल्कि दो भिन्न जलवायु वाले भू-भागों को अलग-अलग भी रखता है। हिमालय की वायुधारा के दो भाग हैं। पूर्वी जेट स्ट्रीम और पश्चिमी जेट स्ट्रीम। इस वायुराशि का वेग बहुत तेज है। इसके नामकरण का इतिहास भी एक दु:खद दुर्घटना के साथ जुड़ा है। जब नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने अमेरिकी पायलट जा रहे थे तो हिमालय के ऊपर से उड़ते वक्त उनके जेट की गति एकदम कम हो गई और बम डालकर लौटते समय कई गुना अधिक बढ़ गई।

कुछ वर्षों के लिये जेट वायुयान बेकाबू हो गया। लेकिन इस वायुधारा के बाहर निकलते ही जेट फिर पहले की तरह हो गया। इसके बाद इस वायुधारा के वैज्ञानिक अध्ययन के बाद सबसे पहले जेट से पाला पडऩे के कारण, इसका नामकरण 'जेट वायुधारा’ हो गया। यही जेट वायुधारा मानसून की असली चाबी है। आजकल के अत्याधुनिक यंत्रों व मौसम उपग्रहों के अध्ययन भी इस दावे को प्रामाणिक करते हैं।

जेट वायुधारा के उत्तर की ओर खिसकने में विलम्ब होने की सूरत में मानसून भी विलम्ब से भारत पहुँचता है और जब यह वायुधारा खिसक जाती है तो मानसून भी समय से पहले भारत में गर्जन-तर्जन करता पहुँच जाता है।

आमतौर पर मानसून सबसे पहल एक जून को केरल पहुँचता है, सात जून को बंगाल की खाड़ी, बांग्लादेश, असम और उप हिमालय क्षेत्रों में परिक्रमा के बाद दस जून को पश्चिम बंगाल की बारी आती है और पन्द्रह जुलाई तक कश्मीर पहुँच जाता है। पन्द्रह जून से पन्द्रह सितम्बर के चार महीनों के दौरान पूरे देश में तकरीबन 88 सेमी. बारिश होती है, वर्षा में दस फीसदी तक हेर-फेर को स्वाभाविक वर्षा माना जाता है। इससे अधिक होने पर अतिवृष्टि और कम होने पर अनावृष्टि कहा जाता है।

हल्की या भारी वर्षा का कारण

हल्की या भारी वर्षा भी जेट वायुधारा के विक्षोभ के कारण होती है। विक्षोभ के शक्तिशाली होने पर घनघोर वर्षा होती है और कमजोर होने पर बस बूँदाबाँदी होकर रह जाती है। बरसात के लिये और भी कई बातें होनी जरूरी हैं।

आखिर बिन बरसे बादल क्यों चले जाते हैं?

बादलों में बरसात की बूँदों से हजार गुना ज्यादा बर्फ के टुकड़े होतें हैं और खाली हवा हो तो बादलों से बरसात की बूँद नहीं बनती। भले ही वायु शून्य से 80 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान से नीचे चली जाये, भाप सीधे बर्फ बन जाएगी पर किसी कीमत पर बरसात की बूँद नहीं बनेगी।

पहली सितम्बर से मानसून वापसी का बन्दोबस्त करने लगता है और अक्टूबर के मध्य तक उसके लौटने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। दक्षिण आन्ध्र, तमिलनाडु और श्रीलंका में उत्तर-पूर्वी मानसून से जाड़े में वर्षा होती। दक्षिण पश्चिम मानसून से वहाँ वर्षा नहीं होती। यही कारण है कि गर्मी में तमिलनाडु में चक्रवाती वर्षा न होने के कारण पीने के पानी का चरम संकट हो जाता है।

- अनामिका प्रकाश श्रीवास्तव

(विज्ञान प्रगति)

देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार

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