Air pollution affecting our children's brains
वायु प्रदूषण, श्वसन रोगों, अस्थमा और बॉडी मास इंडेक्स के बीच आपसी संबंध का भारत के 3157 छोटे स्कूली बच्चों में अध्ययन करने से निकले खतरनाक नतीजे
Dangerous results from a study of the relationship between air pollution, respiratory diseases, asthma and body mass index in 3157 young school children in India
भारत भर में लाखों स्कूली बच्चे आज स्कूल लौटेंगे और ऐसे समय में हम सब उन्हें वापस स्कूल जाने देने से पहले COVID-19 के संदर्भ में उनकी सुरक्षा के लिए चिंतित हैं, लेकिन एक और अदृश्य हत्यारा उनके स्वास्थ्य को गंभीर और धीरे-धीरे प्रभावित कर रहा है।
दुनिया भर के अध्ययन साबित करते हैं कि वायु प्रदूषण हमारे बच्चों के दिमाग को प्रभावित कर रहा है, उनके न्यूरो-डेवलपमेंट और संज्ञानात्मक क्षमता को प्रभावित कर रहा है और उनमें अस्थमा और बचपन के कैंसर को ट्रिगर कर सकता है।
वायु प्रदूषण का बच्चों पर दुष्प्रभाव. Effects of air pollution on children.
वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में रहने वाले बच्चों में बड़े होने पर आगे चलकर हृदय रोग जैसी घातक बीमारियों का अधिक खतरा हो सकता है। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के प्रति बच्चे विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि वह वयस्कों की तुलना में अधिक तेजी से सांस लेते हैं और इसलिए अधिक प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं।
Relationship between air pollution and respiratory diseases
भारत में 3157 छोटे स्कूली बच्चों के फेफड़ों की सेहत (Lung health of young school children) की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कराए गए एक अध्ययन में वायु प्रदूषण व श्वसन रोगों के बीच आपसी रिश्ते के खतरनाक संकेत मिले हैं।
अध्ययन के निष्कर्ष यह बताते हैं कि बच्चों में दमा तथा एलर्जी, सांस लेने में रुकावट तथा बचपन में ही मोटापे के शिकार होने के लक्षण उत्पन्न होने की आशंका वायु प्रदूषण के चलते काफी ज्यादा है।
लंग केयर फाउंडेशन और पलमोकेयर रिसर्च एंड एजुकेशन (प्योर) फाउंडेशन द्वारा दिल्ली, कोट्टायम तथा मैसूर में चुने गए 12 स्कूलों के बच्चों पर यह अध्ययन किया गया। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य दिल्ली के निजी स्कूलों में पढ़ रहे छोटे बच्चों की श्वसन संबंधी सेहत का आंकलन करते हुए उनकी तुलना पार्टिकुलेट मैटर वायु प्रदूषण के लिहाज से अपेक्षाकृत स्वच्छ माने जाने वाले कोट्टायम और मैसूर शहरों के बच्चों से करना था।
इस अध्ययन का वित्तपोषण शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन ने किया और इसे 31 अगस्त 2021 को प्रमुख मेडिकल पत्रिका लंग इंडिया में प्रकाशित किया गया।
इस अध्ययन में 3157 छोटे स्कूली बच्चों का परीक्षण किया गया ताकि उनके फेफड़ों की सेहत का अंदाजा लगाया जा सके। सभी बच्चों ने एक विस्तृत प्रश्नावली के जवाब दिए। यह प्रश्नावली इंटरनेशनल स्टडीज फॉर अस्थमा एंड एलर्जी डिजीजेस इन चिल्ड्रेन (International Studies for Asthma and Allergic Diseases in Children - आईएसएसएसी) द्वारा तैयार की गई प्रमाणीकृत मानक प्रश्नावली पर आधारित थी। सभी बच्चों को एक स्थलीय स्पायरोमेट्री से भी गुजारा गया। यह फेफड़ों की कार्यप्रणाली का आकलन करने के लिए एक उच्च मानकों वाला टेस्ट है जिसे टेक्नीशियंस और नर्सेज ने प्रमाणित किया है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
- मुख्य निष्कर्ष 1 : प्रश्नावली से सम्बन्धित : चिंताजनक रूप से काफी ज्यादा संख्या में बच्चों में दमे तथा एलर्जी सम्बन्धी लक्षण पाये गये :
- दिल्ली में : 52.8% बच्चों ने छींकें आने की शिकायत की, 44.9% बच्चों ने आंखों में खुजली के साथ पानी आने, 38.4% ने खांसी आने, 33% ने खुजली वाले निशान पड़ने, 31.5% ने पूरी सांस नहीं ले पाने, 11.2% ने सीने में जकड़न और 8.75% बच्चों ने एक्जीमा की शिकायत की।
- कोट्टायम और मैसूर में : 39.3% बच्चों ने छींकें आने की शिकायत की, 28.8% बच्चों ने आंखों में खुजली के साथ पानी आने, 18.9% ने खांसी आने, 12.1% ने खुजली वाले निशान पड़ने, 10.8% ने पूरी सांस नहीं ले पाने, 4.7% ने सीने में जकड़न और 1.8% बच्चों ने एक्जीमा की शिकायत की।
- दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में दमे तथा एलर्जी के लक्षण होने की सम्भावना कोट्टायम और मैसूर के बच्चों के मुकाबले उल्लेखनीय रूप से ज्यादा थी।
·मुख्य निष्कर्ष2: स्पाइरोमेट्री डेटा: वायु प्रवाह में रुकावट/अस्थमा का उच्च प्रसार :
·दिल्ली के 23.95 बच्चों में स्पायरोमेट्री पर सांस लेने में रुकावट/दमा की शिकायत पाई गई। वहीं, कोट्टायम और मसूर के 22.6 प्रतिशत बच्चों में यह समस्याएं पाई गई। यह अंतर तब है जब कोट्टायम और मसूर में बचपन से ही दमे के लिए अनुवांशिक कारण तथा घर में किसी के धूम्रपान करने जैसे दो महत्वपूर्ण कारक भी जुड़े हुए हैं।
·स्पायरोमेट्री पर लड़कों में लड़कियों के मुकाबले दमे का प्रसार 2 गुना अधिक पाया गया। दिल्ली में 19.9% लड़कियों के मुकाबले 37.2% लड़कों में वायु प्रवाह में रुकावट/अस्थमा का प्रसार देखा गया।
·दिल्ली में स्पायरोमेट्री पर जिन 29.3% बच्चों में दमे का प्रसार पाया गया उनमें से सिर्फ 12% में ही दमा डायग्नोज किया गया और उनमें से सिर्फ 3% बच्चे ही किसी ना किसी तरह का इनहेलर इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके मुकाबले कोट्टायम और मैसूर में जिन 22.6% बच्चों में अस्थमा का प्रसार देखा गया। उनमें से 27% में इस बीमारी का पता लगाया जा चुका है और उनमें से 8% बच्चे किसी ना किसी तरह का इनहेलर इस्तेमाल कर रहे हैं।
·इस प्रकार बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जिनमें दमे के लक्षण हैं लेकिन जांच नहीं कराए जाने की वजह से उनमें इस बीमारी की पुष्टि नहीं हो सकी है। इसके अलावा बहुत बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की भी है, जिन्हें सही इलाज नहीं मिल रहा है। कोट्टायम और मैसूर के मुकाबले दिल्ली में यह आंकड़ा कहीं ज्यादा है। .
·मुख्य निष्कर्ष 3 : मोटापे और दमे के बीच आपसी सम्बन्ध : दिल्ली में बच्चों में मोटापे का उच्च प्रसार और उनमें दमे की घटनाओं का ज्यादा होना
·दिल्ली के 39.8% बच्चे मोटापे/मानक से ज्यादा वजन के शिकार हैं। वहीं, कोट्टायम और मैसूर में ऐसे बच्चों का प्रतिशत 16.4 है।
·दिल्ली, कोट्टायम और मैसूर के सभी बच्चों को मिला लें तो मोटापे/अधिक वजन वाले बच्चों में स्पायरोमेट्री पर दमा सिद्ध होने की सम्भावना 79 प्रतिशत पायी गयी है। कोट्टायम और मैसूर के मुकाबले दिल्ली के बच्चों में इसकी सम्भावना 38 फीसद ज्यादा है।
बच्चों में मोटापे/अधिक वजन और दमे के उच्च प्रसार के बीच सम्बन्ध को भारत में पहली बार किसी अध्ययन में विस्तृत रूप से पेश किया गया है।
वातावरणीय पार्टिकुलेट मैटर जनित वायु प्रदूषण को हाल के कुछ अध्ययनों में बच्चों के अंदर मोटापे वजन ज्यादा होने के महत्वपूर्ण कारण के तौर पर पहचाना गया है।
दिल्ली के बच्चों में मोटापे के अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन उपरोक्त अध्ययनों के आधार पर हमें संदेह है कि पार्टिकुलेट मैटर संबंधी वायु प्रदूषण इसका एक बड़ा कारण हो सकता है। दिल्ली में बच्चों में मोटापे या उनका वजन ज्यादा पाए जाने तथा कोट्टायम और मैसूर में इसका कम प्रसार होने का सीधा संबंध इन शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पीएम2.5 और पीएम10 के स्तरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी और गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन डॉक्टर अरविंद कुमार ने कहा
"यह अध्ययन आंखें खोलने वाला है। इसमें दिल्ली के बच्चों में सांस तथा एलर्जी, स्पायरोमेट्री आधारित अस्थमा तथा मोटापे का अस्वीकार्य स्तर तक उच्च प्रसार देखा गया है। इन तीनों ही बीमारियों का संबंध वायु प्रदूषण से जुड़ा हो सकता है। यह सही समय है जब दिल्ली तथा अन्य शहरों में वायु प्रदूषण के मुद्दे को सुव्यवस्थित तरीके से सुलझाया जाए ताकि हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके।"
पुणे स्थित पलमोकेयर रिसर्च एंड एजुकेशन फाउंडेशन के निदेशक डॉक्टर संदीप सालवी ने कहा
"यह अध्ययन भारत में स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों पर किए गए अध्ययनों में से एक है जो मोटापे और अस्थमा के बीच मजबूत रिश्ते को जाहिर करता है। साथ ही यह भी बताता है कि इन दोनों बीमारियों का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से हो सकता है। दूषित हवा में सांस लेने से बच्चों में मोटापा हो सकता है और उनमें दमे का खतरा और बढ़ सकता है।"
वायु प्रदूषण के अत्यधिक जहरीले स्तरों वाली हवा में सांस लेना हमारे बच्चों के लिए अत्यधिक नुकसानदेह हो सकता है। लंदन के एक न्यायिक अधिकारी फिलिप बरलो ने दिसंबर 2020 में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी जिसमें 9 साल की बच्ची एला जो कि ब्रिटेन और संभवत: दुनिया की ऐसी पहली इंसान है जिसकी मौत के कारण को वायु प्रदूषण से जोड़ा गया था। एला की मौत दमे की गंभीर बीमारी की वजह से हुई थी। ऐसा पाया गया था कि वायु प्रदूषण के उच्च स्तरों की वजह से उसे यह बीमारी हुई थी। इस वक्त भारत में लाखों बच्चों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है।
दो बच्चों की मां भवरीन कंडारी ने कहा
"मेरे दो बच्चे हैं और इस अध्ययन के निष्कर्षों ने मुझे खौफजदा कर दिया है। मैंने वायु प्रदूषण के उच्च स्तरों की वजह से अपने बच्चों की सेहत और उनके सर्वांगीण विकास को प्रभावित होते हुए खुद देखा है। उन्हें खेलकूद छोड़ना पड़ा, जिसमें वे काफी अच्छे थे। हमारे बच्चों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। वह साफ हवा और स्वास्थ्यपरक पर्यावरण के हकदार हैं।
According to the Air Quality Life Index, particulate matter air pollution guidelines of the World Health Organization
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के मुताबिक अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के पार्टिकुलेट मैटर वायु प्रदूषण संबंधी दिशा निर्देशों का पालन किया जाए तो दिल्ली एनसीआर के हर नागरिक की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) 9 साल तक बढ़ सकती है।
स्कूल जाने वाले बच्चों में दमे की खतरनाक रूप से बढ़ती घटनाएं, स्कूलों को अस्थमा संबंधी आपात स्थितियों से निपटने के लिए तैयार करने और शिक्षकों को इसका प्रशिक्षण देने की राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाने की जरूरत को रेखांकित करती हैं।
सीएसआइआर इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी, नई दिल्ली के निदेशक डॉक्टर अनुराग अग्रवाल ने कहा "इस अध्ययन से यह जाहिर होता है कि दिल्ली के जिन बच्चों में दमे का प्रसार पाया गया है उनमें से 85% को यह नहीं पता कि वह दमे के शिकार हैं। उनमें से 3% से भी कम को सही इलाज मिल रहा हैह हमें अभिभावकों और शिक्षकों के बीच दमे को लेकर और अधिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है, ताकि दमे की जांच में कमी और उसका इलाज नहीं होने की समस्याओं से उल्लेखनीय रूप से निपटा जा सके।"
लंग इंडिया के संपादक और शेर-ए-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस में इंटरनल एंड पलमोनरी मेडिसिन विभाग के मुखिया प्रोफेसर परवैज कौल ने कहा
"भारत के भौगोलिक रूप से दो अलग-अलग क्षेत्रों में बच्चों पर किए गए इस महत्वपूर्ण अध्ययन से यह जाहिर हुआ है कि दिल्ली के बच्चों में सांस के प्रवाह में रुकावट के साथ-साथ मोटापे का प्रसार ज्यादा है क्योंकि कोट्टायम के मुकाबले दिल्ली में प्रदूषण कहीं ज्यादा है। ऐसे में यह अध्ययन एक विस्तृत अध्ययन के लिए मंच तैयार करता है। खास तौर पर यह अध्ययन बहु केंद्रीय हो ताकि प्रदूषण, मोटापे और सांस लेने में रुकावट के बीच संबंध को व्यापक रूप से साबित किया जा सके। नीति निर्धारकों को जल्द से जल्द समुचित रणनीति विकसित कर उसे अपनाना होगा ताकि भारत के लोगों की सेहत पर वायु प्रदूषण के नुकसानदेह प्रभावों को कम किया जा सके।
मोटापे का उच्च प्रसार अभिभावकों और बच्चों को संवेदित कर मोटापे पर नियंत्रण करने की फौरी जरूरत को भी जाहिर करता है।